dark life quotes in hindi जुस्तजू ए नौबहार की आरज़ू दिल में रख कर ,

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dark life quotes in hindi जुस्तजू ए नौबहार की आरज़ू दिल में रख कर ,
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dark life quotes in hindi जुस्तजू ए नौबहार की आरज़ू दिल में रख कर ,

जुस्तजू ए नौबहार की आरज़ू दिल में रख कर ,

खिज़ा ए गुल को भी मैं अश्क़ों से पुरनम किये जाता हूँ ।

 

शेर ओ सुखन से संवरती हैं महफ़िलें जिनकी ,

चाँद तारे भी दीदा ए यार के तलबगार नज़र आते हैं ।

यूँ ही नहीं बेज़ार हुआ है ये दिल ,

बुतनुमा लोग भी गुनहगार नज़र आते हैं ॥

 

रंग और भी निखरेगा रंग ए हिना का साहब ,

बाद मेंरे जब इसमें मेरा खून ए जिगर मिलाओगे ।

 

कभी दिल के सेहराओं से होकर गुज़रो ,

इल्म होगा सर्द हवाओं में आग कैसे जलती है ।

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सोचता हूँ तेरे दामन में चाँद तारे सजा दूँ ,

मगर अफ़सोस तेरे आफ़ताबी हुश्न के आगे मेरी साँसे टूट जाती हैं ।

 

राख से चिंगारियां निकालो ,

सोये हुए आदम को जहान मुर्दा समझ बैठा ।

 

बहुत पढ़ते हो नज़रों को कभी कुछ लिख भी दिया करो हम पर ,

मिजाज़ शायराना रखते हो ग़ज़ल ही कह दिया करो हम पर ।

 

चांदनी से खलल पड़ती है दो नज़रों की जुस्तजू में ,

चाँद से कोई कह दे बेशरम बदलियों में जाकर कहीं छुप जाए ।

 

सज़र के पत्ते जल गए शायद ,

कोई परिंदा शब् भर वहाँ पर रोया था ।

 

ज़िन्दगी मुक़म्मल थी जिस दहलीज़ को पाकर ,

आज उसी दर से रुखसती पर शर्मशार हम हुए ।

 

ऐसा नहीं की याद अब उनकी कभी भी नहीं आती ,

बस अपना हाल ए दिल हम हर किसी को सुनाया नहीं करते ।

 

वज़ूद आता नहीं नज़र किसी को वो मेरे दिल में रहता है ,

चलो इसी बात के चलते कम्बख्त दिलों की दुश्वारियां तो ख़तम हुयी ।

 

मोहब्बत रूहानी हो तो साद ओ ग़म का मज़ा आता है ,

जिस्म की हवस का सामान तो बाजार में भी मिल जाता है ।

 

कुछ तो है जो बाद ए मोहब्बत के भी दिल में कसकता है ,

महज़ कहने से सुनने से कहीं ज़्यादा रहा होगा ।

 

तबाही ए मंज़र दो दिलों तक ही नहीं ये जो उठे हैं इश्क़ ए शरारे ,

ज़मीन ओ फ़लक़ दो जहान जला के ख़ाक करेंगे ।

 

आजकल सुर्खरू हैं ख़्यालात से जज़्बात उनके ,

फ़िज़ा में संदली खुशबू ये कहाँ से आई है ।

 

ये मेरी आँख का धोखा है या कानो का भरम ,

वादियों में उनकी सरगोशियों से सदा आयी है ।

 

तबाह करेगी तुझे भी कहाँ कोई तलबग़ार बचा है ,

ये आतिश ए मोहब्बत है साहब कोई कितना भी बड़ा फ़नकार रहा है ।

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कुछ पंक्तियों में सिसक के रह गए अल्फ़ाज़ अब तो ,

जिनके कहकशां से सफ़हे कभी खनकते थे ।

किताब ए वरक़ तक जमी है गर्द अब भी ,

गोया आज के हुकुमरान देखकर के भोले बनते हैं ॥

 

हम उनको पढ़ने में मशरूफ थे इस कदर ,

वो हमारे सर से गुज़र जाते रहे ।

जब भी पलटे हैं बाद ए वरक़ के सफ़हे हमने ,

किस्से खुद बा खुद खिल्लियां उड़ाते रहे ॥

 

ख़्वाब पलकों पर सजाकर दिल के अरमान बेचता हूँ ,

बच्चों के खिलौने में सीसे का मकान बेचता हूँ ।

 

