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शाम का वक़्त था और जंगल का रास्ता फारेस्ट अफसर से ज़्यादा चिंता सोहन कर अन्य चौकीदारों को हो रही थी , की साहेब टाइम से निकल जाएँ रास्ता भी बहुत खराब है , इतना लेट करना ठीक नहीं , फारेस्ट अफसर भी बात को समझ रहा था मगर जवान खून कब खौफ की परवाह किया करता है , फॉरेस्ट अफसर ने सोहन के कंधे पर हाँथ रखा और कहा काहे परेशान हो ,बचा पेमेंट कर देंगे कल १ लाख ही न बचा है , सोहन कहता है साहेब जंगल का रास्ता है आपका अकेले जाना ठीक नहीं रहेगा , आप बोले तो दो चार लठैत भेज दूँ आपके साथ जंगल के बॉर्डर तक आपको छोड़ के चले आएंगे हाईवे से आप अकेले चले जाना , फॉरेस्ट अफसर सोहन क बात सुनकर मुस्कुरा देता है , और बाइक में किक मार कर आगे की ओर बढ़ जाता है , सोहन साहेब की बात को अनदेखा कर साहेब की बाइक के पीछे दो लठैत चौकीदारों को भेज देता है , लग भग जंगल में बाइक एक किलो मीटर अंदर चली ही होगी की एक चढ़ाई के बाद फॉरेस्ट अफसर की बाइक का पेट्रोल ख़त्म हो जाता है , पेट्रोल ख़त्म मतलब बाइक की लाइट भी बंद मतलब सुनशान जंगल में जंगली जानवरों के अलावा लूट पाट भी हो सकती है , फॉरेस्ट अफसर पैदल ही बाइक को धकेलता हुआ आगे बढ़ता है , तभी रास्ते में उसे एक अनजान शख्स दिखाई देता है , फॉरेस्ट अफसर उससे बोलता है तुम हमारी बीट के चौकीदार हो न वो आदमी जी बोलता है और फॉरेस्ट अफसर की बराबरी में चलना सुरु कर देता है , फॉरेस्ट अफसर पूछता है , इतनी रात गए तुम्हे जंगल की आखरी चौकी में होना चाहिए था न फिर वो जी बोलता है , वो फॉरेस्ट अफसर के हर सवाल का जवाब जी में देता है , अफसर पूछता है इतनी गर्मी में कम्बल बुखार है तो घर में बैठो जवाब में हओ मिलता है , फॉरेस्ट अफसर को ये बात खटक जाती है , वो उसके साथ बात करते करते करीब २ किलो मीटर और आगे बढ़ जाता है पूर्णिमा की रात थी चाँद धीरे धीरे शबाब में आता है , फॉरेस्ट ऑफिसर उस शख्स की तरफ देखता है उसका चेहरा कम्बल की वजह से चाँदनी रात में भी साफ़ दिखाई नहीं देता है , फॉरेस्ट अफसर को डाउट होता है , वो उस शख्स के पैर की तरफ देखता है , उस शख्स के पैर भी दिखाई नहीं देते हैं नहीं उसके साथ चलने में क़दमों की आहट सुनायी देती है , फॉरेस्ट ऑफिसर समझ जाता है की हो न हो ये आदमी तो नहीं है सोहन सही बोल रहा था मुझे अकेले नहीं चलना चाहिए था , फॉरेस्ट अफसर को अपनी जान से ज़्यादा ब्रीफकेश में रखे १ लाख रुपये की चिंता थी और ९० के दसक में लाख रूपये बड़ी रक़म मानी जाती थी । खैर ऑफिसर ये सोच ही रहा था की पीछे से साइकल में आ रहे कुछ लोगों के आने की आवाज़ें सुनायी देती हैं ,
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साइकल की आवाज़ सुनते ही फॉरेस्ट अफसर के साथ चल रहा शख्स फारेस्ट अफसर की तरफ बहुत बड़ा मुँह फैला कर
