mumbai local aamchi mumbai poem,
वेस्टर्न हो या हर्बर लाइन ,
इसी के दम से सुबुरबन का सारा खेल ।
सभी को काम की आपा धापी ,
राज़ी ख़ुशी या बेमन से ।
देख धड़कने रफ़्तार पकड़ती ,
मोहमाया लोकलाज त्याग तज पीछे भागे मारे टेर ।
चाहे श्लो हो या गतिमान कोई ,
व्ही टी से पहले न लेगी विश्राम कोई ।
सबकी अपनी अपनी है पहल ,
चार तीस की पकडे कोई एक चालीस की लास्ट लोकल ।
हो कांदिवली बोरीवली या मलाड ,
गोरेगाव जोगेश्वरी चर्चगेट हैं गन्तव्यमार्ग ।
भरता हरसू प्लेटफार्म खचा खच ,
बच्चे बूढ़े महिलाओं का उनकी के डिब्बों से होता बेडा पार यहां पर ।
जो मुस्टण्डे है गर्दी से तनिक न हो भयभीत यहां ,
सब आगे पीछे लग जाए जिसको जहां भी मिल जाए जगह ।
मुंबई लोकल डिब्बे का प्रवेश द्वार जन्नत के द्वार से कम भी नहीं ,
एक धक्के में जितने अंदर दूजे में दुगने बाहर लोकल का है व्यापार सही ।
है खचाखच है धक्कम पेल ,
तभी तो मुंबई की जान है लोकल ट्रैन ।
तीन की सीट में चार भी एडजस्ट हो जाते हैं ,
अनेकता में एकता का हिन्दुस्तान देखने को यही पाते हैं ।
जिस्म मिटटी का जिगर फौलाद का रखते हैं ,
जान जोखिम में डालकर भी लोग सफ़र करते हैं ।
कुछ की ट्रेनें चर्चगेट से आगे भी निकल जाती हैं ,
कुछ की ज़िन्दगी बस ट्रैन के धक्कों में ही गुज़र जाती है ।
मुंबई जिस तरह जगती है कभी सोती नहीं ,
मुंबई के लोग भी हरहाल में हँसते हैं कभी रोते नहीं ।
फुटरेस्ट पर बैठ कर भी ऑस्ट्रेलिया अमेरिका घूम आते हैं ,
खड़े होकर हैंडल पर झूलते भी जन्नत का मज़ा पाते हैं ।
इन्ही धक्कों से से निकल कर कुछ सितारे आस्मां की बुलंदियां भी पाते हैं ।
बहुत सी कहानियां बिन कहे कह देती है लोकल,
इसकी भीड़ के कोलाहल में हैं सुमधुर लहरों के संगीत की कल कल ।
love poem in hindi for husband
pix taken by google