लोग दिल की लगी को शायरी कहते हैं ,

हम भी कब हर जगह दिल्लगी करते हैं ।

 

मैं खुद को क़ामिल शख़्सियत समझा नहीं कभी ,

फिर भी बिछड़ के तुमसे अधूरा सा रह गया ।

 

आग सुलगा के निकल जाते हो ,

मकीन न सही इस शहर में मकान तेरा है ।

 

बहारे सहरा में आईं आके चली भी गयीं ,

बदनसीबी थी इस कदर कोई जमाल ए यार की बस नज़र का मुन्तज़िर ही रहा ।

 

जिसकी खुशबू से सुरमई थी सुबहें ,

उनकी यादों से अब रातें ग़ज़ल होती हैं ।

 

आज लगन है यही यही तो ठगन है ,

कोई लूट रहा बाजार में कोई दिल हार कर भी मगन है ।

 

तन्हा बस्तियां वीरान सा मंज़र साहिलों की रेत् पर उसके निशाँ ढूढ़ती लहरें ,

जैसे किसी अजीज़ की तलाश में दर बदर भटकता प्यासा समन्दर ।

 

वो जिनके दम से महफ़िलें गुलज़ार हुआ करती थी ,

न जाने आजकल वो किसके इंतज़ार में रहा करते हैं ।

 

रोज़ मिलता है मुझसे अजनबी बनकर ,

मेरा साया भी फरेबी हुआ जाता है ।

 

ज़मीन में चलती है कहाँ आसमान में उड़ती है ,

तेरे सुरखाब ख़्याली में शायरी जब भी ढलती है ।

 

शाख से टूटे पत्तों सी मोहब्बत थी अपनी ,

हवा के झोकों सा आलम ए पुरज़ोर रहा ।

न मिली लौट कर टहनी न सफ़र था क़ामिल ,

बाद मुद्दत के भी ये कहकशां हर और रहा ॥

 

मेरे शहर में जब सब बेवफ़ा थे ,

रूह ने ही जिस्म छोड़ दिया क्या गुनाह किया ।

 

दुआ भी क़ामिल हो जब बद्दुआ थी मुक़म्मल ,

दुश्मन ए यार ने दोस्ती का भी फ़र्ज़ अदा कर डाला ।

 

शहर भर में कहकशां सा है ,

आजकल मैं बेज़बान सा हूँ ।

गुज़र रहा हूँ लापता सा वज़ूद से अपने ,

धुंआ धुंआ सा चारसू रवां रवां सा हूँ ॥

 

सूखे दरख़्तों से न पूछो शहर ए मौसम का मिजाज़ ,

सज़र से टूटे पत्तों ने भी बिरहा के गीत गाये हैं ।

 

खून खराबा की खबरों से हर अखबार सराबोर रहा ,

दिल मुतासिर था इत्तेला ए यार का मुतासिर ही रहा ।

 

एक उम्र गुज़र जाती है अपनों की अज़ीज़ियत समझने में ,

बुज़ुर्गियत के साये में ही ये तालीम ओ तरबियत नसीब होती है ।

 

मैं अपनों से लहू का रिश्ता निभाता रहा तमाम उम्र ,

कोई गैर मुझको खून का कर्ज़दार कर गया ।

 

गैरों की ठोकरों पे दम निकला तो समझ में आया ,

बस उम्रें तबाह कर दी हमने अपनों को आज़माने में ।

 

हिक़मत ए तरतीब से लबरेज़ है हुनर ,

सोये पड़े हुक़्क़ाम को हम चैन से सोने नहीं देंगे ।

 

साथ जीने का तक़ाज़ा ही अलग होता है ,

लोग बस ज़िन्दगी में साथ साथ चलते हैं ।

 

दर्द क़ामिल है तेरा हो या मेरा हो ,

लोग बस फ़ितरतन अपना पराया सोच लेते हैं ।

 

हल्की फुलकी दवा दारू से इश्क़ का मर्ज़ नहीं जायेगा ,

लाइलाज है बीमारी किसी उस्ताद हक़ीम का ही नुस्खा काम आएगा ।

 

तेरे अंदाज़ ए लर्ज़िश का भरम बनाये रखते हुए ,

मैंने हर दुआर की गुफ्तगू ए ग़ज़ल को यूँ ही बस चलने दिया ।

 

लूट के माल औरों का खुद की तिजोरी भरते हैं ,

ये दौर ए वक़्त के हुकुमरान मुर्दों पर सियासत करते हैं ।

 