झपट्टा मारता है , जिससे बचने की कोशिश में फारेस्ट अफसर लड़खड़ा जाता है , और जिससे फॉरेस्ट अफसर वही कच्ची सड़क में गिर जाता है और वो शख्स झाम की आवाज़ के साथ जंगल की झाड़ियों में कूद जाता है , तभी पीछे से आ रहे साइकल वाले तुरंत अपनी साइकल फेकते हैं और फारेस्ट अफसर को उठाते हैं , अफसर पूछता है कौन है यार ये साला भूत प्रेत टाइप का लग रहा था , वो दोनो चौकीदार जिन्हे सोहन ने भेजा था साहेब की रखवाली के लिए बाइक उठाते हैं और वापस चौकी की तरफ का रुख कर लेते हैं और बोलते हैं साहेब वापस चलिए , अफसर भी ज़्यादा बहस करना उचित नहीं समझता हैं वो चौकी दार के साथ चलना सुरु कर देता है आखिरकार घंटे भर की पदयात्रा के बाद अफसर अपनी फॉरेस्ट चौकी पहुंच जाता है ।
फॉरेस्ट अफसर को देखते ही सोहन बोलता है आगये साहेब मैना पहले ही बोलता था की जंगल में रात के टाइम अकेले गुज़रना खतरे से खाली नहीं है , अबे कुछ रोज़ पहले न संजू को मर्डर भओ ते घटिया मा कुछ गुंडा बदमाश लोग उसे लाके घटिया के ऊपर पेट्रोल डाल के ज़िंदा जला दिहे ते ओहि , फॉरेस्ट अफसर बोल पड़ता है , तो वो साला भूत बन गया है क्या मुझे मिला था लगभग २ किलोमीटर मेरे साथ साथ चला साला जी जी बस बोल रहा था , सोहन तपाक से बोल पड़ा साहेब आपौ का मिल गा काहे वा तरा नहीं ज़िंदा जलाइन ते ओही कहाँ से तरी , ओखी आत्मा ऐसे न जई कइयक का लैके जई , अफसर पूछता है काहे मर्डर हुआ था संजू का सोहन बताता है साहब लड़की बाज़ी का मैटर रहो है , साथै के खबा पिया के मार दैन , ऑफिसर बोलता है चलो हो गया बकवाश बंद करो तुम लोग को तो वैसे बस मटर चाहिए जहाँ चोकरा उड़े वहाँ जेतवा उड़ा दो तुम लोग आज कितनी चिलम चढ़ाया है बे सोहन ११ बज चुके हैं खाने वाने की क्या व्यवस्था है , भूख लगी है , सोहन अपने चग्घड़ों के साथ खाना बनाने में लग जाता है ।
भोजन के बाद अफसर की खटिया वहीँ नर्सरी की बगिया में लगा दी जाती है , गर्मी का मौसम है नर्सरी में पौधों की
सिचाई दिन भर होती रहती है जिससे मौसम में ठंडक बनी रहती है , बिस्तर पर लेटते ही अफसर की आँख लग गयी , रात के करीब ढाई बजे छन् छन की आवाज़ अफसर के कानो में सुनायी देती है जिससे उसकी नींद खुल जाती है , अफसर की आँख खुलते ही नज़र चारों तरफ दौड़ जाती है , चाँदनी रात में अफसर की खटिया से लगभग ५० फ़ीट की दूरी पर जहाँ ट्यूब वेल की पाइप रखी थी उसी के पास एक लड़की लाल जोड़े में सजी खड़ी दिखती है , अफसर सोहन को चिल्ला देता है सोहन तुरत दौड़ता हुआ आता है हड़बड़ाहट में बोलता है का हो गओ साहेब अफसर बताता है वहाँ अभी कोई लड़की दिखाई दी , सोहन टॉर्च मारता है दौड़कर देखता भी है मगर उसे कुछ नहीं दिखाई देता है , सोहन बोलता है कछु नहीं साहेब गुटरी (हिरन का बच्चा ) रही होगी रात यहां पानी पियैं चले आउथे , अफसर बोलता है हो सकता है और सोहन को हिदायत देता है तू यहीं पर अपनी खटिया बिछा पास में लेट ताकि मैं आराम से सो सकूं सोहन अपनी खटिया साहब के पास में लाकर बिछा देता है , इस घटना के बाद अफसर की आँखों में नींद कहाँ थी , बस आँखों आँखों में सारी रात गुज़र जाती है , और भोर में लगभग ५ बजे जैसे ही नींद लगती है वैसे ही पंछियों के चहचहाने की आवाज़ सुरु हो जाती है ।
