historical horror story in hindi shaapit village ,
गोविंदपुरा गाँव की पंचायत में डुग्गी पिटवा दी गयी है की आज दोपहर कालीगंज की पहाड़ी की दो चोटियों के बीच बंधी रस्सी के ऊपर एक नागसम्प्रदाय की नटनी चलकर अपना कर्त्तव्य दिखाएगी , गोविंदपुरा पंचायत में आज सुबह से ही भीड़ का जमावड़ा है , गोविंदपुरा पंचायत के जमींदार और नागसम्प्रदाय के मुखिया के बीच बेहद तनातनी का माहौल चल रहा है , नाग सम्प्रदाय के मुखिया का कहना है इस में सिर्फ हमारी पारो बिटिया का दोष नहीं है उसके पेट में पल रहा बच्चा जमींदार के बेटे का है , उसे पारो से विवाह करना पड़ेगा , गोविंदपुरा के जमींदार का बेटा भी इस गुनाह में बराबर का हिस्सेदार है , इधर गोविंदपुरा के जमींदार का कहना है की वो बहुत निम्न जाती का व्यक्ति है उसकी बराबरी का नहीं है और पारो के पेट में में पल रहा बच्चा जामीदार के बेटे का ही है इसकी कोई प्रामाणिक पुष्टि नहीं है , अतः किसी भी सूरत में ये रिश्ता नहीं हो सकता है अंततः दोनों गुटों में मिलकर ये निर्णय लिया जाता है , की कालीगंज की दोनों पहाड़ियों की चोटियां लगभग २०० मीटर ऊंची है अगर पारो पवित्र है तो उन दोनों चोटियों के बीच बंधे रस्से पर चल कर अपनी पवित्रता का प्रमाण दे ।।
पारो के पिता के मना करने के बावजूद भी पारो दोनों पहाड़ियों की चोटी पर बंधे रस्से पर चलने के लिए तैयार हो जाती है , संतुलन के लिए एक बांस का सहारा लेकर पारों रस्से पर चलती है नीचे ढोल नगाड़े बजने सुरु हो जाती है , काली गंज की दोनों पहाड़ियों की आपसी दूरी लगभग ५०० मीटर है देखते देखते पारो ३०० फिर ४०० मीटर की दूरी तय कर लेती है , पारों की कमयाबी गोविंदपुरा के जमींदार को बर्दास्त नहीं होती है , वो अपने गुर्गों को इशारा कर देता है और दूसरी तरफ की चोटी पर बंधी रस्सी , जमींदार के गुर्गे काट देते हैं ,
और अंततः इतनी ऊंचाई से गिरने के कारण नटनी और उसके गर्भ में पल रहे पुत्र की मौत हो जाती है , कहते हैं मरने से
पहले नटनी ने गोविंदपुरा के समस्त ग्राम वाशियों का श्राप दिया था की उसके साथ छल किया गया है अर्थात अब इस गाँव में जिसके पास धन रहेगा उसके पास जन नहीं रहेंगे और जिसके पास जन रहेंगे उसके पास धन नहीं रहेगा ।।
कहते हैं उस नटनी की मौत के तुरंत बाद वहां पर भयानक अकाल पड़ा जिसके कारण ज़्यादार लोगों ने उस गाँव से पलायन कर लिया , अर्थात दुसरे नगरों में काम करने के लिए चले गए , जो बचे वो आज भी अपने खुद का कुल चलाने के योग्य नहीं है , अर्थात उनके खुद के पुत्र या पौत्र नहीं हैं वो अपनी बेटियों की सन्तानो को गोद ले रखे हैं , वक़्त के साथ परिस्थितियां बदलती गयी नटनी की मौत की घटना को लग भग ३ू०० वर्ष बीत चुके थे , गोविंदपुरा का नाम अब गोविंदपुर हो गया था , पीढ़ियां बदल चुकी थी , नटनी के श्राप की घटना को लोग मिथ्या और अन्धविश्वास मानने लगे थे , युवा पीढ़ियां डॉक्टर इंजीनियर बन बन कर निकलने लगी थी ।
