रूहें न जला दे कहीं ये ज़ौक़ ए आतिशी तेरी romantic shayari ,
रूहें न जला दे कहीं ये ज़ौक़ ए आतिशी तेरी ,
ख़ामोशी से ही सही ये आदम ए बुज़दिल गुनाह क़बूले खड़ा है ।
रूहानियत को ख़ुदा बक्शे अपनी बला से ,
शहर भर में आदम ही आदम का गोश्त लुटे पड़ा है ।
वक़्त काटने के लिए वो आके बैठा पहलू में ,
बातों बातों में दिल ही लूट गया कुछ पता न चला ।
वक़्त के साथ तहज़ीबों ने तरक्की कर ली ,
दिल तोड़े दर ओ दीवारें कई खाली कर ली ।
वक़्त सिखा जाता है नज़ाक़त समंदर को भी ,
पत्थरों से टकरा कर के लहरें नहीं टूटा करती ।
वक़्त ने सिलवटें डाल दी जिस्म में गोया ,
हमारे जमाल ए यार जैसा कोई महज़बीन न था ।
राजा रंक हो या पीर फ़क़ीर ,
वक़्त की सियासत का मारा हर एक बंदा है ।
मैं एक अनजान मंज़िल का मुशाफिर ,
वक़्त बेलगाम घोड़े पर सवार दौड़ता सरपट ।
औक़ात बता देती है टकशाल में बनी घुड़शाल वाली असरफियाँ ,
हर वक़्त ए हुक़ूमतों का सरताज वही था ।
ख़ामोशी साँप बनके डसती है ज़हर की तरह ,
शहर भर की मीनारों में हर वक़्त बस रूहानियत रवां है ।
तू दूसरी दुनिया में खुश रहना मेरे दोस्त ,
की अब ये दुनिया इंसानो के रहने के क़ाबिल नहीं रही ।
वक़्त की बिसात अच्छी अच्छी बुनियाद हिला देती है ,
तुम अफशानो की इमारतों को कब तलक ख़्याली जामा उढ़ाओगे ।
बात अब तेरे वज़ूद पर जा अटकी है ,
सब गुनाह क़बूल कर या दिल ए मामला रफा दफा ।
ऐ क़ाफ़िर ज़रा मज़हब बता अपना ,
क्या मरने के बाद भी सियासी ख़ुदा के सज़दे में जायेगा ।
ज़र ज़र इमारतों में सुराख़ कैसे कैसे हैं ,
ख़ाक ए जबीन होने की मुनियाद अभी बाकी थी ।
आसमानी ख़ुदा तो सबके एक जैसे हैं ,
ऐसी क्या सियासी ग़फ़लत है की लोग साथ इबादतें भी नहीं कर सकते ।
लोग मर जाते हैं ज़िंदा क़ब्रों के पास रहकर के भी ,
तुम कैसे जी लेते हो मुर्दों के क़फ़न छीनकर के भी ।
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