hostel a short horror story based on a true event ,

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दोस्तों ये कहानी सत्य घटना पर आधारित है , बस व्यक्ति संस्थान और स्थान का नाम बदल दिया गया है अगर किसी

व्यक्ति विशेष के साथ कोई मिलाप पाया जाता है तो महज़ इत्तेफ़ाक़ है ।

फोन की रिंग बजती है , एक महिला फोन उठाती है , मैडम मना किया था न अपुन ने आपको अपनी बिल्डिग कंस्ट्रक्शन

कंपनी का नाम काहे को छापा तेरे अखबार में , तुमने अच्छा नहीं किया मैडम , फोन कट ,

शायद किसी पत्रकार महिला को कोई बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का मालिक बिल्डिंग में इस्तेमाल हुए घटिया माल की खबर

छपने पर धमका रहा था ,

cut to

सीढ़ियों से घसीटता हुआ उस महिला को बिल्डिंग में चौथी मंज़िल में ले जाता है , फ्लैट नंबर ४०४ में उस महिला का

मर्डर करके फ्लैट नो ४०६ में ले जाकर फांसी पर लटका देता है , दूसरे दिन अखबार की सुर्ख़ियों में रहता है निर्माणाधीन

बिल्डिंग में अज्ञात महिला ने की आत्म हत्या ,

seen change

मुंबई जहां हर इंसान बड़े बड़े ख्वाब लेकर आता है , हमारे दीनू भैया उर्फ़ दिनकर नाथ शास्त्री भी भी बहुत बड़ा आदमी

बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचते हैं , जहां उनकी एक अच्छी खासी जॉब लग जाती है , उन्हें रहने के लिए कंपनी की

तरफ से फ्लैट मिलता है , जहां से पहले से बहुत से कर्मचारी रह रहे होते हैं , उन्ही जिस फ्लोर में फ्लैट मिलता है उस

फ्लोर के लगभग सारे कर्मचारी बैचलर हैं , आखिर कार दीनू भैया को बिल्डिंग के चौथे माले का रूम नो ४०३ मिल जाता

है , उसमे उनके साथ दो पार्टनर हैं , सौरभ और नितिन सौरभ का तो रूम में आता जाता है मगर नितिन का आना जाना

कम ही होता है , बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर में वर्कर्स के खाने पीने के लिए कैंटीन की सुविधा है ,

 

बिल्डिंग में दो चौकीदार है एक अमित जी दुसरे सुनील जी हैं अमित जी यूपी के हैं लम्बाई में भी अमिताभ बच्चन जितने

लम्बे हैं , इस लिए सभी वर्कर्स उन्हें बच्चन जी बुलाते हैं , हॉस्टल का पहला दिन रात के आठ बज चुके हैं सभी वर्कर्स के

डिनर का टाइम हैं सभी खा पीकर अपने अपने रूम में चले जाते हैं , दीनू भी बेचारा खा पीकर सौरभ के साथ अपने फ्लैट

में जाकर थोड़ी गप्प सड़ाके के बाद सो जाता है , सुबह ४ बजे उठता है ५ बजे उसे ट्रैन पकड़नी रहती है गोरेगाव स्टेशन से

, वीले पार्ले में उसका ऑफिस है , ७ बजे से जाने मुंबई स्लो लोकल में फिर बस भी तो पकड़ना रहता है इसतरह २ घंटे

लग जाते हैं ।

 

यही रूटीन है दीनू का डेली का , दिन गुज़रते हैं हफ्ते फिर महीने , सौरभ रूम छोड़कर चला जाता है वो विलेपार्ले में ही

रहने लगता है , बचा नितिन और दीनू नितिन कभी कभी ही रूम में आता है , अब ज़्यादातर दीनू को अकेले ही १

बेड़रूम हाल किचेन के फ्लैट में रहना पड़ता है , एक आर्ट की बात है डिनर के बाद दीनू अपने रूम में जाता है आज बहुत

गर्मी है , वो बाहर के हाल में सोने का प्लान बनाता है , रात काफी हो चुकी है , उसे फ्लोर में पायल की आवाज़ सुनायी

देती है , वो दरवाज़े के लेंस से झांकता है सामने रूम नंबर ४०४ का दरवाज़ा खुला हुआ है, और ४०६ तो कभी खुलता ही

