ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस one line thoughts on life in hindi,
ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस ,
ग़म के साथ तर्क़ ओ ताल्लुक़ भी तार तार हुए ।
कमाल की शायरी में जुमले कमाल के ,
ये आरज़ू ए आशिक़ी है या मौसम ए सुखन ।
मोहब्बतों की सारी उम्मीदें गर मुझी में सिमटी हों ,
मैं कैसे किसी गैर की आरज़ू करता ।
लिख सकते हो गर लबों पर मोहब्बत लिख दो ,
प्यासे नज़रों में दीदा ए यार की तलबगीर सम्हाली नहीं जाती ।
वो जो नज़रों की जुम्बिश बहुत समझते हैं ,
कभी आरज़ू ए दिल का जवाब तक नहीं देते ।
तेरे ख्यालों का मखमली एहसास ,
लम्हा लम्हा ज़हन में चुभता है ।
इस जहां के बाद भी होगी कोई मंज़िल ए बहिश्त ,
जहां दो रूहें सुकून से दीदा ए यार करेगी ।
आजकल नींद कहाँ पूरी होती है ,
ख़्याल ए यार में ख़्वाबों की जन्नत सी दूरी होती है ।
मखमली बिस्तर पर भी ख़्याल ए बहिश्त ,
हिज्र की रातें बस करवटों में कटती हैं ।
शहर भर का सुकून है गर तेरी नज़र ए बहिश्त ,
मुझको मेरा जला हुआ दिल फिर लौटा दे ।
बहिश्त ए चिलमन के तले भी ख्वाब पलते हैं ,
मुमकिन है उनका अपना सूरज एक अपना आसमान हो ।
फ़िज़ा की गर्दिशें ख़ाक उड़ा ले जाएगी ,
ऐ शहेंशाह ए बहिश्त इतना फौलाद न बन ।
जब भी लिखता है तो ज़हर लिखता है ,
आदम ए सूरत से भोला है मगर जिगर से खूंखार दिखता है ।
तुम म्यान ए समसीर से धार की बात न करो ,
हम दोस्ती में हर गुनाह माफ़ करते हैं ।
अपनी मिटटी को जनाज़ा कहता ,
दोस्त बनकर कैसे अपने काँधे का सहारा देता ।
बनी बनाई बातें करने का ज़माना बीत गया ,
दोस्त होतो सुख दुःख में साथ आहें भरो ।
ग़म अगर हो तो बात अच्छी है ,
उल्फत ए दौर में साद ए सामान थोड़ा ज़्यादा है ।
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