डूबे डूबे नैनन में झिलमिल चाँद सितारे shayari ,
डूबे डूबे नैनन में झिलमिल चाँद सितारे ,
तोरी बतियन में तोरी पतियन में बीते मोरे साँझ सकारे ।
माना खिज़ा का मौसम है बाग़ ए बहार में ,
जो बच गए पतझड़ से वो ही सदा बहार है ।
चलते फिरते अदाओं के जलते सरारे न बिखेरो प्यारे ,
तुमसे जलने वाले जल के ख़ाक न हो जाएँ प्यारे ।
बारहां सेहराओं के चारों तरफ़ ,
गुलामी ए इश्क़ ही सुर्खरू है मेरे चारों तरफ़ ।
मुर्दों की तस्कीन किया करती है ,
सफहों की ज़िंदा लाशों में क़लम जान भरा करती है ।
मुजस्सिमों के कांधों पर मुर्दों की सैर हो जाए ,
क्यों न सियासत की क़लम से ठेठ मुठभेड़ हो जाए ।
आस्मां के अब्र ओ आब पर ज़ुल्म होता है ,
ज़ुल्फ़ हटा कर जब अब्रू ए फानी से दिलों का क़त्ल होता है ।
कोई ऐब नहीं करता ज़माने के वास्ते ,
दोज़ख में क्या मुँह दिखायेगा खुदा के वास्ते ।
किस से तौबा करता किस से गिला रखता ,
बोझ इतना था मेरी रूहों में जिस्म न फनाह करता तो क्या करता ।
भौतिकता ही परम सुख की पराकाष्ठा होती ,
आत्मा मृगमरीचिका बन वन वन न भटकती ।
दबी कुचली सिसकती आहों में ,
तपती धरा से त्वरित उत्पन्न कोपलों में आज फिर अंधेरों से बगावतें हैं ।
क्रंदन में स्पंदन में वसुंधरा के कण कण में ,
नाचे मन बना मयूरा बाग़ बगीचा वन उपवन में ।
साख पर विचरित लताएं कोपलें ,
कर रही श्रृंगार रज का भोर की नव किरणे ।
समरसता से घुल रही है जल पर ओजो मयी किरण ,
अटखेलियां कर रहा है लहरों पर सूरज सरल विरल ।
सिरा से धमनियों तक न रक्त सुप्त पड़ जाए ,
सुनहरी रोशनी का बदन पर प्रखर विस्तार होना चाहिए ।
ज़र्रा ज़र्रा महक़ जाए चमन का रंग ओ बू से ,
गुलों का ख़ाक ए बदन चाहे बाकी निशाँ हो ।
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