devil monk a true ghost horror story
शास्त्रों में ब्रम्हराक्षस और सन्यासियों का उल्लेख देखने और सुनने को मिलता है , ये वो आत्माएं होती हैं जो चाहे तो
सबकुछ बना दें और गुस्सा जाएँ सब तहस नहस कर दें , मान्यताओं के अनुसार इन आत्माओं को , एक विशेष
स्थान दिया जाता है ये आत्माएं देवी भक्त होती हैं , और इनका असर इनके कुछ ख़ास दिनों में बहुत ज़्यादा होता हैं
जिस परिवार में ये ब्रह्म राक्षस होते हैं उस परिवार की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी इन्ही के ऊपर होती है , आज की हमारी
कहानी ब्रह्मराक्षस और सन्यासियों की और इंगित कर रही है ।
शहर का वो रिहायसी इलाका जो कभी चतुर्वेदियों की बस्ती हुआ करती थी , अब वहाँ चतुर्वेदियों का नामोनिशान नहीं है ,
अब वह बस्ती बस नाम की चौबेन टोला रह गयी है , चतुर्वेदियों का राजघराने से गहरे ताल्लुक़ात के चलते महराज द्वारा
, उन्हें अपने किला के आस पास ही बसा लिया गया था, चतुर्वेदी परिवार का कोई वारिश नहीं था , और जो रिश्तेदार थे
उनका इनकी संपत्ति से कोई लगाव नहीं था , चतुर्वेदी परिवार की सेवा गाँव के एक बालक जिसका नाम एजी था जो की
सूर्यप्रसाद के पिता थे उन्होंने की थी , एजी को चतुर्वेदी परिवार ने गोद ले रखा था , चतुर्वेदी परिवार की शरण में ही बहुत
कम उम्र में एजी प्रकांड विद्वान् बन गया था , उनकी विद्वता की ख्याति नगर भर में फ़ैल चुकी थी , चतुर्वेदी परिवार ने
आखिरी वक़्त घर की सारी वसीयत एजी के नाम कर दी , मगर उस मासूम को ये पता नहीं था की उस मिलकियत पर
एक सन्यासी का कब्ज़ा है , और उसी सन्यासी ने एजी को कम उम्र में ही मौत की नींद सुला दिया था ,
कहते हैं एजी की जब मौत हुयी थी , तब उनका बेटा सूर्यप्रसाद मात्र १० वर्ष का था और वो तभी से रुद्री का पाठ किया
करता था , बाप के मरने के बाद माँ चार भाई और एक बहन की ज़िम्मेदारी अब सूर्यप्रसाद के ऊपर थी , जब एजी की
मौत हुयी तब उसके पट्टीदार परिवार वालों ने उसे सलाह दी की , ये मिलकियत बेंच दे , और बाप का क्रिया करम अच्छे
से कर नहीं तो तेरे बाप की आत्मा भटकती रह जाएगी , मगर सूर्यप्रसाद इतना समझदार था की वो सब कुछ कम से कम
खर्चे में कर लिया खुद भी हायर सेकेंडरी पास किया एक भाई को सरकारी टीचर , एक को प्रोफेसर और खुद सरकारी
कम्पाउण्डर बन गया था , उसकी पोस्टिंग शहर के सरकारी हस्पताल में थी , जब कोई जजमान हस्पताल जाता , तो वो
यही कहता पंडित जी आप सबका मावाद साफ़ करते हैं आपको ये शोभा नहीं देता , आपके पिता इतने बड़े प्रकांड विद्वान्
थे , आप खुद राजपुरोहित हैं , आपको शोभा नहीं देता की आप सबके घाव साफ़ करें , इन सब बातों के चलते आखिर
एक दिन सूर्यप्रसाद ने कम्पाउण्डर की नौकरी छोड़ दी , और अपना सारा ध्यान और समय यजमानी और पूजा पाठ में
