ख़ुलूस ए हुश्न का भरम न टूटने पाए romantic shayari ,
ख़ुलूस ए हुश्न का भरम न टूटने पाए ,
मैं सेहरा से प्यासा ही गुज़रा निगाह ए शोख़ की शौऱीदगी की ख़ातिर ।
कौन उलझे कौन फरियाद करे ,
ख़्याल ए इश्क़ में गुज़ारी हैं रातें सारी आफताब ए इश्क़ में सबा कौन बर्बाद करे ।
साद ए गुल को समझाए कौन ,
खिज़ा की आँधियों में भी मौजों से झूम लेते हैं ।
दुआ देता या बद्दुआ देता ,
वक़्त ए रूख़्सती में तह ए दिल से अलविदा करता ।
वो रूख़्सती भी मागा था ऐसे लहज़े से ,
दिल न देता तो जान ही ले लेता ।
कौन खुश है यहां खिलौने से ,
कभी खेले कभी खुद टूट के बिखर गया खिलौने से ।
रात क्या ख़ाक करेगी मेरे अरमान पूरे ,
ख़्वाहिश ए दिल को तेरी यादों का चिलमन उढा के आया हूँ ।
ये इश्क़ ए वाकिया जिधर से गुज़रा ,
शहर ए आदम का माहौल मातमी करते गुज़रा ।
तन्हाईयाँ हैं महफ़िल भी ,
दौलत ए इश्क़ का यगाना सगूफ़ा है ।
वक़्त की बिसात में हर शख़्स पिट गया ,
राजा हो या हो रंक कोई न रह गया ।
ये तबाही ए मंज़र बस चश्म ए आम रहा ,
मत पूछ दिल ए नादानियों का क्या काम रहा ।
फर्श पर बिखरे पड़े हैं पैमाने ,
हाल ए दिल पर क्या गुज़री है ये रब जाने या मैखाने ।
गर शराब से तौबा करता ,
शब् ए फ़ुर्क़त में तन्हाइयों का क्या करता ।
क्या कभी होता है इश्क़ ए फ़ितूरीयों का भी ज़माने की रज़ामंदी से काम ,
कभी दिल नहीं मिलते तो कभी रश्म ए उल्फ़त पर पाबंदियां लगी होती है ।
वक़्त का जाने क्या चला जाता है ,
ये नहीं की तक़दीर को ढंग से सँवरने दे ।
एक मुख़्तसर सी मुलाक़ात क्या तमाशा हुआ ,
रुख़ से ज़ुल्फ़ें जो गिराईं बेतहाशा हुआ ।
लोग मिलते हैं बिछड़ते हैं राह ए मंज़िल में ,
तेरी फिर दीद का तलबगार दिल ज़रा सा हुआ ।
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