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रात के तकरीबन २ बजे शहर में चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था , आसमान पर चांदनी रात को खूबसूरत बना रही थी
, गर्मी से निजात पाने के लिए छत पर एक लड़की अपने ६ माह के बच्चे को सीने से चिपकाए अनजान डर से गहरी नींद
में सो रही थी , तभी उसे महसूस होता है की मधु मक्खी की आवाज़ उसके कान में गूँज रही है , वो करवट बदल कर फिर
सो जाती है मगर मधु मक्खी की आवाज़ उसे सोने नहीं देती , अचानक उसकी आँख खुलती है सामने उसे मधुमक्खियों
का झुण्ड एक डरावने इंसान के आकार में दिखाई देता है वो चीख पड़ती है , छत की चिमनी से अपनी माँ को आवाज़
लगाती है (७० के दसक में शहरों में भी खाना चूल्हे पर ही बनता था , धुएं को बाहर निकालने के लिए , छत पर
चिमनियां बनी होती थी जिन्हे धुआंड़ी भी कहा जाता है ) लड़की की चीख सुनकर तुरंत लड़की का सारा परिवार छत पर
एकत्रित हो जाता है , और डरावने इंसान के आकार वाले मधुमक्खियों का झुण्ड वहाँ से गायब हो जाता है । लड़की की माँ
लड़की और उसके बच्चे को नीचे ले जाती है ।
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लड़की बताती है उसके चाचा का भूत आया था , मधुमक्खियों के झुण्ड में , वो उसे डरा रहा था ।
अभी कुछ दिन पहले परिवार में एक अधेड़ व्यक्ति फांसी लगाकर ख़ुदकुशी किया था , अभी उसे मरे साल भर नहीं हुआ
था , सभी को लगा हो सकता है लड़की अपने चाचा की मौत का सदमा भूल नहीं पायी हो और उसे ऐसा भ्रम हुआ होगा
की मधुमक्खियों के झुण्ड में चाचा ही रहे होंगे , सबने बात को आया गया कर दिया ।
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दोपहर का वक़्त गर्मी के दिन वही लड़की अपने बच्चे को प्यार से पुचकार रही थी , की तभी उसका बच्चा किसी और
तरफ देखकर मुस्कुराता है , और फिर अचानक रोने लगता है , तभी कमरे में किसी अन्जान शख्स की उपस्थिति का
एहसास डर से लड़की के रौंगटे खड़े कर देता है, वो अपने बच्चे को सीने से लगाकर उस कमरे से , निकल जाती है , की
तभी पीछे से अन्जान साया आता हुआ महसूस होता है , और लड़की के सामने आकर खड़ा हो जाता है , वो लड़की
के बच्चे को बड़े गौर से देखता है , उसे छूने की नाकाम कोशिश करता है , तभी लड़की वहाँ से दौड़ लगा देती है और
अपने परिवार वालों के पास पहुंच जाती है , और कमरे में हुए वाक़िये का ज़िक्र करती है , सभी को लगता है हो न हो
कुछ बात ज़रूर है मगर इस बात के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है ।
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घर में शादी का माहौल है , दोपहर का वक़्त है आँगन में पंडित जी द्वारा पूजा पाठ का कार्यक्रम चालू है , मेहमानो की
भीड़ लगी है मगर घर के अंदर कुछ और ही चल रहा है , रसोई में चूल्हे पर चढ़ा बर्तन (हांडा) जिसमे (पोटली में रखा
चावल ) और चावल की पोटली बार बार घूम जाती थी , २ घंटे से ज़्यादा हो चुका था , सब कह रहे थे भोजन में क्यों देर
हो रही है , तभी रसोइये से पूछा गया की आखिर क्या बात है चावल क्यों नहीं पक रहा है , वो बताता है चावल की पोटली
बार बार घूम जाती है , बात घरवालों से लेकर सारे मेहमानो तक पहुंच जाती है , और मेहमानो से बात पंडित जी तक ,
पंडित जी को जब ये बात पता चलती है वो पूजा बीच में रोक देते हैं , और बोलते हैं चलो मैं देखता हूँ ।
जैसे ही पंडित जी रसोई में पहुंचते हैं , वो कहते हैं यहीं जगह मिली थी खाना बनाने के लिए , यही फांसी लगाया था न
तुम्हारा भाई उसकी आत्मा का वास है यहां पर , खैर मनाओ अभी तक कुछ अनिष्ट नहीं हुआ , तब सभी बताते हैं रोज़
का भोजन अलग रसोई में बनता है इतना बड़ा कार्यक्रम है और खाना भी बहुत सारा बनाना है तो , उसके लिए ये कमरा
उपयुक्त समझा गया , पंडित जी बोलते है खाना बनाने से पहले इसके नाम का कच्चा भोज्य पदार्थ पहले ही निकाल देना
था , सबने कहा पंडित जी भाई की आत्मा की शांति के लिए उनके नाम का भोज्य पदार्थ पहले ही निकाला जा चुका है ,
फिर भी जाने ऐसा क्यों हो रहा है ,
तब पंडित जी बोलते है मनुष्य मरणोपरांत साल भर तक परिवार के इर्द गिर्द मंडराता रहता है , उसे मोक्ष नहीं मिलता है
