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घने जंगलों में अब भी कुछ ऐसी आदिवासी जनजाति के लोग हैं जो बाहरी इंसानो के संपर्क में नहीं है , उनका बाहरी इंसानो के संपर्क में आना जितना उनके लिए खतरनाक है उससे कहीं ज़्यादा बाहरी इंसानो का उनके संपर्क में आना बाहरी इंसानो के लिए खतरा बन सकता है ।सत्तर का दसक था देश भर में हरित क्रांति के नाम पर सरकारी अफसरान और ठेकेदारों ने सरकार को खूब चूना लगाया इसी , पी डब्लू डी हो या फॉरेस्ट छोटे से छोटा कर्मचारी भी ज़मीदार बन गया , ये कहानी उसी दसक की है जब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश एक हुआ करते थे , हज़ारों हेक्टेयर के जंगल बस विकास के नाम पर काट डाले गए , ये कहानी भी उसी दौर के कुछ सरकारी अफसरान और आदिवासी कबीलों के इर्द गिर्द घूमती है , जंगल की लाल मुरुम पर दौड़ती स्कूटर पर झाड़ियों से झांकती एक खौफनाक नज़र कैमरा स्कूटर के पहिये से ज़ूम आउट हो कर आसमान में उड़ रही बाज़ के पास पहुंच जाता है , तभी एक शख्स झाड़ियों से दौड़ता हुआ कुछ विशेष प्रकार की आवाज़ निकालता हुआ जंगल में कहीं गुम हो जाता है , और फिर उस शख्स की आवाज़ झुण्ड की आवाज़ में तब्दील हो जाती है ,
जंगल से सटे हाईवे पर फारेस्ट अफसर बी के भट्ट की स्कूटर तेजी से दौड़ी जा रही थी , लेबर पेमेंट करके लौटे थे साहेब मन में ज़बरदस्त पार्टी मनाने का प्लान चल रहा था की अचानक जाने कैसे सामने से आ रहा ट्रक स्कूटर को ठोकर मार कर चला गया , एक्सीडेंट इतना ज़बरदस्त था की देखने वालों के रौंगटे खड़े हो गए , ट्रक की ठोकर से स्कूटर का हैंडल टूटकर भट्ट साहेब का पेट फाड़ता हुआ अन्तड़ियों को साथ लिए जाने कहाँ उचक गया , लोगों ने भीड़ लगा ली सामने खड़े लोगों ने कहा बहुत अच्छे साहेब रहे बेचारे जाने कैसे मर गए , तभी एक शख्स बोलता है बड़ी शख्त जान है भट्ट साहेब भी इतनी आसानी से नहीं मर सकते , तभी अचानक से भट्ट की आँख खुलती है वो सारा माहौल भांप जाता है , और पहले ज़मीन पर पड़ी अन्तड़ियों को समेटता है पेट के अंदर भरकर अपने गले में पड़े गमछे को खींच कर पेट को कसकर बांधता है ताकि एक भी अंताडी कहीं बाहर न छूट जाए और लग भग २०० मीटर की दूरी पर स्थित हस्पताल के लिए दौड़ लगा देता है , हॉस्पिटल जाकर अपना दाखिला स्वयं भरता है , डॉक्टर भी भट्ट साहेब की दबंगई देख कर हैरान है , वो फ़ौरन ऑपरेशन थिएटर तैयार करता है और भट्ट का ऑपरेशन करता है , ऑपरेशन सक्सेस फुल रहता है ,
ऑपरेशन के कुछ दिनों बाद भट्ट को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है , भट्ट को घर पर ही बेड रेस्ट क सलाह दी
जाती है , भट्ट को ठीक होने में लग भग ३ महीने लग जाते हैं , एक रात २ बजे के तकरीबन भट्ट के बंगला में हमला होता है चारों तरफ से घर पर तड़ातड़ पत्थरों की बारिश होती है , दरवाज़ों को रॉड सब्बल लाठियों से तोड़ने की कोशिश की जाती है , भट्ट अपने परिवार के साथ फारेस्ट के बंगला में अकेला फंस जाता है , तभी फारेस्ट के चौकी दार आ जाते हैं जिसके कारण हमलावरों को वहाँ से भागना पड़ जाता है , मगर भागते भागते हमलावर पत्थर में एक चिट्ठी लपेट के फेंक