हिज्र ए यार में रात शमा देर तक जली love shayari,
हिज्र ए यार में रात शमा देर तक जली ,
बेख़ौफ़ परवाने यूँ ही आशिक़ी में फ़नाह होते गए ।
जगमगाते जुगनुओं की वजह से नींद आँखों से दफा है ,
आ सारी रात शहर भर की बत्तियाँ ही बुझा दें ।
दिल के झरोखों में आरज़ू ए आरसी ही सही ,
तेरी नाज़ुक ख़्याली का तर्क़ ओ ताल्लुक़ मेरी दुनिया से तो है ।
हमारी हिम्मतों की इन्तहा तो देखो ,
गोया तेरे एक दरस की ख़ातिर जाने कितने चाँद रात एक किये हैं हमने ।
हम नज़र से नज़र मिलाने की ज़हमत ,
वो पलकें उठाने की हिमाक़त तो करते ।
रात के सीने में दहकती कांगड़ी की लौ ,
फिर परिंदों ने आशियाना बसाया होगा ।
कसूर अपने समझ आते नहीं ,
ज़ख्म गैरों ने मज़बूरी में दिए होंगे ।
हिज़्र के मौसम में दरख्तों से टूटते पत्ते ,
ज़र्द कागज़ ही नहीं कलम को भी गदा कर देते हैं ।
सियासतें चलती रही वतन जलता रहा ,
बुझी न ख़ाक आदम की सियासी तबा चढ़ता रहा ।
ढल गयी रात चाँद सितारों वाली ,
शब् ए हिज्र को अब तो चिलमन में छुपाओ यारों ।
आस्मां के चाँद तारे बदल जाते हैं ,
ग़म ए गर्दिश में ख़ूबरू नज़ारे भी अज़ाब नज़र आते हैं ।
यूँ दबे पाँव चाँद का तेरी पायल को तकना थक के गिरना झील में ,
फिर उसी हलचल से उठना जग रहा हो जैसे नींद से ।
थिरकते क़दमो की आसमानी हलचल ,
शब् ए हिज्र में अंजुमन का चाँद तारों से भरना ।
जो कभी ज़ुल्फ़ों की छाँव में दिन को आफ़ताब किया करते थे ,
हिज्र की रातों में चाँद तारों से झुलसे कैसे ।
डसती थी पहले भी रात तन्हा नागिन बनकर ,
हिज़्र तेरा मुझे जीते जी मार गया ।
रूहों के दायरे में थी दूर तक निकल पड़ी ,
सामना हुआ हक़ीक़त से तो मोहब्बत फ़फ़क पड़ी ।
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