ज़िद उनकी दिलों से खेलेंगे romantic shayari,
ज़िद उनकी दिलों से खेलेंगे ,
गोया हम भी तन्हा अंधेरों में सोते नहीं है फ़राज़ ।
वो हमारा इश्क़ सरहदों में बाँट रखे हैं फ़राज़ ,
गोया एक हम है जो दिल देते वक़्त दोस्त दुश्मन देखा नहीं करते ।
दर ओ दीवार भी सिसकती हैं ,
सरहद पर गया फ़ौजी जब तक घर लौटता नहीं ।
सरहद पार से लोरियाँ सुनाने का रिवाज़ ,
रात भर सोये नहीं लगता है साथी बुरा मान गया ।
वो कहते हैं जंग करो फ़राज़ ,
गोया यहां भी अपना वहाँ भी अपना ही कोई खून बहेगा ।
बेवफ़ा तुम हो क़बूल करो ,
रात तो हर शाम के बाद सेहर होने तक मुक़म्मल है फ़राज़ ।
उन फ़ानूसों में भी रूह बसती है फ़राज़ ,
जो फ़लक़ पर कभी चश्म ए तामील हुआ करते थे ।
दर्द कौन जाने जलते चरागों का ,
कभी घर में कभी मज़ारों में तन्हा छोड़ आते हैं ।
हर एक की तारीख़ मुक़र्रर है ज़माने में ,
जाने किस ख़ौफ़ में मुर्दा बदन को धोते हैं ।
हम दिन भर घरों में ताला लगाए फिरते रहे ,
शाम को दिल हर रोज़ लुटा लुटा क्यों है ।
सड़क के उस ओर बैठी बुढ़िया सोच रही है ,
सरहद पर बड़ा सन्नाटा पसरा है ,
जंग ख़त्म हो गयी शायद अब उसका मुन्ना घर को लौट आएगा ।
मैं अपनी तन्हा रातों सा मुफ़लिश ,
मेरे मुन्तज़िर खड़े दो नैना तेरे बाब तकते हैं ।
कभी तुम भी ज़ुल्फ़ें फहराया करो ,
हर रात काली नागिन सी भेज देती हो नज़रों पे लहराने ।
तुम किताबों में चले आया करो ,
हम नग़मे ही गुनगुना लेंगे।
सूखी चादरों में लिपटे आँसू ,
रात गए जाने कैसे भीग गए ।
रात का मख़मली एहसास सा सुखन ,
सुबह होते ही हर्फ़ दर हर्फ़ लफ़्ज़ों में फूट गया ।
शाद ए दिल की रंगीनियों का मिजाज़ ,
कुफ्र और हिज्र से नाशाद नहीं ।
ज़िन्दगी मख़मली नहीं खार सही ,
फिर क्यों न तह ए दिल से शाद ए तान कोई छेड़ा जाए ।
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