fear of deserted jungle a true short horror story ,
रात के तकरीबन ११:३० का टाइम २ बाइक की लाइट्स इधर उधर रास्ता तलाश करती हुयी , कभी इस तरफ दौड़ती तो
कभी उस तरफ दौड़ती मगर रास्ता न जाने क्यों खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था , तभी जंगल के एक कोने से हल्की
हल्की रोशनी ऊपर की और उठती हुयी दिखाई देती है , पीछे वाली बाइक से आवाज़ आती है उस और से उठ रहे प्रकाश
की तरफ चलो हो न हो जंगली आदिवासी आग जला कर बैठे होंगे , मैं जवानी के जोश में गाड़ी का एक्सीलेटर, आँख
मूंदकर घुमा देता हूँ और सीधा जल रही आग के पास जाकर बाइक को रोकता हूँ , मगर आग के पास पहुंचते ही मुझे
प्रतीत होता है की गलत जगह फंस गए , आग के इर्द गिर्द इंसान का नामोनिशान नहीं था , बस कुछ गगरियाँ और बांस
के टुकड़े थे ऐसा लग रहा है था की शाम को ही किसी मुर्दे को जलाया गया है यहां पर , पीछे मुड़कर देखता हूँ तो दादा
मामा ( मेरे दोस्त के मामा ) की बाइक का रता पता नहीं चलता है , मैं फिर सामने देखता हूँ ,
एक विशालकाय काला प्रतिबिब्म जो किसी भूत की परछाई लग रहा था मुझे मेरी तरफ आता हुआ प्रतीत होता है , मैं
गाड़ी में किक मारता हूँ मगर ये क्या मेरे शरीर की ताक़त तो शायद भय के कारण ख़त्म हो गयी है , और बाइक में
ज्वलनशील पेट्रोल की जगह बर्फ का पानी दौड़ रहा था , खैर दो चार प्रयासों के बाद बाइक स्टार्ट होती है , मैं उसी रास्ते
में बाइक दौड़ा देता हूँ जिस रास्ते से होकर आया था , कुछ दूर पंहुचा ही था की दादा मामा की बाइक मिलती हैं दादा
मामा पूछते हैं क्या हुआ कोई नहीं था वहाँ मैं बताता हूँ दादा मामा वहाँ कोई नहीं किसी इंसान की चिता जल रही है बहुत
बड़ा भूत भी है वहाँ , चलिए वापस दादा मामा बोलते हैं यार पुष्पेंद्र मेरी यो बाइक की बैटरी भी ख़त्म हो रही है ,
ज़रा मोबाइल में देखना कितना टाइम हो गया है , मैं मोबाइल में देखता हूँ रात के तकरीबन १२ बज चुके थे , दादा मामा
१२ के पार हैं इतना बोलना था की झाड़ियों से कुछ विचित्र तरह की आवाज़ें आती हैं और झाड़ी हिलने लगती है , मुझे
ऐसा महसूस होता है की झाड़ियों के पीछे हो न हो कोई हिंसक जानवर है जो किसी भी पल हमला कर सकता है मैं एक
बार फिर बाइक स्टार्ट करके वहाँ से भागता हूँ , दादा मामा पीछे से आवाज़ देते हैं थोड़ा आराम से चला मेरी बाइक की
बैटरी लौ है , मगर डर के मारे मैं उनकी बात अनसुना कर देता हूँ , और सीधा एक बल्ब की दिख रही रौशनी के तरफ
बाइक दौड़ाता जाता हूँ , और आखिरकार एक गाँव में एक घर के बाहर जाकर मेरी बाइक का पेट्रोल भी ख़त्म हो जाता है
और रिज़र्व में लगी बाइक भुक भुक करके बंद हो जाती है , तभी दादा मामा भी पीछे से अपनी इलेक्ट्रिक बाइक लिए हुए
पहुंच जाते हैं , मैं पूछता हूँ दादा मामा आप आगये दादा मामा बोलते हैं हाँ यार तुम रुके नहीं मैं बहाना बनाता हूँ मुझे ये
लाइट दिख गई थी इसलिए मैं इधर आगया , दादा मामा बोलते हैं अब रात इसी जगह गुज़ारनी पड़ेगी , मैं पूछता हूँ दादा