नहीं , वो आकर फिर से सो जाता है सुबह के ४ बज चुके हैं , मोबाइल पर अलार्म बजता है , दीनू उठता है , फ्रेश होता है

बैग लेकर दरवाजे का लॉक खोलता है , मगर दरवाजा नहीं खुलता है , दीनू वॉचमन को खिड़की से आवाज़ लगाता है ,

 

बच्चन जी और सुनील तुरंत लिफ्ट से ऊपर आते हैं , दरवाज़ा खोलते हैं , दीनू कहता है ये क्या नाटक है दरवाज़ा बाहर

से कौन लगाता है , बच्चन जी बोलते है फ्लैट के बाजु बाजु वालो ने लगा दिया होगा , दीनू बात को आया गया कर

ऑफिस चला जाता है , शाम को दीनू रूम में आता है , वो नितिन को बताता है , यार रात में पायल बज रही थी , फ्लोर

में नितिन दीनू की तरफ देखता है , साला को सुबह चार बजे दरवाज़ा भी बंद करके चला गया था कोई , तब नितिन उसे

बताता है की रूम नो ४०४ में एक महिला पत्रकार का मर्डर करके लाश को ४०६ में फांसी पर लटका दिया गया था , दीनू

को लगता है की नितिन उसे डरा रहा है इतने बड़े शहर में वो नया नया है न इसलिए ,

 

दिन गुज़रते गए एक रात दीनू रात में बेड पर लेटा, नितिन की उस बताई बात के बारे में सोच रहा था , आज नितिन

फिर रूम में नहीं आया था , दीनू की आँखों में नींद नहीं थी , रात के तकरीबन २ बज रहे थे , तभी दरवाजे पर किसी की

दस्तक होती है , बाहर से कोई दवाज़ा खटखटा रहा होता है , दीनू की हालत टाइट होती है , वो बिना लाइट ऑन किये

डोर लेंस से देखता है सामने एक शख्स खाली बॉक्सर पहने बेसुध खड़ा है , दीनू को वो शख्स जाना पहचाना लगता है

तब कहीं जाकर दीनू की जान में जान आती है , वो दरवाज़ा खोलता है , और उस शख्स को हिलाकर दीनू पूछता है देव

तूने ये क्या हाल बना रखा है , अभी तू पिछले हफ्ते ही शिफ्ट हुआ है न यहां पर , तेरा रूम नंबर तो ३०३ है न फिर तू

यहां के कर रहा है , और ये क्या तूने शराब पी रखी है , दीनू देव को उसके फ्लैट तक पंहुचा कर वापस आकर रूम में सो

जाता है ,

 

सुबह जब दीनू देव से मिलता है तो देव माफ़ी मांगता है बोलता है सॉरी यार , मुझे मेरे मम्मी डैडी की याद आ रही थी ,

मेरे गाँव वाले घर में न मैं नीचे और मम्मी पापा ऊपर वाले फ्लोर में सोते हैं , मैं हर रात उन्हें गुड नाईट बोलता था फिर

सोता था , इसी चक्कर में तेरे फ्लैट में पहुंच गया गया यार रिअली वैरी वैरी सॉरी यार , दीनू उसे गले लगाकर माफ़ कर

देता है , और बोलता है तूने तो डरा ही दिया था यार मुझे लगा वो ४०६ नंबर के फ्लैट वाली रिपोर्टर मर के भूत तो नहीं

बन गई , देव ने बोला वो कैसे आएगी वो तो मर चुकी है , तब दीनू पुछा देव तुझे भी पता है क्या देव बोला अच्छी तरह

से पता है ४०४ में मर्डर करके ४०६ में फांसी पर लटका दिया था उस लेडी रिपोर्टर को , तू अपना ख्याल रखियो दीनू भाई

अपुन चलता है बाय बोलता हुआ देव वहाँ से चला जाता है ,

 

देव की बात सुनकर दीनू और भयभीत हो जाता है , मगर क्या करे उसके पास कोई ऑप्शन नहीं था , फ्लैट का रेंट

उसकी पेमेंट से पहले ही कट जाता था , और अकेले रूम लेकर रहे उसकी औक़ात नहीं थी , जब भी नितिन नहीं आता

