farmers situation in india truthful short story hindi ,
farmers situation in india truthful short story, मेरी कहानी हर एक भारतीय किसान की आत्मकथा है ,
आसमान पर दिखाई देने वाला हर एक काला बादल किसान की ज़िन्दगी में खुशहाली की उम्मीद लेकर आता है , यही
हाल हमारे नायक हरिराम का भी है उसे लगता है अब बारिश होगी , मगर खरीफ़ की फ़सल के साथ रबी की फ़सल भी
मौसम के बदमिजाज़ की वजह से बर्बाद हो रही थी, सर पर बेटे की पढ़ाई का बोझ और साथ में बेटी के ब्याह की चिंता
उसे हर दिन भीतर से खोखला कर रही थी , रबी की फ़सल तो भगवान भरोसे ही होती है किन्तु खरीफ़ की फ़सल सिंचाई
के साधन सम्हाल ले जाते हैं , उस पर टिड्डियों और इल्लियों का खतरा बराबर बरकरार रहता है , ऐसे में किसान खुद न
मरे तो उसे ऊपर वाला मार ही डालता है , और अगर उसकी कमाई का मात्र जरिया खेती है तो समझो भुखमरी उसके
दरवाजे पर हर समय मुँह उबाये खड़ी ही मिलती है , उसकी दिवाली दशहरा तीज त्यौहार बस उसकी लहलहाती फ़सल ही होती है ।
अब आते है अपनी कहानी के नायक हरिराम की ज़िन्दगी पर , घर पर जवान बेटी उसका ब्याह करना था , लड़की तो
पढ़ी लिखी थी फिर भी गाँव के माहौल में पली बढ़ी थी , जहां भी रिस्ता ढूढ़ने जाता अच्छे खासे दहेज़ की मांग पहले ही
रख दी जाती , बाप की दयनीय हालत देख कर बेटी ने भी गाँव के ही एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली थी , फिर भी
बेटी का बाप के घर में होना आज भी हमारा समाज पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है ,
जैसे तैसे रबी की फ़सल की बर्बादी के बाद सरकार ने सूखा राहत देने का फैसला किया , उसपर भी पटवारी द्वारा
मुआवजा बनाने के एवज में बड़ी रकम की मांग रखी गयी , यहां वहाँ से कर्ज़ा लेकर हरिराम ने मांग पूरी की कुछ
मुआवजा भी पाया जो फ़सल खर्च का आधा भी नहीं था , अब हरिराम की पूरी उम्मीद खरीफ़ की फ़सल पर टिकी हुयी थी , वो जैसे तैसे अपने दिन गुज़ार रहा था ,
बीच बीच में लड़के की पढ़ाई के खर्चे की भी खानापूर्ति करता ही रहता था , कोहरा ओला पानी से मार खाकर जो फ़सल
बची थी , उसे कृषि उपज मण्डी में बेचना अपने आपमें किसी जंग जीतने से कम नहीं था , उस पर सोसायटी द्वारा
अनाज का उचित मूल्य न मिल पाना भी अपने आपमें एक विकट समस्या थी , खैर जैसे तैसे अनाज बिक ही गया ।
अब बारी थी बेटी के ब्याह की , उधर बेटे की भी पढाई पूरी हो चुकी थी , उसने भी प्राइवेट जॉब कर ली थी सरकारी जॉब
की तैयारी कर रहा था , क्यों की पढ़ने में होशियार था इसलिए ज़्यादा नहीं भटकना पड़ा और जल्द ही उसे एक अच्छी
खासी कमाई वाली नौकरी मिल गयी , अब हरी राम ने दिन रात की तलाश के बाद एक सरकारी टीचर ढूढ़ा जिसके साथ
बेटी का ब्याह कर दिया बेटी ससुराल चली गयी , अब बेटे की शादी के लिए बड़े बड़े घरों से रिश्ते आने सुरु हो गए
हरिराम का लड़का अब सरकारी अफसर जो बन चुका था ।
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आखिर कार लड़की की शादी भी तय हो गयी , अब च्यूं की बहू बड़े घर की थी तो वो गाँव में तो रहेगी नहीं , इसके लिए
शहर में ही एक घर बनवाया गया , और शादी का कार्यक्रम संपन्न हुआ , बहु ने कभी गाँव के दर्शन भी नहीं किये नहीं
उसे गाँव से कोई लगाव था , नहीं कभी वो गाँव आई , शादी को हुए महीनो हो गए बेटा जब भी आता तो गाँव अकेला ही
आता हरिराम को मन में खटका थोड़ा बुरा भी लगा फिर उसने सोचा शहर की लड़की है गाँव न पसंद करती होगी इसलिए
नहीं आती , तो उसने एक बार खुद मन बनाया की वो शहर जायेगा बहू से मिलने , बड़ी साज सज्जा बर बिदाई के साथ
वो बेटे के घर पंहुचा उस वक़्त बेटा नहीं था घर में , दरवाजे की घंटी बजाया
नौकरानी ने दरवाजा खोला वो खुद ही जाकर सोफे में बैठ गया , नौकरानी भी घर का काम निपटा कर चली गयी ,
बहू अपने कमरे से बाहर तक नहीं निकली , हरिराम वही बैठा रहा बेटा अभी नहीं लौटा था वो उसके घर आने से पहले ही
वहाँ से चुपचाप बाहर निकल आया , और गाँव आ गया ।
रास्ते में लोग मिलते रहे पूछते रहे बहू बेटे का हाल , वो चुपचाप अवाक मुँह दबाये गाँव के पगडंडियों से होता हुआ घर
पंहुचा , किसी से बात भी नहीं की और खाट पर लेट गया , सुबह देर तक उसके कमरे का दरवाजा नहीं खुला सबने
आवाज़ लगाईं दरवाज़ा तोडा , अंदर हरिराम की खपरैल की मयार से लटकी लाश मिली । पुलिस आई पंचनामा हुआ और
दूसरे दिन के पेपर में छपा की क़र्ज़ से डूबे एक किसान ने फिर आत्महत्या कर ली ।
the end
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