मासूम से चेहरे की शिरकत से मची उफ़ तौबा love shayari,
मासूम से चेहरे की शिरकत से मची उफ़ तौबा ,
महफिलें लुटी लुटे दिलों के कारोबार लुटे न पेशानी पर सिकन न लबों से हुयी हाए तौबा ।
बड़े नाज़ुक से ख़्यालात हैं , दिल की दीवारों पर टंगी तस्वीरें बदल डालो,
वो जंगले बदल डालो वो रोशनी बदल डालो I
गम के दौरान मोहब्बतों से तौबा करके ,
सरे राह खड़े होकर आशिक़ों के बाजार में सोचते हैं वो गोया अब कोई और कारोबार करेगे ।
जितना खर्चता हूँ ये दौलत कम नहीं होती ,
मोहब्बत के गली कूचों में जैसे टकसाल चलते हो ।
वो आँखों की ज़राफत वो बातों का सादापन ,
देखकर होठों का तबस्सुम कोई क़तील भी इश्क़ कर ले ।
कभी मेरे दुश्मन ए यार से पूछो फ़राज़ ,
बावज़ूद ए नफरत के वो मुझसे प्यार क्यों इतना करता है ।
इतनी नफ़रत तो न थी ज़माने भर में बदनाम करने के लायक ,
गोया हमारी शख्सियत ही ऐसी थी की हम गुमनाम रह न सके ।
खाट पर लेटो तो फलक पर चाँद नज़र आता है फ़राज़ ,
आंख बंद कर लो तो ख़्याल ए यार में दिन निकल आता है ।
खिलते नहीं हैं गुल बस शब् ए माहताब में ,
कुछ फूल हैं अंजुमन के जो तपती धूप में जलते हैं ।
तुमने पूँजी कमाई घर बनाया ,
यही दो चार हर्फ़ टूटे फूटे सुखन में हमने ज़िन्दगी का सारा आलम गंवाया ।
आज मोहब्बत बुझी बुझी सी है ,
सारा आलम धुंआ धुंआ सा है ।
हर उम्र के दौर में हाल ए दिल ज़ख़्मी ही रहा ,
कभी टूटा खिलौनों के लिए कभी इश्क़ में खिलौना समझ के तोडा गया ।
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आजकल घर के दरवाज़े पर दस्तक होती नहीं ,
दिल के दर ओ दीवार पहले ही मचल जाते हैं ।
जलता है तो जल जाए जहां सारा ,
हम तुमको दिल के नशेमन में चिलमन से छुपा के रखेगे ।
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