परिंदों की नीयत पर सवाल है shayari in hindi ,
परिंदों की नीयत पर सवाल है ,
दिलों में बग़ावत की हवा उतनी ही बेशुमार है ।
जलते बुझते चरागों से पता चलता है ,
ग़म की तासीर दिल में कितनी है ।
राख के ढेरों में सुगबुगाहट है ,
रात के जलते अरमान रह गए हो जैसे ।
सवाल जितने हो चिलमन की ओट से ,
आज सरे बज़्म लबों की लर्ज़िशों को निगाहों से बेपर्दा कर दो ।
आज भी है क्या वो हसीं इतना मैंने छोड़ा था गैरों की पनाहों में जितना ,
आज भी गूँजती होगी हँसी बागों में मगर वो रंग ओ बू वो हसीन कहकशां नहीं होंगे ।
जलाओ चराग़ सेहर होने तलक ,
अभी शाम ए बज़्म में ग़ालिब के ख़्याल बाकी हैं ।
एक तूफ़ान सा मचा है दिल के अंदर में ,
घर के बाहर घनघोर घटा छाई हैं ।
रात अटकी है उनके पहलू में ,
चाँद तारों न ठंडी आहें भरो ।
कितने नग़मे ख़ुद बा ख़ुद बनकर बिखर गए ,
वो जब बहार आने से पहले सँवर गए ।
झड़ रही है बदलियों से शबनम पतझड़ हो जैसे ,
चाँद तारों ने ज़र्रे ज़र्रे को दावत में बुलाया हो जैसे ।
निझड़े बागों मे ग़ज़ब की रंगत है ,
बहकी पवन पुरवइया ऋतू बसंत फिर आई ।
वो रोज़ रोज़ का तमाशा वो साद ओ ग़म वो हँसी ,
जा मोहब्बत की तिज़ारत से तुझे आज़ाद किया ।
साहिल पर खड़ा होकर समंदर का मिजाज़ तौल लेता है ,
ये शहर सोता नहीं रात भर तमाशाइयों का तमाशा किया करता है ।
दर्शक दीर्घा से आगे बढ़ कर ,
क़तार में कोई पूछे तो पूछे हाल ए मुफ़लिश कैसा है ।
हम अपनी बर्बादियों का जश्न मनाने का हुनर रखते हैं ,
तुम तमाशबीनों की तस्दीक़ तो कर लो ।
मुझको मेरे साद ओ ग़म की परवाह नहीं ,
ज़िन्दगी मेरी तमाशा मैं ख़ुद इसका तमाशाई ।
जली बुझी सी सिझी सी कभी सुलगी सी ,
हर रात एक अनसुलझी पहेली है प्यारे ।
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