जाते हैं , जिसमे लिखा था इस बार तो बच गए कसम माई की जो हमारे जंगल की तरफ आँख उठा के देखेगा उसे हम जान से मार देंगे । धमकी से डर कर भट्ट वहाँ से फ़ौरन अपना ट्रांसफर करवा लेता है , जिसकी जगह परिहार साहेब नियुक्त होते हैं , भट्ट परिहार को अपना पदभार सौंपता है , और बंगला दिखाता है देखिये परिहार जी अब आपको ही इस बंगले में रहना है , जैसा मिश्रा जी से चार्ज में लिया था वैसा ही सौंप रहा हूँ , सब कुछ चेक कर लीजिये सरकारी सामान का मामला है और हाँ ये रही सरकारी तिजोरी की चावी जिसमे बचा हुआ लेबर पेमेंट का पैसा रखा हुआ है , १० लाख के तकरीबन बचा है , बाकी सब हमने पेमेंट कर दिया है ।
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परिहार साहब मुस्कुराते हुए चार्ज लेते हैं , और भट्ट के जाने के बाद बंगला में शिफ्ट हो जाते हैं , बंगला में शिफ्टिंग का काम चालू था बंगले के पीछे एक बहुत आंगन आँगन था , जिसका दरवाज़ा चौकीदार खोलता है तो हक्का बक्का रह जाता है , वो दौड़कर परिहार साहेब के पास पहुँचता है , और बताता है साहेब अंगनाई मा बहुत बड़ो गड्ढो है , परिहार दौड़कर आता है गड्ढे को देख कर तुरंत समझ जाता है , की पेपर में जो लेबर पेमेंट के घोटाले की बात छपी थी वो सही थी , वो चौकीदार से पूछता है सरकारी और कितनी तिजोरियां है , चौकीदार बोलता है तीन है साहेब आपके लाकर रूम में लगी है एक ऑफिस में और एक उखड़ी पड़ी है , परिहार बोलता है , ये गड्ढा किसी की कब्र नहीं है , भट्ट चोरी के सरकारी माल को यहीं इसी गड्ढे में गाड़ के रखा था , लेकर भाग गया साला , खैर गड्ढे को भर दो , और फर्श पक्की करवा दो चौकीदार जी साहेब बोलता चला जाता है ।
भट्ट को बीट छोड़े लगभग साल भर हो चुके थे , परिहार ने पदभार सम्हाल लिया था , समय बीतता गया , जंगल में तेन्दु पत्ता तोड़ने का काम सुरु हो गया था जंगली आदिवासियों की आय का ये प्रमुख स्त्रोत था , मगर ये काम भी अब सरकार के हाँथ में नहीं था , प्राइवेट ठेकेदार के हांथों में चला गया था , और पेमेंट के समय पर अनपढ़ गरीब आदिवासियों का भरपूर शोषण किया जाता है, परिहार भी ठेकेदार की सागत में देर रात तक जंगल में रुका रहता था , और वहीँ कच्ची शराब पीकर टुन्न रहता है , कई बार जब परिहार की बीवी उससे पूछती की इतनी रात गए कहाँ अटक गए थे जी , परिहार हर रात यही बहाना बना देता की आदिवासियों का डांस देख रहा था उनका सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहा था , बीवी गुस्सा के कह देती किसी दिन किसी आदिवासिन को सौत न बना के ले आना मेरी , परिहार हंस के बोल देता बीवी बना के ले आया तो , परिहारिन बदले में कहती बीवी तो मैं ही रहूंगी कच्चा न खा जाऊगी मैं उसको । इसी नोक झोंक में रात गुज़र जाती है ।
