quotes on darkness in hindi खरोंच दिल पर ज़ख्म अश्क़ों में निकल आये ,,
खरोंच दिल पर ज़ख्म अश्क़ों में निकल आये ,
चोट गहरी थी दर्द लफ़्ज़ों में उभर आये ।
सारी मुबारकबाद कैसे दे दूँ इस डकैती को ,
हमारे दिल की सल्तनत को लूटने सैय्याद फिर आये ॥
चढ़ते हो आसमान में फिर सूरज की तरह चमको भी कभी ,
हमने तारीफ़ ए हुश्न के कसीदे में कई अरमान सजा रखे हैं ।
ज़माने को आइना दिखाने से बेहतर था ,
मरहला हम खुद में तब्दीलियत करते ।
कोई ताल्लुक़ात तो होगा उस सज़र से भी ,
जो मेरे साथ साथ मेरे आंगन में खेलता था ।
माँ ने लोरी सुनायी साये में,
जिसकी शाखों में मेरा बचपन झूलता था ॥
बस लतीफों में गुज़री ज़िन्दगी सारी ,
जब से उसने कहा तुम माहिर ए ख़लीफ़ा हो ।
दिल में कश्मशाहट बदन में अकड़न है ,
जिस तरह लौ जल रही है गोया चराग में भी थिरकन है ।
वो शाम से दूर निकल जाते हैं ख्यालों की तरह ,
फिर सारी रात बस चाँद तारों में कटती है ।
वो आशिकी में दम भरता रहा ,
लोग दिल के छालों को लतीफ़ा कहते रहे ।
इश्क़ के मारों का हाल कूबकू रहा ,
सरगोशियों से जलता रहा नशेमन वो हवाओं को फूंकता रहा ।
एक नज़र का मुन्तज़िर था ये दिल ,
फिर नज़रों नज़रों में उम्र ए रफ्ता हुईं ।
ज़ौक़ ए मुफ्लिश पर तरस आता नहीं ,
दिल खुद बा खुद अपनी तबाही का तलबगार रहा ।
पैंतरे हमसे सीख कर हमी पर आजमाएंगे ,
हुश्न वालों ने सरे शाम आज क़त्ल ए आम करने की दिल में ठानी है ।
बाद हमारे ये नखरे उठाएगा कौन ,
उनकी खुद उंनसे राज़दारी है ।
बस एक अना पे जान अटकी है ,
हुश्न ज़ेहमत ज़रा उठाता नहीं ।
दिल होगा फनाह ये क़ैफ़ियत है ,
या रूबरू ए यार भी इश्क़ ए तारी है ॥
दिल ओ दिमाग पर सुरूर है उसका ,
रक़्स थमते नहीं हैं महफ़िल में ।
रिन्द बस ख़्वामख़्वाह बदनाम हुआ ,
जाम आँखों से पिलाये शाकी ने ॥
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हकारत की नज़र से मत देखो मेरे सर ज़मीन की मिटटी को ,
ख़ाक मिटटी के बने पुतले हैं सब ख़ाक मिटटी में ही मिल जाने हैं ।
वो कहते हैं हमें साहिलों की दरकार नहीं ,
हम वो माझी ए कश्ती हैं जो खुद बीच मझधार लेके डूबेंगे ।
सर्द की ठिठुरन कह रही है ,
चांदनी शब् ए हिज्र में जल रही है ।
दिल भी तेरा खामोश बुतक़दे सा लगता है ,
रूबरू जमाल ए यार है और ख़ुदा ख़ुदा करता है ।
ज़िद बनकर रह गयी थी मोहब्बत तेरी ,
सजा ए मौत के अलावा हकीकत ए रूदाद जहां में कुछ भी नहीं ।
सर्द की रात ओ आलम ए हिज्र ए तन्हाई ,
बीती यादों के पलछिन भी सुकून देंगे क्या यकीन है तुमको ।
कितने वीराने मेरे अंदर तामीर हुए ,
अपनी यादों से कभी पूछा है तुमने ।
अपनी यादों के दरीचे को उठा कर देखो ,
मुक़ाम ए फर्श पर अब भी मेरी मासूम मोहब्बत के निशान पाओगे ।
