quote on darkness in hindi ज़बान ख़ामोश है फिर भी आँखों में अदावत है ,
ज़बान ख़ामोश है फिर भी आँखों में अदावत है ,
मसर्रत ए दिल तो है लबरेज़ झुकी पलकों में शिक़ायत है ।
इसे नफ़रत कहूँ या मोहब्बत का नाम दे दूँ ,
दुश्मन ए यार की बातों में लर्ज़िश है बगावत में बनावट है ॥
उसने नफरतों में उम्र ए जाया कर दी ,
लोगों को मोहब्बतों के कारवां नहीं मिला करते ।
मिल जाते हैं सैकड़ों हमसफ़र लेकिन ,
मंज़िलों के निशान नहीं मिला करते ॥
लोग उम्रें गुज़ार देते हैं वज़ूद ए हस्तियाँ बनाने में ,
वो चंद लम्हों में दिलों की बस्तियाँ वीरान करके चला गया ।
रोशनी न सही तपिश तो है ,
मैं आफताब हूँ फ़लक का ज़मीन पर लाख धुंध सही ।
जब भी पाऊँगा अपना वज़ूद ए क़ामिल ,
ज़र्रे ज़र्रे को सफ़क उजालों से सजा जाऊंगा ॥
मरहला ये है की कोई मसला नहीं ,
इश्क़ बस हमने किया था उन्हें कुछ हुआ ही नहीं ।
दिल में दीदा ए हुश्न की तलब जाग उठी ,
तेरे दर पर चले आये ।
यूँ नहीं की जहां में कोई और हसीं ही नहीं ,
बस शहर भर के बुत ओ मुजस्सिम से दिल मेरा भरा ही नहीं ॥
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दिल ख़फ़ा है उनसे जिनसे ताल्लुक़ात ही नहीं ,
ये मुब्तला ए इश्क़ भी जान ए जोखिम से कम नहीं ।
कुछ कोरे सफ़हों को पढ़ने में उम्र ए जाया की ,
जब इबारतें समझ में आईं वक़्त हाँथ में था ही नहीं ।
खुश्क मौसम ज़र्द पत्ते शमा ग़मगीन सा है ,
जश्न ए मातम है वादी में तमाम मामला संगीन सा है ।
अब तो बेलिबास मुर्दे भी आने लगे हैं मेरा हाल पूछने ,
लगता है हमारे सुकून ए रूह की उनको भी ख़बर है ।
चाय की चुस्कियों सा था ज़ायका ए इश्क़ ,
ख़बर न हुयी कब ये शुगर ब्लड में उतर गयी ।
सर्द की रात और कंपकपाते मंज़र ,
तूने लब से लगा दी है तो चाय भी शराब लगती है ।
आसमान जलाने पर आमादा है हर शख्स यहां ,
चैन ओ अमन याद आया आँच जब खुद के आशियाने तक पहुंची ।
दिन के आफ़ताब बुझ गए थे कई ,
अकेली शमा ने खुद को जला कर शब् ए महफ़िल को फिर रोशन किया ।
पुरज़ोर थी परस्तिश घनघोर अँधेरा था ,
दिल के अंजुमन में फिर भी उम्मीद का डेरा था ।
लाइलाज़ है मरीज़ ए इश्क़ ये उसको पता था ,
सो उसके जानिब उसने ही उनको उनके हाल कर दिया ।
रोज़ रोज़ ये कमाल नहीं होता ,
हो जाए दुबारा फिर बहरहाल नहीं होता ।
बस एक मोहब्बत ही काफ़ी थी तबाही को ,
बस ख़ाक ए गुलिस्तां है गुल ए गुलज़ार नहीं होता ।
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खाली लफ़्ज़ जल रहे थे इस ठण्ड की सिहरन में ,
कुछ ख्यालों के लम्स ने फिर दिल को सुकून दिया है ।
रात के सन्नाटे को चीरती दर ओ दीवार हसरतें तमाम करती है ,
गुफ्तगू करती हैं तेरी बस हाल ए पयाम हमारा ही नहीं रखती ।
फलक पे पलकें आशियाना बनाये बैठी हैं ऐसे ,
