रिन्द तो ख़्वामख़्वाह बदनाम हुआ है जाम ए मैकशी के बाद dard shayari,
रिन्द तो ख़्वामख़्वाह बदनाम हुआ है जाम ए मैकशी के बाद ,
क्या लोग नहीं मरते इश्क़ में ख़ुदकुशी के बाद ।
दास्तान ए इश्क़ गर ख़त्म हो जाती सेहर से पहले ,
सुकून भर रूह सो लेती कब्र में क़हर से पहले ।
ज़ख़्मी न कर दें पाँव कहीं जमाल ए यार के ,
बिखरे पड़े हैं राह में टुकड़े सीसा ए दिल के टूटे हुए प्यार में ।
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मैं हर सै को सीसे में उतार आया हूँ ,
दिखता है कुछ और ही ज़माना ये जाम ए मैकशी के बाद ।
जाम ए मैकशी से ज़्यादा पाकीज़ा था क्या ,
क्या मिला मुझको बिन पिये मौत से तौबा करके ।
जाम ख़ुशी का हो या ग़म ए गर्दिश का ,
रूबरू कितने अक़्स डूब जाते हैं इस अंगूरी पानी में ।
शहर ए रानाईयों से वफ़ा की उम्मीद नहीं ,
मुझको मेरी वीरानियों में जाम ए मैकशी मंज़ूर सही ।
एक आईना ही रहा ताउम्र का हमसफ़र अपना ,
लोग वक़्त की परतों से धुंधले अक़्स फेंक देते हैं ।
बेनाम जिस्मो को मौत आती नहीं ,
इस क़दर से किया इश्क़ की रूहों को बदनाम कर गया ।
जाम ए मैक़शी के बाद कोई झूठ न बुलवाये ,
यारों जहां में मौत से ज़्यादा कोई हसीन नहीं ।
ज़िन्दगी के तब ओ ताब में जलता रहा लिबास ,
जाने कैसे सुकून पायेगी रूहें ख़ाक ए सुपुर्दगी के बाद ।
ज़िन्दगी रुला गयी इतना ,
सुर्ख़ आँखों में अब मौत कहाँ आएगी ।
दिल का हकीकत से सरोकार नहीं ,
खुसरों की पहेली सा बस हसरतें तमाम करता है ।
देख कर तेरी नज़र ए समसीर जाने क्यों ख़्याल ए आया ,
निगाह ए मैक़शी के बाद ही दिल को दीदार ए यार का तलबगार पाया ।
एक ख़ुशी का तलबग़ार था दिल ,
ज़माने को ये भी गवारा न हुआ ।
रवायतें ख़त्म कर दी दिल की सल्तनतें बढ़ाने की ,
जाने किस ख़ुमार में एक शहंशाह आज तलक घूम रहा है ।
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