फ्लोर पर किसी के दौड़ने की आवाज़ सुनायी देती , तो कभी पायल की आवाज़ सुनायी देती , और रोज़ सुबह का यही

नाटक दरवाजे को कोई बाहर से लॉक करके चला जाता , कई बार हॉस्टल के वार्डन से शिकायत भी की गयी मगर वो

बच्चों की शरारत का नाम देकर बात को टाल देता , दिन गुज़रते गए दिवाली की छुट्टियां होने वाली थी लगभग सभी

वर्कर दिवाली की छुटिटयों में अपने अपने गाँव जा चुके थे , सारी की सारी बिल्डिंग सूनसान कोई नहीं , नितिन भी अब

फ्लैट छोड़ चुका था , दीनू थोड़ा पूजा पाठ वाला आदमी था सुबह शाम भगवान् को अगरबत्ती ज़रूर करता था ,

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रोज़ की तरह आज भी दीनू डिनर के बाद रूम में जा ही रहा था , सारा का सारा फोर्थ फ्लोर सांय सांय कर रहा था , तभी

दीनू को ऐसा महसूस हुआ की कोई महिला का काला साया दीनू के कान में आकर कहता है दीनू , दीनू तुरंत पलटता है ,

पीछे ४०४ का दरवाज़ा खुला हुआ है , उसमे लाइट जल रही है , दीनू ४०४ फ्लैट के अंदर घुस जाता है मगर उसे कोई

दिखाई नहीं देता है , वो जैसे ही लौटने वाला होता है अलमारी पर लगे सीसे में एक लहूलुहान खून से लथपथ औरत का

अक्स देखता है , वो तुरंत दरवाजा खोलकर अपने रूम में जाकर चादर तानकर लेट जाता है , रूम में अगरबत्ती जल रही

होती है थोड़ा दीनू का आत्मबल बढ़ता है , वो एक लम्बी सांस लेकर सो जाता है , सुबह जब उठता है तो आज फिर लॉक

किसी ने बाहर से बंद कर दिया था , दीनू बच्चन जी और सुनील जी को आवाज़ लगाता है , बच्चन और सुनील जी

आकर दरवाज़ा खोलते हैं , दीनू पूछता है अब तो सबके सब दिवाली की छुट्टियों में घर जा चुके हैं अब दरवाज़ा किसने बंद

किया , बच्चन जी हड़बड़ाते हुए बोलते हैं आप से धोखे से लॉक लग गया होगा न दीनू जी , तब दीनू बोलता है एलड्रॉप

किसने लगाया बच्चन जी , बच्चन दीनू की बात का कोई जवाब नहीं दे पाता है , अब दीनू के रूम में दो नए रूम पार्टनर

और आ गये थे , समीर , और अभिषेक ,

 

समीर और अभिषेक के साथ अच्छी खासी दोस्ती हो गयी थी दीनू की , एक रात तीनो रूम में बैठे गप्प सप्प लगा रहे थे,

तब दीनू ने वो फ्लैट नंबर ४०४ और ४०६ का ज़िक्र छेड़ दिया , समीर बोला तू डरा मत यार , अभिषेक भी बोलता है डरा

रहा है दीनू हम डरने वाले नहीं पानीपत के हैं , खैर होली आते आते दीनू भी हॉस्टल से निकल जाता है , वो भी अब विले

पार्ले में शिफ्ट हो गया है , दिन गुज़रते हैं एक दिन अचानक से अभिषेक और समीर मिलते हैं दीनू पूछता है , क्या है सब

ठीक है न यारों , समीर बोलता है मत पूछ यार वो ४०४ नंबर फ्लैट वाली कहानी जो तूने बताई थी न, तभी अभिषेक

समीर को चुप करा देता है , क्या तू भी ४०४ वाली कहानी कहीं भी सुरु कर देता है अरे कुछ ना है हम पानीपत वाले न

किसी से डरते न हैं हम लोग बहुत स्ट्रांग होते हैं दीनू भाई , दीनू समझ जाता है है की अभिषेक की बहादुरी भरी बात के

पीछे का दर्द कुछ और ही है । और तीनो गप्पे लड़ाते आगे बढ़ जाते हैं ।

pix taken by google

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