ख़्वाब सीसे के थे जो छन से टूट गए ,
न कोई गिला है मुझको जा तू भी खतावार नहीं ।
इस क़दर हावी थी मेरे दिल पर बेरुखी उसकी ,
हमने अश्क़ों को भी पलकों तक आने न दिया ।
देखकर उसकी पेशानी पर सिकन ,
हमने खुद अपने नशेमन को वीरान किया ॥
जब निकलेंगे कहीं साथ लेके निकलेंगे ,
लिबास सा तेरे लिए दिल भी घर पर सम्हाल रखा है ।
आँख में शोले लबों पर अज़ाब रखते हो ,
कमाल करते हो सर्द की रात है सरगोशियों में बात करते हो ।
रंग सारे खर्च डाले सातों आसमान के ,
फिर भी क़सम से सूरत ए यार का दीदार न हुआ ।
दिल की वीरानियों का डर था हमको ,
गोया फिर तनहा बसर हमने ज़िन्दगी कर ली ।
दिल की रुस्वाइयों का डर था हमको ,
गोया दिल की धड़कने भी तेरे नाम हमने कर दी ॥
रात सरगोशियों में काटी थी ,
दिन का कोहराम इस क़दर से दिल पे बरपा है ।
मैं तो साहेब ए सरकार के किरदार पर हैरान हूँ इस क़दर ,
आँख में न शर्म का बूँद भर पानी फिर भी शहर के गली कूचे में फ़फ़क के रोते हैं किस क़दर ।
हर चराग था पर्दा नशीन बवाल हो गया ,
फिर महफ़िल में किसने की शमा रोशन ये सवाल हो गया ।
ग़म ए उल्फत की दीदा ए यार की सिवा कोई दूजी दवा नहीं ,
दिल में हवा हवा सी है बस मोहब्बत का पता नहीं ।
यूँ न था की कोई गिला था हमसे ,
बात ये थी की गुफ्तगू ए तर्क ओ ताल्लुक़ की शुरुआत कोई करे कैसे ।
यूँ नहीं की आफ़त ए दौर से गुज़रा नहीं हूँ मैं ,
गोया ग़म ए उल्फत में बिखरे कलपुर्जे खुद के अब तक संजो रहा हूँ मैं ।
नब्ज़ थमती नहीं सर्दी में पसीना आ जाये ,
खुदाया खैर करे हुश्न वालों की महफ़िल में मुर्दों को जीना आ जाये ।
एक उनको ख़बर नहीं अपनी , यूँ तो ज़माने भर की ख़बर रखते हैं ।
आजकल पता नहीं रहता खुद के नशेमन में उनका जाने किस कूचा ए यार में बसर करते हैं ॥
जितनी मुझसे आती थी उतनी समझा दी उनको ,
अब आगे की मोहब्बत खुद ही करके आज़मा लें वो ।
बाद रुखसत के अलविदा कहके ,
लगता है की मोहब्बत के सारे गिले शिकवे भी वो भूल गया ।
अपने ख़्वाबों में तेरी बोसा ए जुस्तजू लेकर ,
हम शब् ओ ओ शब् रोज़ ज़माने भर की गुमसुदगी में सोते हैं ।
वो तेरा रूठना मुझसे चराग हो जाना ,
गुम अंधेरों में ढूढ़ना तुझको मेरी फ़िराक हो जाना ।
न लब पर गिला न दिल में विसाल ए यार की जुस्तजू ,
बर्फ के टुकड़े भी सिसकते हैं शब् ए हिज्र चारसू ।
मोम के टुकड़े थे पिघल गए शायद ,
बुत परस्तिश में हमने चरागों की जगह दिल जलाया था ।
मेरे हालात पर वो संजीदा हैं इस कदर ,
दिल ए फ़रसूदा निगाह ए शेफ़्ता जैसे भटका करता है दर बदर ।
एक तुझको ही हमारे वादे वफ़ा पर यकीन न हुआ ,
यूँ तो तुझको समझने की खातिर उम्रे गुज़ार दी हमने ।
उम्र घटती जाती बुढ़ापा दहलीज़ पर दस्तक दे जाता है ,
तेरे इश्तकबाल में नए साल सदके उतारू कैसे ।
