सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले whatsapp status ,
सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले ,
ख़ैरात में मिली मोहब्बत से ओहदा बदल गया ।
इश्क़ की ख़ातिर पर्दा नशीनों से भी गुनाह होते हैं ,
जिस्म लुटते हैं रूहें तबाह होती हैं ।
सियासियों की फ़िराक़ रखते हो ,
कभी मज़हब पर तो कभी अवाम ए क़ौम पर आमादा हो ।
अना जिस्मो की कैसी ,
दाम ऊँचे हो सियासतों में रूहों के मज़हब भी बदल जाते हैं ।
तेरे जैसा मुजस्सिम तरास सकता हो ,
ऐसा कारीगर तलास करता हूँ ।
एक दो होते तो दिखाते तुमको ,
सारा का सारा दिल ज़ख्मो से लबरेज़ रहा ।
एक दो होते तो गिला सिकवा होता ,
जितने मेहबूब मिले सबके सब संगदिल सनम ही मिले ।
मज़हब मत पूछो मरीज़ ए दाना से ,
जिस दर पर मिली रोटी वहीँ बैठ कर नमाज़ पढ़ लिए ।
वजूद कुछ भी नहीं मिटटी के पुतले का दानिश,
बस जिस्मो की गणना से इंसान की औक़ात पता चलती है ।
जवानी कटी अगर ग़म ए मुफ़लिश की अकाल में ,
जिस्म की रंगत निखर रही है फिर उम्र ए दराज़ में ।
झुकी पलकों से तहज़ीब नज़र आती थी ,
अब से पहले रुख़ तेरा इतना बेहया तो ना था ।
इश्क़ की ख़ातिर पर्दा नशीनों से भी गुनाह होते हैं ,
जिस्म लुटते हैं रूहें तबाह होती हैं ।
लोग मरते रहे जिस्म जलता रहा ,
सियासत के नाम पर अवाम लुटता रहा ।
सम्हलते नहीं हैं उड़ते फिरते सरारे दिलों से ,
इन शरबती आँखों से कहो नज़रें जुम्बिश ही छोड़ दें ।
तूने अपनी नाकों की नथ के ऊपर ,
जाने कितने नख़रे उठा के रखे हैं ।
जिस्म ढल गया तो क्या ,
इश्क़ की उम्रें तो अभी बाकी हैं ।
हुश्न के समंदर में भर गए सारे ,
जितने मोती फलक से टपके थे शबनम बनकर ।
रूह ज़ार ज़ार जिस्म रेज़ा रेज़ा ,
जान हम तुम पर अब भी ऐतबार बहुत करते हैं ।
ज़माना क्या नमाज़ें अदा करेगा हमें ,
जब हम खुद के ही ख़ुदा हो कर के निकले ।
pix taken by google
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