बीजा डांडी का जंगल , जंगल की पगडंडियों पर दौड़ती परिहार साहेब की राजदूत मोटर साइकिल , फट फटी की आवाज़ से सारा का सारा जंगल गूँज जाता है , तभी झाड़ियों की झुरमुट से आहट आती है , और जंगल में न जाने कहाँ से पालतू जानवरों का झुण्ड परिहार की मोटर साइकिल को रौंदता हुआ जाने कहीं दूर निकल जाता है , झुण्ड के साथ परिहार भी लगभग १० मीटर तक घिसट जाता है , जानवरों के पैर के खुर और सींग की मार इतनी गहरी थी की परिहार का बच पाना मुश्किल था , खैर वहाँ से गुजरने वाले राहगीरों ने उनकी जान बचाई उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट किया , एक लम्बे उपचार के बाद परिहार ठीक तो हो गया , मगर चलने में थोड़ा कमर अब भी लचक जाती है , और कहते हैं जिस्म की हड्डी पर पड़ी अंदरूनी मार जब बारिश के मौसम में आसमान पर बादल गरजते हैं रह रह कर दर्द पैदा करती है , कहते उस घटना के पहले एक रात को पिए खाये में परिहार साहेब ने गाँव की किसी लड़की के यौवन में मन्त्र मुग्ध हो गए थे ,और कामोवेश उन्होंने उस लड़की के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की थी , ये बात कबीले के सरदार को पता चल गयी थी , जिसके चलते गाँव के कुछ हट्टे कट्टे नौजवानो ने परिहार साहेब के साथ ये हरकत कर दी , खैर ये बात राज़ की राज़ ही रही उसके बाद वो जब भी जंगल ड्यूटी करने जाते एक आदमी को साथ में लेकर ही जाते ,
खैर ५ साल तक तो परिहार साहेब ने बड़ी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय दिया , तत्पश्चात उनका वहां से
तबादला हो गया , इसके बाद उन्होंने अपना पदभार वर्मा जी को सौंपा , वर्मा जी तो कैरेक्टर के साफ़ सुथरे थे , मगर एक गड़बड़ी उनमे भी थी वो ये की उन्होंने दो बीवियां रख रखी थी , एक को तो वो शहर में रख छोड़े थे और दूसरी वाली जिसे वो अधिकांशतः जंगल वाली चौकी में साथ ही रखते थे , जिसके चलते उनकी पहली पत्नी अपने बड़े बेटे के साथ उन्हें ढूढ़ते हुए जंगल पहुंच जाया करती थी , एक तरफ से वर्मा की पहली पत्नी चौकी में घुसती दूसरी तरफ से वर्मा अपनी दूसरी पत्नी को लेकर रफू चक्कर हो जाता , जिसके चलते बीट में दो अधिकारीयों को नियुक्त करना पड़ गया था , दूसरे साहेब का नाम था एस . एन , धुर्वे साहब उन्हें धुर्वे साहेब ही बुलाते थे , वर्मा की मौजूदगी में धुर्वे भीगी बिल्ली बना रहता था मगर वर्मा के जाते ही धुर्वे बीट प्रभारी बन जाता था , गाँव के आदिवासियों में उसकी अच्छी पकड़ थी , गाँव के भोले भाले लोग उसे अपने परिवार के सदश्य की तरह मानते थे , उनके बीच में वो सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा था ,
खैर एक बार फिर विधान सभा सत्र में प्रश्नकाल के दौरान घोटालों की जांच के लिए भोपाल से एक टीम आई , जिसमे एक दो आदिवासी आई ऍफ़ एस भी थे , धुर्वे को उनकी सेवा करने का अवसर प्रदान किया गया , एक दिन अफसरों ने लगी छनी में धुर्वे को अपने पास बुलाया और बोलै कैसे जात भाई हो तुम हमारे तुमने अभी तक हमारी ढंग से खातिर दारी नहीं करी धुर्वे भी विदेशी दारू में टुन्न था वो शास्टांग दंडवत अधिकारीयों के चरणों में गिर गया , और बोला मोसे कछु गलती हो गयी साहेब , अफसर ने उसे उठाया कुर्सी में साथ में बिठाया , देखो हमने बोला हमे केकड़ा का मटन खाना है तुमने हमारे लिए केकड़े का मटन लाया , हमने तुम्हे कहा हमे महुआ वाली शराब पीनी है तुमने उसका भी प्रबंध किया , लेकिन खातिरदारी फिर भी अधूरी है , धुर्वे बोला मैं समझो नहीं साहेब ऑफिसर बोलता है अरे कोई छमिया ओमिया बुलाओ नादाँ न बनो धुर्वे , धुर्वे