वादी ए हसीन की गूंजती फ़िज़ाओं से सदा हरसू ये आती है maa shayari ,
वादी ए हसीन की गूंजती फ़िज़ाओं से सदा हरसू ये आती है ,
की घर वापस लौट के आ जाओ लाडलों तुम्हे माँ बुलाती है ।
तहज़ीबें शान ओ शौक़त और अदब ,
माँ की कोख़ से ही जिगर के टुकड़ों में साथ आती हैं ।
शख्सियत कुछ भी नहीं तेरे रहम ओ करम के आगे ,
यही क्या कम है मैं अपने घर आँगन में अब भी अपनी माँ का लाड़ला हूँ ।
जिन हाँथों की उँगली पकड़ कर चलना सीखा था ,
उन्ही माँ बाप के बूढ़े कांधो का सहारा भी है बनना ।
जानवर माँ की ममता को समझता है ,
छौने के जूठे दूध से लोगों का पेट भरता है ।
गुज़रा बचपन जिसके आँचल के साये में ,
फिर उठूँ दौडूँ पकड़ूँ वो माँ का साया मुझे आवाज़ देता है ।
तपती धूप थक के कुम्हला गयी ,
जब भी पड़ी बेटे पर आँच माँ बढ़ के आंगे आ गयी ।
हवा के गर्म झोकें हो या सर्द की ठिठुरन ,
माँ के आगोश में आदम ओ जानवर तक के बच्चे महफूज़ रहते हैं ।
नगमो की तर्ज़ पर कोई साज़ छेड़ती है शाम ,
ग़म ए मुफ़लिश में आज कोई क़ाफ़िर फिर फ़नकार हो गया ।
हसरतों को परवाज़ देकर ,
वो निकल गया दूर मुझसे मुझको आवाज़ देकर ।
सफ़ेहा सफ़ेहा मैं अपने मुक़द्दर में तेरा नाम लिखूँ ,
बस क़लम की रफ़्तार नहीं सदा ए दिल की परवाज़ भी देख ।
हर्फ़ दर हर्फ़ क़लम से उड़ रहे थे उसके ,
फिर भी वो शख्स बहुत देर तलक तेरा नाम लेता पड़ा खामोश रहा ।
कलम कभी बुड्ढी नहीं होती ,
तज़ुर्बा ए उम्र दराज़ के साथ जौहर ए सुर्ख हर्फ़ों का और परवान चढ़ता है ।
ये भी एक अदा ही थी दिल चुराने की ,
पहले बात किया हँस के फिर गुस्से से मुँह फेर लिया ।
दो चार नज़्म हैं जो हलक में अटकी हैं ,
गोया उधार की साँसों के दम पर अब तन्हा जिया नहीं जाता ।
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