दिया , धीरे धीरे सूर्यप्रसाद भी अपने पिता एजी की तरह ही नगर भर में प्रशिद्ध हो गए ,
सीढ़ियों से उतरते खड़ाऊँ पहने हुए पाँव की खटपट , पहला मोड़ ख़तम हुआ ही था की , सामने नीचे की सीढ़ियों में पीला
वस्त्र पहने शिखा फैलाये हुआ एक शख्स रास्ता रोक कर बैठा हुआ था , खड़ाऊँ पहने जो शख्स नीचे उतर रहा वो कोई
नहीं राजपुरोहित सूर्य प्रसाद थे , सूर्य प्रसाद को वेद मंत्र शास्त्रार्थ में हराने वाला नगर भर में न था , जैसे ही सूर्य प्रसाद
सामने आये वो शख्स पलटा और बोला छोड़ दे तू मेरा घर ये मेरे पूर्वजों का है , मैं तुम्हे तो कुछ नहीं कर सकता मगर
तुम्हारे वंश को तबाह कर दूंगा , तब सूर्य प्रसाद बोले , जाएगा तू यहां से दुष्ट आत्मा मैं इस घर का मालिक हूँ , मेरे
पिता जी को ये घर तुम्हारे पूर्वजों ने उपहार स्वरुप दिया था , तुम अब एक आत्मा हो तुम्हे इस घर को छोड़ना पड़ेगा ,
और मैं तुम्हे इस घर से भगा कर रहूँगा ,
और सूर्य प्रसाद ये बोलते हुए उस सन्यासी को अनदेखा करते हुए आगे बढ़ जाते हैं , सूर्य प्रसाद की पत्नी है रामकली जो
पेट से गर्भवती हुईं , ये पीले वस्त्र वाला सन्यासी घर की अटारी की एक कोठरी में रहता था , जिसमे उसका चिमटा गड़ा
हुआ था , जो की सूर्य प्रसाद ने उखाड़ कर फेंक दिया था , और वो उसी कोठरी में भगवान् को बिठाकर रुद्री का पाठ किया
करते थे , और वो उसी कोठरी के द्वार सन्यासी का रास्ता बंद करके पलंग रख कर सोते भी थे । दिन गुज़रते गए
सूर्यप्रसाद की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया , बेटा साल भर का हुआ एक दिन सूर्य प्रसाद किला में पूजा पाठ करवाने
गए , तभी उनका बच्चा उस कोठरी की तरफ खेलता हुआ बढ़ा ही था की वहीँ खेलते खेलते ख़त्म हो गया ,
तब सन्यासी ने सूर्य प्रसाद को चेतावनी दी और बोला मैंने समझाया था न तुझे मेरा घर छोड़ दे वरना मैं तेरा खानदान
क्या पूरा वंश ख़त्म कर दूँगा , तब सूर्य प्रसाद ने एक बार फिर सन्यासी को बोला तुझे यहां से जाना पड़ेगा मैं यहीं रहूँगा ,
और सूर्य प्रसाद ने उस कोठरी में रुद्री का जाप जारी रखा सूर्य प्रसाद की पत्नी ने फिर एक बच्चे को जन्म दिया वो भी
हँसता खेलता ख़त्म हो गया इस तरह सन्यासी ने सूर्य प्रसाद के ३ बेटे और ३ बेटियों को मौत के घाट उतार दिया , मगर
सूर्य प्रसाद डरे नहीं , उन्होंने रुद्री मंत्र का जाप जारी रखा ३ बेटे और तीन बेटियों की मौत के बाद सूर्यप्रसाद की पत्नी ने
१ बेटे को जन्म दिया , उसे नीचे की कोठरी में ही पाला पोसा गया जहां भगवान् रहते थे , ५ साल तक उस बच्चे ने
सन्यासी के खौफ से उस कमरे के बाहर कदम नहीं रखा था , सूर्यप्रसाद की पत्नी उस कोठरी में ही बच्चे के लिए खाना
बनाती वहीँ खिलाती ,
सन्यासी ये सब देख कर आगबबूला होजाता सूर्य प्रसाद जब रात ३ बजे उठते और नित्य क्रिया के लिए नदी के तट पर
