सात समंदर की स्याही को मैं कलम करके one line thoughts on life in hindi
सात समंदर की स्याही को मैं कलम करके ,
कोरे अम्बर पर माँ का नाम लिखा करता हूँ ।
सिपाहियों को सबके चैन ओ अमन की परवाह हुआ करती है ,
सच्चे माँ के लाडले हैं वही राष्ट्रभक्ति जिनकी राह हुआ करती है ।
जब भी आसमानी फरिश्तों की बात चलती है ,
सबसे पहले बस माँ का ज़िक्र होता है ।
वो वक़्त और था जब दर ओ दीवार पर इश्क़ के किस्से कहानियां छपते थी ,
अब वक़्त के सफ़हे पर सुनहरी यादें लिखी रहती हैं।
दिखता है कभी कभी उन पर मेरे असरारों का असर ,
जो शब् ए बज़्म गिरा मिसरा कभी उठा न सका ।
रु बा रु होते तो बातें और बयान होती ,
ख़ाली मयकशी में रातें ज़ाया न होती ।
कभी खुद से बात होती है कभी तेरी फ़िक्र होती है ,
मेरी हर एक नज़्म में बस तेरा ज़िक्र होता है ।
कभी माँझी नहीं मिलता तो कभी साहिल नहीं मिलता ,
राह ए मुफ़लिश में बीच मझधार में सफ़ीने डूब जाते हैं ।
तहरीर ए वक़्त की नज़ाक़त को समझ कर ,
हमने मोहब्बतों के शहर से आब ओ दाना ही बदल डाला ।
हाल ए दिल बयानी नहीं करते बस ,
तुम्हारे हर एक लम्स की मेरी साँसों में शिरकत सी है ।
ठिकाना मेरा रात भर का नहीं ,
सुबह को लाश मेरी हर रोज़ मेरे बिस्तर पर मिलती है ।
सजाना हो तो मेरी मैय्यत हर रोज़ सजाना ,
जिस्म से ज़्यादा मेरी ज़ीस्त हसीन लगती है ।
जीते जी तारीफ़ी यहाँ मिलती नहीं ,
वाह वाही बटोरने से पहले खुद की मैय्यत सँवार लो ।
दो टके की औक़ात नहीं ,
ज़िन्दगी ख़ैरात की बात करती है ।
जंगले से झाँकती कुम्हलाई सी रोशनी कोई ,
अधखुली पलकों में सरगोशियों से ग़ज़ल कोई छेड़ गयी ।
जिन्हें शौक़ था महफिलें सजाने का ,
वो महफिलों की शान होते गए ।
जो बच गए जान गवाने से ,
वो महफिलों की जान होते गए ।
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