सियासतें ही हो मेहरबान गर क़ातिलों पर funny political shayari ,
सियासतें ही हो मेहरबान गर क़ातिलों पर ,
रहनुमा बनकर गली कूचों पर बूचड़खानों का कारोबार खोल दें ।
सियासत के कत्लगाहों का रोज़गार पुराना है ,
जानवर बछेहु के आड़े में इंसानी खून बहाना है ।
सियासत में मुर्दों का रोज़गार बढ़ गया ,
भाई भाई के खून ए जिगर का प्यासा जो हो गया ।
गर मारने से मरता हैवान,
साल दर साल न मारा जाता हैवान I
बाँट ले क़तरा क़तरा ए लहू जो तेरे हिस्से का है ,
कब तलक मैं ख़ुद में छुपे हैवान को चुप कराऊंगा ।
शहर ए मुंसिफ कहते हैं, हैवान जाग जायेगा क़यामत जाग जाएगी ,
जहां भर में लोग इंसानियत बाँट रहे हो जैसे ।
हसरतें इतनी लेकर फिरता रहा उम्र भर ,
ख़ुद के भीतर भी एक हैवान छुपा कर शायद ।
पाँव चलते नहीं ज़मीन पर ,
बुढ़ापा घिसटकर ज़माने भर की चुग़लखोरियों का रोज़गार कर रहा ।
शर्म से गैरत से कभी डूब मरते वो ,
बेज़बान के ज़िम्मे में रोज़गार खड़ा कर रहे हैं जो ।
रात भर हथेली पर चिराग जलाये फिरती रूहें ,
अंधेरों में उम्मीदों के उजालों का रोज़गार करती हैं ।
रात के काँधे पर ख़ामोशियाँ लादकर ,
दिन उजाले में कहकशां का कारोबार करे है ।
रात भर तकना मेहज़बीनों की चौकसी आशिक़ों का रोज़गार रहा ,
बस बदनसीबों के हिस्से में दिन के उजालों का कारोबार रहा ।
ज़ुल्फ़ें हटा रहा हूँ रुख़सार से तेरी ,
एक रात की मुफ्लिशी को रोज़गार मिल गया ।
चाँद तारों का गिनना फज़ूल था ,
अच्छा हुआ दिल से निकम्मो को रोज़गार मिल गया ।
इश्क़ के मारों से न पूछ इलाज़ ए मर्ज़ ,
ये लख़्त ए जिगर के मारों का क्या इलाज़ कराओगे ।
बेख़्याली में भी गर क़त्ल हो जाए किसी बेगुनाह का ,
इब्लीस है वो ज़िंदा इब्न ए इंसान ही नहीं ।
बीमार हो गया तबीयत ए नासाज़ जिगर से ,
दिल लेने देने का क्या रोज़गार करोगे ।
हांथों में तीर भाला बाजू में बरछी कटार ,
क्या गैर इरादतन भी होगा चैन ओ अमन पर वार ।
pix taken by google
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