इस आत्मा को कार्यक्रम में सादर आमंत्रित करना पड़ेगा , तभी कार्यक्रम पूर्ण रूपेण सही प्रकार से फलीभूत हो पायेगा ,
इसके बाद पंडित जी आत्मा की शांति के लिए छोटा सा पूजन करवाते हैं , और आत्मा को भी सदर आमंत्रित करते हैं तब
कहीं जाकर दोपहर का खाना बन पाता है ।
रात में बारात आती है सब कुछ ठीक ठाक से संपन्न हो जाता है , सुबह बारातियों के लिए , चाय नाश्ते का प्रबंध किया
जाता है , चाय पक रही होती है की तभी एक रिश्तेदार जो बहुत दिनों से ईर्ष्या की आग में जल रहा था , रसोई को खाली
पाकर खौलती चाय में राख डालने के लिए आगे बढ़ता है मगर उसे क्या पता की उसकी इस घिनौनी करतूत पर किसी
और शख्स की भी नज़र है , वो जैसे ही हाँथ बरतन की तरफ बढ़ाता है , तभी उसे एक झापड़ पड़ता है और वो वहीँ चारों
खाने चित्त होकर गिर जाता है , सबको लगता है थकान की वजह से गिर गया होगा , और वो आत्मा मुस्कुरा देती है
, और छोटी लड़की की शादी ठीक तरह से सम्पन्न होने के बाद बारात विदा हो जाती है ।
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बेटी की विदा के बाद का घर में मायूसी का माहौल , वही पास के एक बबूल के पेड़ पर बैठी चाचा की आत्मा जाने किस
बात पर फूट फूट कर रो रही है , शायद उसे भी भतीजी के ससुराल जाने का कष्ट था और सबसे ज़्यादा इस बात से दुःख
था की वो उसे सीने से लगाकर विदा भी नहीं कर पाया , आत्मा को जब भी उसका अतीत याद आता है वो रोती ज़रूर है ,
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घर का भरा पूरा माहौल चाचा की घर के बड़ों के साथ भले बेरुखी रही हो मगर छोटे बच्चों के साथ उसका ख़ास व्यवहार
था , उस समय सिनेमा की टिकट ६५ पैसे में मिलती थी , उसकी जेब में जब भी पैसे होते वो घर के बच्चों को सिनेमा
दिखाने ज़रूर ले जाता , मुग़ल ए आज़म चाचा ने १३ बार देखी थी , घर से सम्पन्न होने की वजह से चाचा की कुछ
आदतें खराब थी जैसे सट्टा खेलना वो हमेसा एक आँख में दूरबीन लगाए न्यूज़ पेपर में जाने क्या ढूढ़ता रहता था , सट्टा
ही उसके घर में कलह की वजह बनता था , सट्टा के चलते बीवी से उसकी आये दिन अन बन होती थी सट्टा खेलने का
जूनून चाचा के सर पर इस कदर सवार था की उसने बीवी के गहने बेचने सुरु कर दिए थे , बीवी अगर गहने देने में
आनाकानी करती तो चाचा उसको रात भर मारता, इसी कलह की वजह से चाचा ने एक रात फांसी पर लटक कर अपने
जीवन की इह लीला समाप्त कर ली ।
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रात के तकरीबन दो बजे घर में कोई नहीं , घर के सभी लोग रिश्तेदार के यहां शादी में गए हुए हैं ,बस एक कमरे बड़ी
लड़की अपने छह माह के मासूम बच्चे को लेकर आज फिर सो रही है , की तभी कुछ दुष्ट आत्माओं का आगमन होता है
, वो तरह तरह की डरावनी आवाज़ निकालते हैं , तभी लड़की की नींद खुल जाती है , वो अपने बच्चे को सीने से लगा
लेती है मगर कुछ दुष्ट आत्माएं उस बच्चे को छीनने की पुरज़ोर कोशिश करती हैं , मगर तभी गेरुआ वस्त्र धारण किये
एक सन्यासी पहुंच जाता है और अपने चिमटे की मार से दुष्ट आत्माओं को भगा देता है और बोलता है ये मासूम नाती है
मेरा मेरी बच्ची और मेरे नाती की तरफ किसी ने आँख दिखाने की कोशिश की जला के राख कर दूँगा , लड़की के चेहरे में
मुस्कराहट आ जाती है , वो पहचान जाती है उस महंत को वो कोई नहीं उसका चाचा ही है जो उसे और उसके बच्चे को
बचाने आया है , बच्चा भी चाचा की पुचकार पाकर मुस्कुरा देता है , और एक तेज़ रौशनी के साथ सन्यासी जाने कहाँ
अदृश्य हो जाता है ।
दूसरे दिन सवेरे जब घर वाले वापस आते हैं लड़की फिर उन्हें रात में हुयी घटना को विस्तार से बताती है , साल भर चाचा
की आत्मा परिवार के इर्द गिर्द होने का एहसास दिलाती रहती है ,लड़की की माँ से आकर हमेशा आत्मा मिठाई मांगती है
, मगर अब किसी को न ही डर लगता है , नहीं परेशानी होती है , और साल भर बाद जब विधि विधान से चाचा की बरषी
हो जाती है , उनकी आत्मा मुक्ति पा जाती है ।
story finish
pix taken by google
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