की आँखों में आंसू सो आगये धुर्वे बोला मोसे ऐसा नीच काम न करवाओ साहेब , गाँव की हर एक लड़की हमार बहु बेटी है साहेब , अफसर कहता है व्हाई यू क्राइंग धुर्वे , हम कोई ज़बरदस्ती थोड़ी न कर रहे हैं अभी तुम गार्ड हो गार्ड से फोरेस्टर फिर तुम्हे भी डेप्टी से ३ स्टार बनना है हाँ की नहीं , धुर्वे थोड़ा मुस्कुराता है , और अपनी बीट में वापस चला जाता है , धुर्वे ऑफिसर्स की ये बात न्यूज़ पेपर्स वालों को बता देता है और दूसरे दिन सारे न्यूज़ पेपर्स की खबर से सारे डिपार्टमेंट में हंगामा मच जाता है , जिसके चलते उसकी नौकरी तो चली जाती है , ऑफिसर्स की भी ज़बरदस्त किरकिरी होती है ,
मामला प्रेस मीडिया तक पहुंच जाता है , मगर ऊपरी मिलीभगत के चलते कोई अफसर सस्पेंड नहीं होता है , बस एक जगह से दूसरी जगह उनका तबादला कर दिया जाता है , धुर्वे सरकारी नौकरी छोड़कर जंगल से लकड़ियां ढोने में लग जाता है , बनी मजूरी से इतना मिल जाता है की वो अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर सके , कई बार नौकरी बहाली का काग़ज़ भी सरकार की तरफ से आया मगर धुर्वे ये कह कर मना कर दिया की मैं बनी मजूरी कर लेहउँ साहेब मगर मोसे या दलाली का काम न होवैगो , वक़्त बदलता है नब्बे का दसक सुरु हो गया है फटफटी का ज़माना धीरे धीरे विलुप्त हो चुका था अब चारों तरफ जापानी मोटर साइकिल दौड़ रही थी , धुर्वे की जगह डी एन मिश्रा की नियुक्ति हो जाती है , मिश्रा जी वैसे तो बात व्यवहार से बहुत अच्छे हैं मगर वो पान बहुत खाते हैं और थोड़ा रंगीले मिजाज़ के भी हैं , एक दिन वो अपनी मोपेड लूना मैग्नम से जंगल के रास्ते गुज़र रहे थे , तभी सामने से धुर्वे लकड़ी का गट्ठा ले जाते हुआ दिखा मिश्रा जी ने कहा काहे भाई धुर्वे काहे शरीर तोड़े डाल रहे हो भरी जवानी में अच्छी खासी सरकारी नौकरी छोड़कर बताओ लकड़ी की कामर ढो रहे हो अपना नहीं तो कम से कम अपने बाल बच्चों का तो ख़्याल करते कुछ पैसा पा जाते तो ढंग से उन्हें पढ़ा लिखा भी तो पाते , अब बिटिया सयानी हो गयी है , कछु ओखे बारे में ही सोच लए होते , धुर्वे कहता है दिमाग खराब न करो , मैं जउन है पेज (चावल का माड़) पिला के पाल लैहौं अपने बचवन का , तुम्हारी अपनी या जउन फटफटिया है न स्टार्ट करो और फ़ौरन रफूचक्कर हो जाओ हमारे जंगल से वरना जउन ये तुम्हारे थोबड़े की लाली है न सगली लालिमा बदल डलिहेन हाँ समझे हमे पता है की तुम का गुल खिलाते हो , अभी दरौली वाले जंगल मा में लेबर तुम्ही काहे मारिस ते फावड़ा बेंत से मोहे अच्छे से पता है बाम्हन हो बाम्हन की तरह रहो गुरु मानते हैं गुरु शब्द की इज़्ज़त मर्यादा बनाये रखो , मिश्रा जी लूना स्टार्ट करते हैं , और बोलते हैं काहे नाराज़ होते होते हो भाई हम अबहिनै चले जाथें , और मिश्रा जी लूना स्टार्ट करके तुरंत वहाँ से निकल जाते हैं ।
ऊपर वाला तो वैसे भी किशानो से नाराज़ रहता है इस साल बारिश भी कम हुयी थी लोग भूखो ना मरे , इसलिए सरकार