बड़े गुमान से आया है चंद पल के लिए ,
मेरी तरह तू भी कल पुराण होक रह जायेगा ॥
चंद रोज़ की मेहमान है हमेषा सुर्ख़ियों में कहाँ रहती है ,
दिसंबर के बाद जनवरी फिर माह ए दिसंबर का इंतज़ार किया करती है ।
यूँ नहीं की हुश्न ओ इश्क़ में अब गिला नहीं होगा ,
बस तर्जुमान ए बयान बाज़ी में नए साल का नया नुश्खा मिला होगा ।
आज तो मिजाज़ के जश्न ए आलम में पुरवाई बही ,
देखते हैं कल हवाओं का रुख क्या होगा ।
नन्ही सी जान हशरतें हज़ार रखता है ,
गोया कौन समझाए दिल ए नादान को शहर में क़तील भी क़त्ल का सामान रखता है ।
सारा का सारा शहर ही दुश्मन की क़तार में खड़ा पाया ,
जब भी किसी से दिल ओ जान से मोहब्बत की हमने ।
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सजाएं बांटता फिरता था मोहब्बत करने वालों को ,
मोहब्बत की सदा उसके कानो में चुभती थी बाद ए बेवफाई के।
यूँ तो दौर ए उल्फ़त में उम्रें गुज़री थी हमने ,
फिर भी एक लम्स की खातिर तक़ाज़ा कम पड़ गया शायद ।
सबक सारे सिखा डाले थे दुश्मन ए जान को हमने ,
तभी तो कह रहा है वो तेरा इम्तिहान अब लूँगा ।
वो कहते हैं नया क्या है इस आशिक़ के तुर्बत में ,
जब सारा का सारा शहर ही है मरीज़ ए दाना अब तो इश्क़ की क़ुरबत में ।
ज़ोर जबरदस्ती से जब हार गया दिल ,
बस एक नुस्खा ए इश्क़ बचा रखा है रात की रहनुमाई के लिए ।
एक कहानी बची है अब भी शहर भर की ज़बान में ,
था कई ऐसा आशिक़ जो मर कर भी राज कर रहा है है दिल में ।
मेरे दिल के मकान की दहलीज़ अपने नाम कर गया ,
बाद रुखसत के भी वो मुझमे अपना मुक़ाम कर गया ।
जब कोई पूछता है मुझसे मेरा हाल ए मुक़ाम ,
मैं उसको तेरे दर का पता बतला के चला जाता हूँ ।
अब नहीं आती सदायें दिल की सूनी गलियों से ,
तू गया तो साथ अपने शहर भर का कहकशां लेता गया ।
जब से ख़्वाबों में मुलाक़ात तुझसे होने लगी ,
दिन गुज़रता ही नहीं रात बस पलकों में सिमट जाती है ।
जिस सिम्त रात संवर जाती थी ,
उनकी बातों में आज लर्ज़िश है ।
जिस्म से रूह तलक वो इस कदर पोसीदा है मुझमे ,
आइना देखूं तो खुद की नज़र लगती है ।
दिल सम्हलता नहीं है महज़बीनो से ,
लाव लस्कर में चलते हो खुदाया हौसला वहीँ से पाते हो ।
ज़िन्दगी उधार की थी ,
सांस किश्तों में अदा की हमने ।
बिक रहे थे क़िरदार सरे बाजार ऊंचे दामों में ,
फिर यूँ किया हमने लिबास फेंक दिया बस ज़मीर साथ लेकर सीधा घर को चले आये ।
बनके साया वो साथ रहता है ,
जब कूबकू होकर भी ज़माना साथ में नहीं होता ।
कभी निकलो घर से दिन के उजालों का सफर करके देखो ,
गुमनाम अंधेरों का अपना कोई पलछिन नहीं होता ।
वो ख्यालों में दबे पाँव चले आते हैं ,
फिर आँखों आँखों में शब् की सेहर होती है ।
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