दरूं ए इश्क़ मुक़म्मल जहां नहीं मिलता sad poetry in urdu about love ,
दरूं ए इश्क़ मुक़म्मल जहां नहीं मिलता ,
कहीं ज़मीन नहीं मिलती तो कहीं आसमान नहीं मिलता ।
वो खुश है गैर की बाहों में कोई बात नहीं ,
यूँ रश्म ए ए उल्फ़त निभाना हमारी फितरत में नहीं ।
ये इश्क़ ही दर्द की इन्तेहा नहीं समझता ग़ालिब ,
हर रोज़ खून ए जिगर से दिल पर तेरा नाम लिखता है ।
हम बेरोज़गार घूमते थे किसी को परवाह तक न थी ,
अब रोज़गार ए इश्क़ में ज़माने भर की तल्ख़ियाँ मिल रही ।
जमाल ए यार के सज़दे में झुकते हैं कैसे कैसे ,
पंडित काजी पादरी न जाने शहर ए नामचीन कितने ।
फ़लक़ पर से कभी ज़ीस्त ए आतिशा गुज़रा होगा ,
चंद लम्हात की ख़ातिर ही सही हुश्न ए जन्नत के तसब्वुर को ठहरा होगा ।
वक़्त के हर पैबंद मिट जाते हैं ,
बस अपनों का दिया दाग कभी दिल से नहीं जाता ।
हर रात की अपनी एक दास्तान होती है ,
लम्हे लम्हे का बयान सुबह सरगोशियों में करती है ।
उम्र हो चली है हुश्न से बच निकलने की ,
इश्क़ के दरिया आज भी उतने ही ज़ालिम ओ ख़तरनाक गहरे हैं ।
अब तो वक़्त ही नहीं मिलता ज़िन्दगी ,
रूबरू तुझसे नज़र मिला के मुतल्लिक़ कोई जिरह छेड़ दें ।
वक़्त के दिए क्या पैबंद देखता है ,
मंज़िलों का मुशाफिर क्या किसी ठौर ठहरता है ।
शराब मैकशी और मयखाना ,
बदस्तूर था ज़ख़्मी दिलों का आना जाना ।
पल में तोला पल में मासा ,
तेरा इश्क़ ए बेफ़िक्री में ग़ज़ब तमाशा ।
खता तो बतला दिया होता ज़ालिम बेरुख़ी से पहले ,
जाने किस वादे वफ़ा पे मैं बेवफ़ा हो गया ।
कुछ पल चैन से जी लिए होते ,
बाद रुख़्सत के तेरे गोया ज़र्रे ज़र्रे न बग़ावत कर दिए होते ।
न वो बेवफ़ा है न क़बूल ए वफ़ा करता है ,
काश इश्क़ में वो दिल ए नाचीज़ का ताउम्र भरम बनाये रखता ।
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