मगर गांव के हर युवा के साथ विवाह की बेहद समस्या आज भी बनी हुयी थी , हर तरह से योग्य होने के बावजूद भी युवाओं का विवाह नहीं हो पा रहा था जिस किसी का होता भी तो तलाक़ हो जाता कुछ की ब्याहता पत्नियां भाग गयी , कुछ की सगाईयाँ टूट गयी । गाँव में एक बहुत पुराना राधा कृष्ण का मंदिर है , जिसके पुजारी का नाम है श्रीधर और उनकी पत्नी का नाम था संध्या जिसके खुद की कोई संतान नहीं थी , उसने अपनी बहन के पुत्र को गोद लिया हुआ था , जिसका नाम महेश था , महेश को पुजारी ने बहुत पढ़ाया लिखाया और योग्य बनाया , उसके विवाह के सन्दर्भ में दूर गांव से एक रिश्ता आया , महंत श्रीधर ने हाँ भर दी , पुत्र महेश को इस बात की सूचना भेजी गयी वो शहर में सरकारी नौकरी कर रहा था ,डाकिया पत्र के साथ लड़की की फोटो भी लेकर पहुंच गया लड़की की फोटो देखकर महेश का मन अत्यंत प्रफुल्लित हुआ , पत्र पढ़ते और फोटो देखते देखते जाने कब उसकी आँख लग गयी ,
आँख लगते ही उसको एक भयानक स्वप्न दिखाई देता है , फोटो में जिस लड़की अक्स था वो एक भयानक चुड़ैल का रूप
धारण कर लेती है और वो महेश का गला दबाने लगती है , महेश का चेहरा पसीने से भीग जाता है , उसे घबराहट महसूस होने लगती है , गले पर चुड़ैल के पंजो का सिकंजा कसता जाता है , जिससे महेश का दम घुटने लगता है , और अचानक वो चीख पड़ता है , उसकी आँख खुलती है , चुड़ैल उसके सीने पर सवार होकर अपने पंजों के सिकंजे का गले पर बराबर दबाव बनाये हुयी थी , हड़बड़ाहट में उठकर महेश चुड़ैल को दूर फेंकता है , और दीवार से टकरा कर एक भयानक चीख के साथ चुड़ैल अँधेरे में गुम हो जाती है , पिता की आज्ञानुसार महेश फ़ौरन गोविंदपुर के लिए प्रस्थान करता है , अपने साथ हुयी घटना का महेश किसी से ज़िक्र नहीं करता है , वो पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानता है , और उनके आदेशानुसार विवाह के लिए तैयार हो जाता है , बारात गृह ग्राम से वधू के घर के लिए रवाना होती है सभी बारातियों में हर्ष उल्लास का माहौल है , लोग नाच झूम रहे हैं , बारात जैसे विवाह स्थल के तोरण द्वार पर पहुँचती है , तोरण द्वार के ऊपर एक भयानक विस्फोट होता है , तभी तोरण द्वार के ऊपर महेश को वही चुड़ैल बैठी दिखाई देती है , और तोरणद्वार महेश के ऊपर धड़ाम से गिर जाता है , और चुड़ैल एक भयानक हंसी के साथ वहाँ से ग़ायब हो जाती है , भगवान् का शुक्र था की तोरण द्वार केले के पेड़ बांस और कपडे का बना था जिसकी वजह से महेश को कोई गंभीर चोंट नहीं लगी थी , अंततः महेश को सकुशल निकाल लिया जाता है , बाराती आगे बढ़ते हैं , विवाह संपन्न होता है , विदाई के बाद बहू घर आती है , सुहागरात से ही बहू महेश को करीब नहीं आने देती , वो महेश से हमेशा दूरी बनाने के लिए तत्पर रहती है , कई बार महेश को जान से मारने की कोशिश के बाद की असफलता से निराश होकर आखिर एक दिन , बहू ने फांसी पर लटक कर अपनी जान दे दी ,