मामा आपको झंकाड़ी में कुछ नहीं दिखा दादा मामा बोले भैंस थी जंगल में चरने गयी थी , तुम उसी को देखकर भाग
दिए थे क्या मैंने बोला नहीं दादा मामा ,
मैं बोलता हूँ दादा मामा आपकी बाइक तो अपन कहीं भी लाइट की तार में चार्जर फंसा के चार्ज कर लेंगे मगर मेरी बाइक
का क्या इसका भी पेट्रोल ख़त्म हो गया है , दादा मामा बोलते हैं ये मनीष भी न ज़्यादा पेट्रोल नहीं डलवा सकता है , तुम
तो मुंबई में थे न तुम कब आगये , मैं बताता हूँ ,शाम को ही आया था मनीष को आते ही फोन लगा दिया वो आगया मेरे
पास , हम दोनों बस चाय पीने बैठे ही थे की मनीष के फोन पर उसके पापा की डेथ की खबर आगयी जो की महीनो की
बीमारी के बाद चल बसे, वो लौट ही रहा था की मैंने उससे पुछा क्या हुआ मनीष ने बताया पिता जी ख़त्म हो गए हैं उसे
तुरंत निकलना पड़ेगा मैंने भी बोला मैं भी साथ चलूँगा तो उसी के साथ आगया था , अब इस गाँव में कोई रहेगा नहीं सब
मनीष के पिता जी को लेकर मनीष के गाँव के लिए एम्बुलेंस में रवाना हो गए थे , मनीष की बाइक को मामा के यहां
तक पहुंचाने की ज़िम्मदारी मेरे ऊपर थी , मैं और आप बचे आखिर में सबके निकलने के बाद और हम रास्ता भटक गए
।
story in flash back ,
मनीष और पुष्पेंद्र बचपन के दोस्त हैं दोनों एक दूसरे को जान से भी ज़्यादा चाहते हैं पुष्पेंद्र जब भी मुंबई से आता है वो
मनीष को फोन करता है और मनीष तुरंत उससे मिलने चला आता है ,मनीष की माँ दूर गाँव के हॉस्पिटल में नर्स हैं
उसके पिता जी गाँव में खेती बाड़ी का काम करते हैं , लम्बे समय के अंतराल के बाद आज उनका देहांत हो गया है,
back to main story ,
दादा मामा पूछते हैं तुम तो मनीष के साथ आये थे न फिर तुम रास्ता कैसे भटक गए , मैंने बोला दादा मामा मुझे लगा
आप इसी शहर के हैं आपको रास्ता पता होगा , दादा मामा बोले मगर यार मैं कभी इस गाँव में नहीं आया , खैर आज
रात तो यहीं गाँव में बितानी पड़ेगी , इसी घर के बाहर बनी ओसारी में (गाँव के लोग दोपहर में दरबार करने के लिए घर
के बाहर परछी बनाये रहते हैं जिसमे खपरैल तो होती है मगर दरवाज़ा नहीं होता , उस जगह पर रात के वक़्त उनके
पालतू कुत्ते विश्राम करते हैं शुक्र था भगवान् का की उस घर में कोई पालतू कुत्ता नहीं था )दादा मामा वहीँ चबूतरे में
एक हाँथ को तकिये की तरह रखे और आँख बंद करके लेट गए , मेरी जेब में सिगरेट का पैकेट रखा था , जिसमे से मैंने
भी एक सिगरेट जलाई दो चार कश के बाद वहीँ दीवाल पर रगड़ता हुआ दादा मामा के बाजू में लेट गया आँख में रूमाल
रख दिया ताकि सामने लगे बल्फ का प्रकाश आँख में न चुभे , दो दिन के सफर की थकान से शरीर टूट रहा था , जाने
कब आँख लग गयी , पता भी नहीं चला ,
cut to ,
एक अँधेरे कमरे में लेटा १० से १२ साल का मासूम बच्चा , पसीने से तर , रात में अचानक चीख उठता है , और चीखता
हुआ दरवाज़े की तरफ दौड़ लगाता है , भूत भूत , तभी छ्त में सोये उसके परिवार के लोग उसे ऊपर ले जाते हैं वो बताता
