ग़रूर ए आब् से झरने कभी हुंकार भरते थे urdu quotes in hindi ,
ग़रूर ए आब् से झरने कभी हुंकार भरते थे ,
अब चश्म तर आँखें जलते आस्मां को तकती हैं ।
ग़रूर ए जबीन चलता नहीं दानिश्वर के आगे ,
ज़मीनी औक़ात बता देते हैं आसमानों वाले ।
ज़मीनें बाँट दी मतलब परस्तों ने ,
आसमानो में तो सबके ख़ुदा साथ रहते हैं ।
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जब भी बहकूं तू थाम लेना मुझे देकर के आवाज़ ,
वक़्त से पहले कोई क़िरदार न जमींदोह हो जाये ।
ख़याल ऊंचे हो तो आवाज़ भी ऊंची रखो ,
ज़मीन ए ख़ाक में न हर्फ़ मिलने पाएं ।
शहर भर में जब अंधरों की घबराहट की हो,
बने खुद का कोई मुंसिफ जो उजालों का आग़ाज़ करे ।
हश्र देखा है ज़मीनो ने हस्ती ए हुकुमरानों का ,
फिर जमींदोह ज़माने में ख़ाक ए आदम तेरी औक़ात ही क्या ।
ज़मीनी ज़र्रे ज़र्रे से यही आवाज़ आती है ,
कुरेदो ज़ख्म मिटटी के तो रूहें तिलमिलाती हैं ।
ज़मीन का रंग है ज़र्द कहीं सब्ज़ बाग़ नहीं ,
क्या आदम ए ज़हन की ताबीर यही थी ।
नाहक़ का बदनाम है ख़ुदा ज़मीनों के लिए ,
लोहवान कI धुंआ भी ऊपर को ही उठता है ।
दो वक़्त की रोटी और पांच वक़्त की नमाज़ ही हो क़ुदरत जिसकी,
वो मज़लूम क्या जाने शहर ए मुन्सिफ़ में भी सैय्यIद बसता है ।
अब तो किस्से कहानियों से भी आदमखोरों की दहशतें जाती रहीं ,
अब तो बस आदमी को आदमी से यहां पर ख़ौफ़ रहता है ।
ज़मीनें आज भी रंजित हैं वतन की सूरमाओं से ,
लहू हुंकार भरता है जब जियाले सीना तान चलते हैं ।
ज़मीन बदली ज़माने बदले,
न लोग बदले न दिलों की फ़साने बदले ।
तुझसे मिलने का भी वादा पूरा होगा ,
पहले मेरी खुद से मुलाक़ात तो हो ।
अपनी तो मोहब्बत भी तंज़ लगती है ज़माने को ,
एक मुख़्तसर सी मुलाक़ात के क्या क्या मायने निकाल डाले ।
धीरे धीरे खुल रही हैं खिड़कियाँ दिल की,
धीरे धीरे एक नया सवेरा दिल के झरोखों में दस्तक देने को है ।
तू किस क़ौल ए मुलाक़ात पर अटका है ,
आस्मां में हो गर घनेरे बादल चाँद तारे भी ग़ुम जाते हैं ।
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