आईने में भी अब झुर्रियाँ नज़र आती हैं dard shayari,
आईने में भी अब झुर्रियाँ नज़र आती हैं ,
वक़्त के साथ वो भी बूढा हो चला जैसे ।
मासूम से चेहरों पर अदायें फ़ानी ,
हुश्न ऐसा की सारा शहर क़त्ल गाह कर दे ।
जचकी वाले पान सी हलक़ में आके अटकी है मोहब्बत तेरी ,
न उगलते बने न निगला जाए ।
कभी फुर्सत मिले तो मोहल्ले का भी रुख़ कर लेना ,
चौराहे पर मिलेंगे जिगर हर चिलमन जलाये हुए ।
गम ए रुख़सती मिली तुझसे रुखसत होके ,
ज़मीर पर बोझ बन पड़ी थी मोहब्बत तेरी ।
इश्क़ में अंधा शायर बना फिरता है ,
देखता नहीं है अल्लाह राम बस मेहबूब मेहबूब किया करता है ।
गए घर से ख़ुदा की नमाज़ अदा करने को शायर ,
रास्ते में मेहबूब मिला खुद ही अदा होकर लौटे ।
ख़ाक ही छाना है शायर इश्क़ में छलने के बाद ,
तन लंगोटी और भभूति बन गया साधू मलंग दिल के जलने के बाद ।
पथराई आँखों में जम गए मोती ठण्ड के मारे ,
गोया हम समझते थे ख़ारे दरिया में बह गए सीप के मोती सारे ।
क़त्ल हुआ इश्क़ में शायर बदनाम शायरी कर गया ,
मरे हैं और भी आशिक़ इश्क़ की राह ए ज़फ़ा में बस नाम शायर के सुखन का रह गया ।
तालीम ओ तर्बियत से नहीं हूँ हर दिल अजीज़ में ,
इश्क़ में नाशाद हुआ है दिल और कफ़न दाग़दार है मेरा ।
झपकती पलकें सीना चीर दिल निकाल देती हैं ,
तेज़ है खंज़र ज़माने में लोग इश्क़ जिसे कहते हैं ।
दुल्हन सी सजी रात चाँद तारे भी हैं साथ ,
पल भर का सवेरा भी देता नहीं है साथ ।
सज़दे सा उठाये पलकों पर हर जलवे यार के ,
खुली आँख से जो घूरे ज़माना तो भी कोई ग़म नहीं ।
आँखों में बंद करके पलकों से ढाँप दूं ,
तू बस मेरी है जान ए ग़ज़ल मैं ही बस पढूँ ।
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