आज का दिन भी अफसर का नर्सरी में ही गुजरने वाला था , खैर दोपहर का टाइम आता है लेबर मजदूर काम करके दोपहर का खाना खाने के लिए पेड़ की छाओं में बैठ जाते हैं , और आपस में बात करते हैं हमारे नए साहेब बहुत अच्छे है इससे पहले तो जितने भी आये सबको खा गयी यहां की डायन , अफसर उनकी बात को अनदेखा करता है, , तभी एक लेबर बोल पड़ता है अफसर हो तो हमारे साहेब जैसे अभी पिछले चौमासे में जउने रोज़ दिन भर बरसात हुयी थी गाँव की पुल पानी में डूब गयी ते साहेब ५०० लोगन के खाना इहैं बनवाये ते , ट्रक वाले भी बीसन ठो रहे , हाँ बहुत अच्छे हैं हमार साहेब , धरम करम मा बहुत ध्यान देथें , एहिन से ता पुरान मुंसी की बिटिया का भूत उनका कुछु नहीं कर पाइस काल देखान रही साहेब का , सोहन बताउत ते , कितना नीच रहा लंगड़ा महराज रेप करके मुंसी की बिटिया का इहैं मार दइस ते , तभी सोहन व्हिसिल बजा देता है और सब लेबर काम में लग जाते हैं ।
शाम होती है सभी लेबर का बाकी पेमेंट अफसर कर देता है , दिन में शहर से पेट्रोल भी मगवा लिया जाता है जाकर मगर
आज फिर ७ बज गए आखिर फारेस्ट अफसर एक बार फिर घर के लिए निकलता है , तभी सोहन बोलता है साहेब आज आप खेरबा कैत से न जा आप मुड़िला तालाब कैत से जा , अफसर के दिमाग में कल रात वाली घटना घर कर जाती है , वो तालाब वाले रास्ते से जाने का निश्चय करता है , अभी अफसर की बाइक लग भग नर्सरी से २ से ३ किलोमीटर ही आगे आई होगी , तभी मुड़िला तालाब में उसे बहुत सारे गाँव वालों के हल्ला हो की आवाज़ सुनायी देती है , मगर तालाब में कोई शख्स नहीं दिखाई देता है , तभी अफसर को गाँव वालों की बताई ये बात याद आती है की मुड़िला तालाब भुतहा है , लोगों का मानना है की इस तालाब में जंजीर है, सुनशान समय में लोहे की जंजीर से बंधे बर्तन तालाब की मेड पर अपने आप आ जाते हैं और जब कोई राहगीर उस बर्तन को उठाने के लिए जाता है जंजीर उसे पानी की गहराइयों में ले जाकर डुबो देती है । या बात अफसर के ज़हन में चल ही रही थी , की बाइक के सामने बीच रोड में अचानक बैलगाड़ी आजाती है , जिससे अफसर की बाइक अचानक से ब्रेक लगाने के कारण खाई में गिरते गिरते बच जाती है , किसी तरह अफसर बाइक सम्हालता है , और उस बैल गाड़ी वाले पर चिल्लाता है मगर वो बैल गाड़ी वाला कोई जवाब दिए बिना सामने पड़े वीरान मैदान में कहीं गुम हो जाता है , अफसर का दिम्माग घूम जाता है , तभी कुछ राहगीर साइकिल से गुज़रते हैं वो ऑफिसर की गिरी बाइक देखकर उठाने में मदद करते हैं , पूछते हैं का हो गओ साहेब अफसर जवाब देता है , कुछ नहीं यार अभी जो बैल गाड़ी वाला गया तुम्हे आगे मिला होगा साला बीच रास्ते में बैलगाड़ी चला रहा था , वो लोग बोलते हैं साहेब हमें तो कोई बैलगाड़ी वाला नहीं मिला , या मुड़िला तालाब भूतहों है ऐसी वैसी अनहोनी घटना इते होत रहथी और वो लोग वहाँ से चले जाते हैं , इधर अफसर भी अपनी बाइक स्टार्ट करके शहर की और का रुख कर लेता है । इससे पहले की कहानी का लिंक नीचे दिया हुआ है ।
pix taken by google ,