है वीराना की चुड़ैल आई थी , दो झापड़ मार के चली गयी , सब बोलते हैं कुछ नहीं बिल्ली का बच्चा रहा होगा जो इसके
ऊपर से होकर गुज़र गया और इसे लगा भूत है , वीराना का खौफ भी परिवार वालों का बनाया खौफ था , जो हर बात पर
वीराना की चुड़ैल का डर दिखाते थे , इस डर के पीछे भी एक कहानी थी बच्चे के छोटे नाना जी बैंक में कैशियर थे , शाम
के वक़्त जब वी फ्री रहते थे घर के पास की टॉकीज़ में टिकट काउंटर में बैठ जाते थे , वो टॉकीज़ उनके मित्र की थी ,
बच्चे के साथ ख़ास लगाव था बच्चे ने बोला नाना मुझे भी फिल्म देखनी है मैं शाम को आऊँगा, नाना ने बोला ठीक है ,
बच्चा शाम को अपने ख़ास दोस्तों के साथ ६ से ९ बजे वाले शो में पहुंच गया नाना जी ने एक आदमी को बोला इन्हे भी
फिल्म देखनी है अंदर जाने दो , बच्चे अंदर घुसे ही थे की वीराना वाली चुड़ैल को फांसी में लटकाने वाला सीन आता है
और चुड़ैल जैसे ही चेहरा घुमाती है , बच्चे डर के मारे टाकीज़ से भाग जाते हैं , और घर जाकर सारी आप बीती सुनाते हैं
,तभी से घर वाले बच्चे को वीराना का ख़ौफ़ दिखा कर डराते हैं , और वो बच्चा कोई और नहीं पुष्पेंद्र है जो आज भी
वीराना के ख़ौफ़ में जी रहा है ,
cut to ,
वैसे तो हर जगह वीराना का ख़ौफ़ मौजूद था मगर आज तो सच का ख़ौफ़ था जिसका सामना करना था और रात
गुज़ारनी थी , मुझे नींद कहाँ आने वाली थी थोड़ी ही देर में मैंने दूसरी सिगरेट जलाई तभी रात के अँधेरे को चीरती गाँव
की गलियों में आगे बढ़ती हुयी दो आँखें दिखाई देती हैं , मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो यमराज साक्षात मेरी मौत बनकर
मेरी तरफ बढ़ रहे हैं , तभी घर के सामने वाले दरवाज़े से एक आदमी बाथरूम जाने के लिए बाहर निकलता है , शायद वो
अभी अर्धनिंद्रा में है की तभी उसकी नज़र म्रेरे और दादा मामा के ऊपर पड़ती है , हमसे ज़्यादा ख़ौफ़ उसे महसूस होता है
वो तुरत अंदर की तरफ लपकता है और दरवाज़ा बंद कर लेता है ,
शायद उसे लगता है गाँव में डकैत घुस आये हैं , तभी सामने से आ रही यमराज की सवारी अर्थात काली काली मुर्रा भैसें
सामने से गुज़र जाती है , तब कहीं जाकर चैन की सांस आती है , मगर ये चैन भी छणिक था , सामने वाला दरवाज़ा
एक बार फिर खुलता है आस पास के दो चार दरवाज़े और खुलते हैं , दो चार लट्ठ धारी हमारे पास आते हैं तभी दादा मामा
भी जाग जाते हैं , लट्ठधारी हमसे पूछते हैं क्या है भाई रास्ता भटक गए हो क्या हम बताते हैं हाँ भाई , गाड़ी का पेट्रोल
भी ख़त्म है और ये इलेक्ट्रिक स्कूटर की बैटरी भी , लट्ठ धारी बताते हैं दूकान तो सुबह के पांच के पहले न खुलेगी , मैं
पूछता हूँ किराने की दूकान में पेट्रोल मिलेगा , एक गाँव वाला बोलता है सब मिलेगा मगर सुबह ५ के बाद । और इतना
बोलने के बाद वो अपने अपने घरों के अंदर चले जाते हैं ।
रात्रि का तीसरा पहर जो सबसे भयानक डरावना होता है , मेरे ज़हन में यही सवाल था की तक़दीर इसे कहते हैं , कल की
