दिल ए फ़ितना और तलाश ए इश्क़ है मंज़िल ए मक़सूद alfaaz shayari,
दिल ए फ़ितना और तलाश ए इश्क़ है मंज़िल ए मक़सूद ,
इस शब् की सेहर से पहले ख़ुदा करे मुक़म्मल ज़मीन मिल जाए ।
राह ए खू है तो मंज़िलें खू ,
मुमकिन है वादी ए इश्क़ में हो खू ए नज़ारा हरसू ।
ग़र ज़माने भर के लोगों की परवाह किया करते ,
खुद के खू ए इश्क़ की ख़ातिर क्या बद्दुआ करते ।
मत चल साथ मेरे राह ए मंज़िल में रहनुमा बनकर ,
देख लेंगे लोग तो ताने देगे ।
फ़िक़्र थी तुझको ज़माने भर के लोगों की ज़ालिम ,
एक मेरा इश्क़ ही नागवारा गुज़रा ।
रात सरगोशियों से चुपके ,
तन्हा पतंगों की गुनगुनाहट में मंज़िल ए मक़सूद तलाश करती है ।
हर ख़ास ओ आम की ज़बान है उर्दू ,
फिर भी राह ए मंज़िल में मुक़ाम से गुमसुदा है उर्दू ।
रहता है फ़िराक ए यार भी मंज़िल की राह में ,
बस ग़ौर तलब ये है इज़हार ए मोहब्बत लब से कभी करता ही नहीं ।
साथ गुज़रे वक़्त की दास्ताँ कहता है ,
एक चेहरा दिल में दस्तक आर पार देता है ।
वक़्त के साथ खिया गयीं बत्तीसियाँ मुँह की ,
अब लुक़मान की खातिर नया जबड़ा ही लगवाओ यारों ।
अभी तो बेनक़ाब होंगे रिश्ते सारे ,
साथ चरागों के चिलमन तन्हा नहीं जलता ।
मेहबूब ए इश्क़ में ही बसर ज़िन्दगी क्या है ,
कुछ दिलों के दरमियाँ जज़्बा ए वतन भी रखना चाहिए ।
रगों में रवानी ही नहीं ज़िंदा होने की पुख़्ता निशानी माँगता है ,
वतनपरस्ती में ज़मीन ओ आस्मां क़ुर्बानी माँगता है ।
क्या ज़मीन ओ आस्मां मंज़िल ए मक़सूद के आगे ,
है सितारों से आगे का कारवाँ , न रुकेगा विसाल ए यार से पहले ।
दरमियाँ ए ज़मीन ओ आस्मां दिलों ने सौगात उठा रखी है ,
विसाल ए यार की ख़ातिर शब् ए बारात सजा रखी है ।
लफ़्ज़ों के निकले हैं सरारे अंदाज़ ए गुफ़्तगू बनकर ,
हुक़ूमत इसे इन्किलाब कहे या दफ़न कर दे महज़ जुस्तजू कहकर ।
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