अब गुनाह ए दस्तूर सी लगती है मोहब्बत तेरी 2line attitude shayri,
अब गुनाह ए दस्तूर सी लगती है मोहब्बत तेरी ,
बिना रश्म ए रंजिश के क़त्ल करती है मोहब्बत तेरी ।
गुनाहों पर गुनाह किये जा रहा हूँ ,
आग के दरिया से बच निकला तो इश्क़ के दरिया में डूबा जा रहा हूँ ।
मलमल की सेज़ पर सुकून मिलता नहीं ,
वतनपरस्ती में काँटों के राह भी जन्नत का लुत्फ़ देते हैं ।
मरीज़ ए दवाख़ाना जो खुलते हैं मज़लूमो के वास्ते ,
न इलाज़ करवा सको मुहैया तो तब्दीलियत ए क़त्लगाह ही कर दो ।
शब् ए माहताब जल गया इश्क़ का सरारा सारा ,
एक नज़र की जुम्बिश और फ़नाह नज़ारा सारा ।
दर ओ दीवार पर सजा रखे हैं शहर ए नामचीन कई ,
कुछ इश्क़ ए दानाई और मौज ए बदनाम कई ।
बख़त करता नहीं दिल महज़बीनों की,
यही तो एक अदा इश्क़ को क़ातिल बनाती है ।
रह रह के टूटना बदन का रह रह के मचलना ,
ये मौसम ए हरारत ही नहीं इश्क़ की भी शरारत है ।
न उम्र से पहले दम तोड़ दे पसलियां ,
सेहर ए आगाज़ का जोश ए जुनून के साथ इस्तिक़बाल करना चाहिए ।
क़ातिलों ने वजह ए क़त्ल बता डाला ,
वक़्त है मौका है दस्तूर है बस रवायत को निभा डाला ।
रणबाँकुरों का कोई मुहजवाब नहीं होता ,
वतन परस्ती में जान ओ माल का कोई हिसाब नहीं होता ।
वतनपरस्ती की जब माँ के लालों में बात चली ,
बाँध के सर पर क़फ़न दीवानो की टोली साथ चली ।
क़ातिलों के शहर में कोई तो बचाने वाला भी होगा ,
टूटा हुआ दिल हथेली पर लिए फिरते हैं कोई तो दिल लगाने वाला भी होगा ।
वो मिलता है हर रात दर्द ए दिल का हिमायती बनकर ,
फिर तड़पाती हैं सारी रात यादें उसकी हिदायती बनकर ।
रात जब क़ातिलों की जिरह छेड़ती है ,
रंग ए खून और वजह ए क़त्ल की भी गिरह खोलती है ।
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