रात मुंबई के बड़े मियाँ के ढाबे का खाना और आज की रात २ पार्ले जी की बिस्किट , और सिगरेट के साथ इस झोपड़े में
बितानी पड़ रही है । लगता है इसे ही बुरे वक़्त की एंट्री कहते हैं ।
रात आँखों आँखों में कब गुज़र जाती है पता भी नहीं चलता , सुबह के पौने चार बज रहे थे , तभी जिस घर की परछी में
हम रुके थे उसका दरवाज़ा खुलता है , पहले २ भैंस उसके पीछे एक औरत उन्हें हाँकती हुयी बाहर आती है , वो हमें
देखकर स्तब्ध रह जाती है , पूछती है का दादू हरै रात इहैं गुज़ारे हयै का हम हाँ में सर हिलाते हैं , तभी एक आदमी उसी
घर के दरवाज़े से बाहर निकलता है , हम उससे दूकान का पता पूछते हैं , वो हमें पता बताता है आगे के मोड़ से लगभग
एक किलो मीटर के बाद , दाएं साइड में एक किराने की दूकान है वहाँ पेट्रोल मिल जायेगा , हम उससे एक लोटा पानी
लेते हैं पानी पीते हैं , और बाइक को धकेलना सुरु कर देते हैं ,
लगभग ३० मिनिट बाद हम एक दूकान के सामने पहुंचते हैं , दुकान अभी खुल ही रही थी की दुकान वाला हमें देखते ही
पहचान जाता है , और बोल पड़ता है रात इसी गाँव में गुज़ार दिए का साहेब , दादा मामा बोलते हैं , हाँ रास्ता भटक गए
थे , मैं बोलता हूँ दादा मामा रात में आपने बिस्किट का पैकेट इसी दुकान से से लिए था न , दादा मामा कहते हैं हाँ गाड़ी
में पेट्रोल भरने के बाद हम दुकान वाले से एक रस्सी लेते हैं मोटर साइकिल के पीछे इलेक्ट्रिक स्कूटर को बांधते हैं और
दुकान वाले से शहर का रास्ता पूछते हैं दुकान वाला बोलता है , ये जो सीधे पगडण्डी है बस इसी में आगे चले जाइये ,
लगभग ३ किलोमीटर बाद रेलवे फाटक मिलेगा , उसी के आगे से शहर की रोड है , हम दुकान वाले का शुक्रिया अदा
करते हुए आगे बढ़ते हैं , लगभग डेढ़ किलोमीटर के बाद वही जगह आती है जहां रात में जलती चिता मिली थी , जिसके
सामने एक महुआ का सूखा पेड़ था जो की अब ठूंठ बस बचा था, रात के अँधेरे में वो किसी भयावह राक्षस की आकृति सा
प्रतीत होता है , जिसे देखकर कोई भी अन्जान आदमी भूत का भ्रम पाल सकता है , दादा मामा बोलते हैं यहीं पर न
भटक रह थे रात में और महुए की ठूंठ की तरफ इशारा करते हुए बोलते हैं ये रहा है तुम्हारा डरावना भूत जिसे देखकर
तुम भागे थे । मैं शर्मिंदगी से मुस्कुराता हूँ,
और आखिर कार लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद हम दादा मामा के घर पहुंच जाते हैं, जब सबको रात भर की
दास्तान सुनाते हैं तो सभी को आश्चर्य होता है , वो हमारी होशियारी पर चुटकियां लेकर हँसते हैं , और हम वहाँ से मनीष
के गाँव उसके पिता जी के अंतिम संस्कार के लिए रवाना हो जाते हैं , दोस्तों आज भी जब कभी वो रात याद आती है ,
जिस्म में डर की एक सिहरन सी दौड़ जाती है , जो की अब शायद वीराना मूवी की चुड़ैल सामने हो तब भी उतना डर
महसूस न हो जितना जितना की उस रात उस वीराने में महसूस किया था ।
the end
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