महंत श्रीधर इन सब बातों से अनजान नहीं थे , फिर भी उन्हें अपने वंश को आगे बढ़ाना था , उन्होंने महेश को दुबारा ब्याह के लिए राज़ी किया पिता के प्रस्ताव को आज्ञाकारी पुत्र कैसे टाल सकता था , उसने हामी भर दी , और एक बार फिर तमाम बिघ्न बाधाओं के होते हुए भी महेश का विवाह संपन्न हुआ , इस बार बहू ने महेश को मारने की कोशिश नहीं की सुहागरात को ही वो घर छोड़ कर भाग गयी वो कहाँ भागी किसके साथ भागी ये बात आज भी रहस्य है , लोगों का क्या है लोग तो कुछ भी कहते हैं कोई कहता है बहू बच्चलन थी किसी और के साथ टांका भिड़ा था इस लिए भाग गयी कुछ का कहना था की महेश में ही मर्दानगी की कमी है , इसलिए उसकी पत्निया या तो भाग जाती हैं या फिर मर जाती है , कुछ कहते थे की हो न हो भूत प्रेत का साया है , इसलिए महंत के घर में कोई बहू नहीं टिकती है ।
श्रीधर महंत भी इस बात से भलीभूत अवगत थे की हो न हो अभी भी इस गाँव में उस नटनी का श्राप विद्यमान है
जिसकी हत्या का ज़िम्मेदार वो सम्पूर्ण गाँव को मानती है , श्रीधर अपने नाना की जायदाद का एक लौता वारिश था , वो नटनी की आत्मा की शांति के लिए मंदिर में अनुष्ठान का आयोजन करता है , जिसमे दूर दूर से जाने माने तपश्वियों को बुलाया गया था श्रीधर ने पानी को पैसे की तरह बहाया , सम्पूर्ण गाँव ने नटनी से श्राप से मुक्त होने के लिए बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया , मगर जिस दिन यज्ञ का अंतिम दिन था उसी दिन आहूति देते समय , यज्ञ की अग्नि बुझ जाती है , आसमान पर चारों तरफ अँधेरा छा जाता है , तब उस अँधेरे में उजाले के साथ नटनी का चेहरा प्रकट होता है , और एक बार पुनः उस दिए हुए श्राप का पूर्वावलोकन करता है , ये सती का दिया हुआ श्राप है , तुम्हे अपने कर्मों की सजा भुगतनी पड़ेगी , मरोगे तुम सबके सब जन रहेगा तो धन नहीं रहेगा , धन रहेगा तो जन नहीं रहेगा , ये बोलता हुआ नटनी का अक्स अँधेरे में विलुप्त हो जाता है , सारी यज्ञ आहूति तहस नहस करने के बाद तूफ़ान शांत हो जाता है , सब कुछ शांत है सबके चेहरे निराशा से मुरझा गए हैं ,
महंत श्रीधर के दिमाग में बार बार नटनी की यही बात गूंजती है धन रहेगा तो जन नहीं रहेगा , जन रहेगा तो धन नहीं रहेगा , वो तुरंत परिस्थिति को भांप कर एक निश्चय लेते हैं , अगर वो गोविंदपुर की ज़मीन जायदाद बेंचकर कहीं शहर में बस जाए तो सकता है , नटनी के श्राप से मुक्ति मिल जाए , और वो ऐसा ही करते हैं , वो गोविंदपुर में नाना की सारी मिल्कियत बेंचकर महेश के साथ शहर में बस जाते हैं , और आखिर कार एक सुयोग्य कन्या देखकर महेश का विवाह भी कर दिया जाता है , अब उस बहू से २ सन्तानो की प्राप्ति हुयी है , इस तरह श्रीधर के दादा बनने का सपना पूरा होगया है , मगर गोविंदपुरा का रहवासियों का आज भी वही हाल है , या तो उनके कुल का नाश हो जाता है या फिर सम्पूर्ण परिवार गांव से पलायन कर जाता है ॥
pics taken by google ,