ने गाँव में राहतकार के नाम पर सड़क निर्माण का काम सुरु कर दिया था , जिससे बहुत से बेरोज़गार मज़दूरों को काम मिल गया था , अब जंगल की सड़क में मुरुम बिछाने का काम ज़ोरों पर चल रहा था , गाँव के नौजवान लड़के लडकियां बूढ़े जवान सभी सड़क निर्माण में लगे थे , रसिक मिश्रा जी के दिमाग में जाने का सूझी की अपने ही चौकीदार की लुगाई का हाँथ पकड़ लिए चौकीदार की मेहरारू तो हाँथ झटक के चली गयी , मगर चौकीदार के भाई ने मिश्रा जी की हरकत देख लई फिर क्या था , लेबर पेमेंट का दिन आया मिश्रा जी ने देर शाम तक पेमेंट किया और एक चौकीदार को लेकर अपनी लूना में चल दिए , वो मुश्किल से १ किलो मीटर जंगल पार किये होंगे तभी , सामने से शिकारी जंगली कुत्तों का झुण्ड मिश्रा जी को चारों तरफ से घेर लेता है , मिश्रा जी कुछ समझ पाते की उनकी कनपटी में सांय से एक लट्ठ बज जाता है , और मिश्रा जी वहीँ धड़ाम से गिर जाते हैं ,बारिश हल्की हल्की हो रही है , लूना घुर्र घुर्र कर के बंद हो चुकी है , मिश्रा जी के सिर से बहुत तेज़ खून बह रहा था , तभी टॉर्च की लाइट मिश्रा जी के खून से लथपथ चेहरे पर पड़ती है , मिश्रा जी अधखुली ज़बान से बोलते हैं भाई कौन , जवाब आता है तुम्हे मना करे रहे न मिश्रा जी अपनी हरकतों से बाज़ आ जाओ , नहीं सुधरे न तुम आखिर अपनी कमीनी हरकत करै दई न तैने चौकीदार की लुगाई के साथ अब आज रात तुम इन जंगली कुत्तो का खाना बनोगे और आज चंडी माता का दिन भी है इसी बहाने उनको बलि भी चढ़ जाएगी , और वहां मौजूद सभी लोग चले जाते हैं , रात चढ़ती है शहर काम करने गए मज़दूर वपस लौट रहे हैं रास्ते में पड़े मिश्रा जी के कराहने की आवाज़ वो सुन लेते हैं , पास खड़े कुत्तों को भगाते हैं , फिर उनमे से एक कहता है अरे ये तो जंगल दफ्तर वाले साहेब हैं इनको कौन लूट लिया वो फ़ौरन मिश्रा जी को अपनी साइकिल में लादते हैं और और फॉरेस्ट चौकी लेकर पहुंच जाते हैं , वहाँ मौजूद कर्मचारियों द्वारा उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाता है ,
मिश्रा जी के सर पर १२ टाँके लगते हैं , और अंततः इलाज़ के बाद वो ठीक हो जाते हैं , थोड़ा बोलने अब भी उनको प्रॉब्लम होती है , उनसे मिलने परिहार साहेब आते हैं वो मिश्रा जी से पूछते हैं क्या हो गया था मिश्रा जी , मिश्रा जी बोलते हैं वही जो आपकी राजदूत को हो गया था , परिहार साहेब कहते हैं सम्हाल के चलाया करिये जंगल में गाड़ी घोडा रास्ते बड़े ऊबड़ खाबड़ हैं , और हाँ आदवासियों के लिए सरकार ने नया नियम ला दिया है चार चिरौंजी लाख गोंद जैसे वनोपज इकठ्ठा करने वालों को सही मूल्य दिया जा सके पहले अधिकांश पैसा दलाल और बिचौलिए ही खा जाते थे ।मिश्रा जी कराहते हुए हामी में सर हिलाते है , और दर्द भरी आवाज़ में पूछते हैं और भट्ट साहेब का क्या हाल है भाई , परिहार जी बोलते हैं अब भट्ट साहेब इस दुनिया में नहीं रहे उस घोटाले के बाद वो पहले तो सस्पेंड हो गए थे , फिर जर जुगाड़ लगा कर वापस नौकरी में बहाल हुए शराब बहुत पीते थे ये तो तुम्हे पता ही है , एक दिन हार्ट अटैक आया और उनका गेम ओवर हो गया , बहुत बुरा हुआ बेचारे के साथ छोटे छोट बच्चे थे खैर बीवी को नौकरी मिल गयी है , मिश्रा जी दुखी मन से पुनः बेड पर लेट जाते हैं और परिहार साहेब हॉस्पिटल के कमरे से बाहर निकल जाते हैं ।
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