बस इसी उम्मीद में जीते रहे अभी सरकार बदलेगी ज़ुल्म बदलेगा ,

हर दौर ए सियासत में इश्क़ के मारों का हाल शुभानल्लाह क्या कहिये ।

 

बाद ए इश्क़ की तबाही ए मंज़र बारहां ये रहा ,

धड़कने चलती रही दिल के हाल ए मुक़ाम का बस पता न रहा ।

 

ये जो बिखरे पड़े हैं शब् ए बज़्म नज़्म के टुकड़े ,

किससे पूछें कब किसका दिल कहाँ पर टूटा है ।

 

बदस्तूर था हवाओं के रुख पर तेरा ज़ुल्फ़ें लहराना ,

बस इसी बदगुमानी की दिल को अब भी हरारत सी रहा करती है ।

 

दम निकलता है एक सज़दे में ,

तेरे दर पर हम शब् ओ रोज़ आँख क्या पुरनम करते ।

 

जो इक सरारा था ज़मीन से उठा था ,

फलक धुंआ सा था ।

रात दर्द ओ ग़म से पोसीदा थी ,

जाने किस बला की फुर्ती से सारे चिलमन जला गया वो कैसे ॥

 

ताज्जुब नहीं है मुझको तेरा सूरत ए हाल देख कर ,

फ़क्र इस इस बात का है मैं देखता ही रहा तू जाने कब ज़मीन के ज़र्रे से फलक का आफ़ताब हो गया ।

 

इन शोख़ निगाहों का जो एहतेराम करे हैं ,

क्या इल्म नहीं उसको ये सर ए बाजार क़त्ल ए आम करे हैं ।

 

एक से एक फ़नकार हैं शान ए महफ़िल में ,

चाक जिगर जो पुरसुक़ूत दे किसी में बात नहीं ।

 

शब् ए बज़्म चाँद उतर आये तो कोई बात बने ,

फिर इस रात की सेहर हो न हो ख़ुदा ख़ैर करे ।

 

वक़्त की रफ़्तार के साथ धड़कने भी बेलग़ाम हुयी जाती हैं ,

अब इस दौर ए उम्र में भी यही हसरत है कोई अहल ए दिल को थाम ले ।

 

जाम ए मैक़शी से तौबा किया तो क्या किया ,

गर खता ए इश्क़ से बचते तो गुनहगार न बनते ।

 

कभी कभी तो लिखते हो मियाँ माज़रा क्या है ,

अभी अभी तो गुज़रे हो उनकी गलियों से सिलसिला क्या है ।

 

हम तो मोहब्बतों की तहज़ीब से हैरान हैं ,

अंजुमन का हर एक गुंचा ए गुल अपने आप में वीरान है ।

 

मैं हरदम इल्तेज़ा ए दिल की सुनता हूँ ,

तभी तो दुश्मन ए जान को भी अपनी जान समझता हूँ ।

 

मुर्दों के शहर में लाशों की तफ़्तीश नहीं करते ,

गर रूबरू हो सियासी इब्लीस किनारा करके निकलने में भलाई है ।

 

अभी उम्मीद है वो शब् ए बज़्म कुछ शेर ओ सुखन भी लाएंगे ,

बस यूँ ही हाल इ दिल बयानी में दाद हम नहीं देते ।

 

कितना तंज़ किया करते हैं ,

लरज़ते लफ्ज़ तेरे बवाल बनके जाने कितने सवाल किया करते हैं ।

 

जीने दे अब तू मुझको मेरे ही हाल में ,

जैसी भी है अच्छी ही है ज़िन्दगी की रहगुज़र मेरी ।

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ज़मीन जल रही है आसमान जल रहा है ,

फिर भी इक सरारा दरमियान दोनों के बेख़ौफ़ चल रहा है ।

 

हसरत ए नाकाम से जब डर जाता हूँ ,

माँ के नक्स ए पा में ही मिलती है मुझको जानत मेरी ।

 

जिस राह से गुज़रा वो सज़र जल के ख़ाक हो गया ,

रूबरू ए जमाल ए यार समंदर भी आफ़ताब हो गया ।

 

कुछ गरूर था अकड़ का दरख़्त के सूखे काँटो को ,

टपकी जो लब से शबनम वो भी गुल ए गुलज़ार हो गया ।

 

अभी ज़िक्र साया का किया है उसके ,

कहीं पैदल न चल दे साहिल खिदमत में उसके यारों ।

pix taken by google ,