जाते सन्यासी भी उनके साथ घाट में जाता सूर्य प्रसाद जैसा जैसा करते वो भी उनका अभिनय करता और उन्हें डराने की
कोशिश करता , और जब सूर्य प्रसाद नदी में नहाकर मंत्रोच्चारण करते वो सन्यासी भूत का रूप धारण कर पानी में
छलांग लगा कर भाग जाता , सूर्य प्रसाद के चार भाई थे पिता जी बचपन में ही चल बसे थे , चारों भाइयों की परवरिश
का ज़िम्मा भी सूर्य प्रसाद के ऊपर ही था , अब सन्यासी सूर्य प्रसाद के भाइयों को परेशान करना सुरु कर दिया था , सूर्य
प्रसाद का एक छोटा भाई था रामायण वो पढ़ा लिखा स्कूल में लेक्चरर था वो इन सब बातों को नहीं मानता था , उसकी
बीवी भी गर्भवती हुयी उसे भी एक बेटा हुआ जो की सन्यासी द्वारा काल का ग्रास बन गया ,
जब वो बालक ५ साल का हुआ था , तब एक दिन तूफ़ान आया घर के आँगन में एक बबूल का बहुत बड़ा पेड़ था , वो
अचानक से गिरा , और घर के अंदर खेल रहा ५ साल के बालक को जाने क्या हुआ की वो वहीँ ढेर हो गया , दुबारा उठा
ही नहीं , सूर्यप्रसाद राम नवमी में नौ दिन का व्रत रखते थे , उनके छोटे भाई रामायण ने उन पर अपने बेटे की मौत का
दोषारोपण तक लगा डाला कहा की भाई साहेब रामनवमी का व्रत रहते हैं जिसके कारण मेरा ५ साल का बेटा मर गया , ये
बात सुनकर सूर्यप्रसाद को बड़ा दुःख हुआ , उन्होंने रामनवमी का व्रत रखना ही बंद कर दिया ,
पूरे परिवार में बस सूर्यप्रसाद थे जिन्हे उनकी पूजा पाठ के चलते सन्यासी छू नहीं सकता था , बाकी वो सारे परिवार के
एक एक सद्श्य का जीना दुश्वार करके रखा हुआ था , दोपहर का वक़्त था सूर्यप्रसाद का पलंग सन्यासी वाली कोठरी के
ठीक सामने लगा हुआ था , सूर्यप्रसाद का छोटा भाई दोपहर में उस पलंग में लेट गया , तभी उसकी आँख लग गयी ,
सन्यासी का कोठरी से बाहर निकलने का वक़्त हो चुका था , वो सूर्यप्रसाद के भाई की छाती में लात रखकर रौंदता चला
गया , सूर्यप्रसाद के भाई डर के मारे घर से बाहर ही निकल भगा , फिर दुबारा उसकी कभी हिम्मत नहीं हुयी की वो उस
पलंग पर बैठे भी , दिन गुज़रता गया वक़्त करवटें लेता रहा , सूर्यप्रसाद ने इतनी तबाही के बाद भी वो घर नहीं छोड़ा ,
और सन्यासी था की जाने का नाम नहीं ले रहा था ।
सूर्यप्रसाद की पूजा पाठ के चलते सन्यासी कोठरी में टिक नहीं पाता था , वो बस आता थोड़ी देर रुकता मंत्रो के उच्चारण
की वजह से वो जगह इतनी पवित्र हो चुकी थी की आखिर एक दिन ,
घर के आँगन में जब सूर्यप्रसाद की माँ लेटी थी तब उनके ऊपर सन्यासी ने धुएं का काला साया डाल दिया और हाँथ में
काट कर हाँथ लहू लुहान कर दिया , और एक आवाज़ गूंजी मैं सन्यासी तुम सबका सत्यानाशी तेरे बेटे की अथाह पूजा
पाठ की वजह से आखिर हार गया हूँ मैं अब जा रहा हूँ अपनी मिल्कियत तम्हारे हवाले करके कर धुंआ आस्मां की और
उड़ता हुआ अदृश्य हो गया ।
the end
pix taken by google