दिलों का जूनून ही है जो ज़िंदा बनाये रखता है dard shayari ,
दिलों का जूनून ही है जो ज़िंदा बनाये रखता है ,
गोया चंद साँसों की गुलामी है ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं ।
तर्क़ ओ ताल्लुक़ न तुझसे कोई मुलाक़ात सही ,
रात की तन्हाइयों में तेरा पहरा है ।
नज़ारों के बदलते मंज़र न ख़ूबरू ए बहिश्त पर नज़र ,
सर पर आँचल है माँ का ज़मीन जीनत से कम नहीं ।
दिलों से दिल बस मिलते अगर दिमाग घर में छोड़कर कर आते ,
जन्नतों की ज़रुरत नहीं महसूस किया करते सारी दुनिया खुदबखुद बहिश्त हो जाती ।
घाट में शोक है हाट उचाट गए वन उपवन नर किन्नर कलियाँ कुम्हलाये सभी ,
कासे बोलूँ मैं कथा व्यथा सांवरे तुम बिन कछु मोहे भाये नहीं ।
कुछ ख़्वाब सोने नहीं देते ,
ज़िन्दगी उन्ही ख़्वाबों की ग़ुलाम लगती है ।
कल कारखानों की जलती भट्ठियों में सुलग जाता है ,
मज़दूर का बहता पसीना अन्धकार की गुलामी को चीर कर एक नया सवेरा लाता है ।
जितने रस थे बिखरे पड़े हैं मधुवन में ,
कान्हा की बांसुरी ने छेड़ी ऐसी कोई तान मधुवन में ।
रात को सोती नहीं तेरे ख्यालों का पहरा देती हैं ,
मेरी नज़रे तेरे इश्क़ की ग़ुलाम लगती हैं ।
सर्व छंद अलंकार से सुसज्जित ,
कृष्णा तोरी छवि करती है मोरे मन को मोहित ।
हो अर्जुन के सारथी तुम ,
हो द्यूत में महारथी तुम ,
देकर गीता का ज्ञान हमें असत्य पर सत्य की विजय का पढ़ाया तुमने ।
मीरा के तुम तारक हो तुम ही कंश संहारक हो ,
सुदामा के मित्र तुम्ही तुम सम्पूर्ण जगत के प्रतिपालक हो ।
सांवली सूरतिया तोरी मोहक मनभावन ,
तोरे दरस से प्रज्वलित वन उपवन ।
ग्वाल बाल सब सखा तुम्हारे नन्द के लाल जग के पालन हार ,
तुम सर्वोपरि तुमसे सृष्टि की रचना सारी तुम नन्द किशोर जगत के तारणहार ।
माखनचोर मदनकिशोर तुम कान्हा तुम बाँके बिहारी ,
तुम गोपिन के रासरचइया तुम त्रिभुवन के त्रिपुरारी ।
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