जो कीन्हे काज ब्याह मा न नुकुर या तनिकौ तुनुक मिजाज़ी hindi literature poetry ,
जो कीन्हे काज ब्याह मा न नुकुर या तनिकौ तुनुक मिजाज़ी ,
सरऊ के गाँव मेड़ी से हुका पानी बंद कराई परपाजी।
ता काहे परेशान होतिस ही ,
गा है गर दिल तोड़ के जा तोर है ता वापस लौटबै करि कहाँ भागी गठजोड़ के ।
लग्गा दूती ही हो श्रृंगार जिसका ,
ऐसे लबरा लबरी चाहे जहाँ आग लगवा दें ।
पानी काँजी से बचत घर कटुईंदार ,
द्वारे गोफना लए खड़े बंद हथियार ।
ज़हन से फरिका तक बर्केटा मार दीन ,
रात से तोरी याद पड़ी दैय्या नाहर सी चौगान में ग़मगीन ।
घर के सगली दीवार दिहरान जाथी ,
लोगन का पड़ोसिन के टुचके पिचके तसली डेचका भड़बन के पड़ी ही ।
बिसादखाने से रोशन है हुश्न का श्रृंगार अगर ,
तरकारी खटकहाई की ही बियारी में परोसी होगी ।
माल मवेशी का निकबर मर गयीं ,
जो भर भर गगरी दूध में अहिरा छुट्टा मसकत पानी ।
बिंदी टिकुली चुड़िया तरकी सिंगार सजा मनिहारी के ,
तरछन चुइगा तरछी छुइगा अब रात कटत बलिहारी मा ।
मनुस चाबन भयो बिरहुला , बिरहुला भा नहीं न सूती भर भयो दूध ,
बाप का ज़िंदा गाँव का मोड़ा बढ़ायौ दाढ़ी मूँछ ।
जब चौखट के भीतर ही हमारी मुलाक़ातें नहीं होती ,
फिर चौगान में आके फाफड़ कूटना कैसा ।
दो चार गंडों में बँट गया कैसे बढ़ते परिवारों का काम ,
दो चार बीघा और ज़मीन में फ़ज़ली लगवाओ आम ।
जेठ बैशाख के लूका में भी गर पाला पड़े ,
तोहें सथरी बिछवा दूं अमुवा की छाँव तले ।
मट्ठा न हो खट्टा अगर रसाज की कढ़ी मा ,
कूचा न कपार लोढ़बा सिलौटी मा नून बूक लै या ता मिर्ची खूथ लै भात खा लै अचार मा ।
ककई खीलत साँझ भई ,
लीख मिला न चीलर ज्योनार का अबेरी हो गयी ख़त्म करा परपंच ।
आपन भुगतब अपने करमे ,
करे कौन गुरुआरी जाके टट्ठ में कुदई की रोटी कौन सजावै सोहारी ।
उनही पार्टी मा जाय के डिओ परफ्यूम के पड़ी ही ,
यहां लू से सगला करेजा बरा जात है ।
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