dosti shayari फ़िराक़ ए यार की क़ाफ़िर निगाही ,
फ़िराक़ ए यार की क़ाफ़िर निगाही,
गुमसुदगी में दिलों के आखेट करती हैं ।
दोस्तों से जिरह कर ली दुश्मनो से सुलह कर ली ,
अब ज़िन्दगी से जश्न ए जीत का मलाल जाता रहा ।
सियासी दाँव पेंचों के यहाँ पंखों को झलते हैं ,
जो बच गया क़फ़न से उसे होली के रंगों में डुबाता है ।
मैकदों में शराब बिकती है यही क्या कम था ,
हर अंगूरी पहली धार की हो ज़रूरी तो नहीं ।
होती हैं मुर्दों के क़ब्रों में भी जश्न की रातें ,
रूहों की आज़ादी के जब फूल खिलते हैं ।
हमारे वादों में सियासत लाख सही ,
मगर बेजा जुमले सुनाने का हमें शौक़ नहीं ।
सबको अपना अहल ए सलूक आया ,
जब लुट गया क़फ़न अपना वतन याद आया ।
पूँजी कमाने का बस महज़ एक ज़रिया है ,
सियासतदानों की बिछाई बिसात पर हर रोज़ हिंदुस्तान चलता है ।
कभी यू पी कभी बंगाल कभी महाराष्ट्र जलता है ,
सियासत की आँच होने न पाए मद्धम ।
लोग दिलों में नफ़रतों का ख़ाका बनाये रखते हैं ,
मुँहज़बानी ज़हर उगलते नहीं ।
इन आँखों के मानिंद बदन के पैरहान तक ,
थिरकती धड़कनो में ग़ज़ल की दस्तकारी है ।
किताबी पन्नो से जश्न ए गज़ल उठती है ,
तेरी बहसत के किस्से वक़्त के सुनहरे वर्क़ में दब गए सारे ।
मीलों मील जश्न की रातें ,
दिन के उजालों में गम ए गर्दिश की तन्हाई ।
जीत का सेहरा कैसा फ़तेह की अक़ीदतें कैसी ,
वक़्त की रफ़्तार के आगे अभी यलगार बाक़ी है ।
उम्र के इस पड़ाव में भी आकर के न सम्हले ,
ये हाल ए दिल या वो जाने या रब जाने ।
बस जीत की ख़ुशी होती न हार का गम होता ,
सेहरा में हर शाम गर फ़िराक़ ए यार भी शामिल होता ।
दहशत से दुनिया की दौलतें लूटी तो क्या लूटी ,
मोहब्बतों से एक दिल को जीतते तो जश्न ए ग़ालिब की ग़ज़ल बनती ।
तू मेरी बेबसी का इल्ज़ाम अपने सर न ले या मौला ,
मैं मेरे गुनाहों का खुद क़बूल ए मुंसिफ हूँ या मौला ।
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