बीच मझधार में सफ़ीने लंगर डाले खड़े हों जैसे ।
जिन सफ़ीनो को गुमान था हवाओं का ,
वही उलझे खड़े हैं बीच समंदर के अब तूफानों में ।
ये अंदाज़ ए गुफ्तगू ये लर्ज़िश ए बयान कहता है ,
बिछड़ के मुझसे तुम अब भी मुझको भूले ही नहीं ।
होठों के एक एक तबस्सुम का वास्ता देकर ,
वो बिछड़ गया मुझसे तमाम उम्र के लिए अलविदा कहकर ।
रुख़ बेनक़ाब होने की आस में सर ए महफ़िल दिल जमाये बैठे हैं ,
तेरे लबों के तबस्सुम की प्यास में जाने कितने तूफ़ान दिल में छुपाए बैठे हैं ।
ज़माने में लोग हमको भी जानते हैं तब यक़ीन आया ,
क़ासिद ने उनके नाम का ख़त जब हमारे घर के पते पर पहुंचाया ।
उनका दिल हाल ए मुक़ाम है अपना ,
आजकल पयाम ए मोहब्बत में उनका पता मिलता है बस हमारी ख़बर नहीं मिलती ।
चट्टानें पिघल रही थी पारा फ़ौलाद बन रहा था ,
सर ए आम शर्म बिक रही थी दीन ओ ईमान सूली चढ़ रहा था ।
रोकता ख़ुद को कैसे मैं भी इंसान ही था आख़िर ,
कुछ आग में घिरे थे इक शोर मच रहा था ।
नज़रें झुका के कैसे मैं हादसे से गुज़र जाता ,
लपटों की ज़द में आखिर मेरा घर भी जल रहा था ॥
इंसान जल रहा है इंसान बुझ रहा है ,
दौर ए वक़्त का हर इंसान ख़ुद के कांधो पर ख़ुद का जनाज़ा उठाये चल रहा है ।
दर ओ दीवार फांद लेती हैं आँखें सुबा दिल को हो न हो ,
उनके आने का सबब बतला देती है आँखें ये ज़ौक़ ए अतिशा ही समझो ।
पत्थरों के शहर में नाउम्मीदगी है फिर भी ,
चश्म ए चराग जलाकर निकलता हूँ मिलेगा कोई इब्न ए इंसान कहीं ।
सरीक ए ज़िन्दगी का ख़्वाब दिखा कर लोग अपना मतलब निकाल लेते हैं ,
यही तो शहर ए रवायत है लोग बस जनाज़े को कांधा देते हैं ।
अगरचे वो हमें भूल जाते ,
अपने दिल के पते पर हमारा नाम न लिखवाते ।
मोहब्बत ग़र क़ामिल हो गयी होती ज़माने भर से बग़ावत हो गयी होती ,
कहाँ से लाते ये लज़्ज़त ए सुख़नवर सदाक़त ए उल्फत से रिहाई हो गयी होती ।
एक बाजार सजा रखा था लाशों के देश में ,
इब्न ए इंसान बिक रहा था उजले लिबासों के वेश में ।
बदन की हरारत भी बढ़ गयी है इस कदर ,
अब तो हक़ीम ए दवाखाना भी कहने लगे हैं नाज़ुक हालात में आइज़ टॉनिक ही होगी कारगर ।
इत्ता सा ज़ख्म मेरा जाने कब नासूर बन गया ,
दिल ए फ़रसूदा की नादानियाँ ख़्वामख़्वाह बेगुनाहों का कसूर बन गया ।
एक महल का अरमान है ख़्वाबों के जज़ीरे में ,
साथ तुझको लेके जाऊं पलकों के सफ़ीने में ।
जिस दिन जहान से खुदा का नाम ही मिट जायेगा ,
न रहेगी इंसानियत जहान में हर शख्स बस हैवान नज़र आएगा ।
तेरा नाम ज़िक्र ए वफ़ा मैंने ही रखा था कभी ,
तेरे नाम से अब भी बुलाते हैं मुझको ज़माने वाले ।
हरारत तो अब नहीं मगर जिस्म में जकड़न बेसुमार है ,
ख़ुमार ए इश्क़ उतरा ही नहीं शरारत ज़रूर रहती है इस उम्र ए दराज़ में ।
साथ छोड़ा था उसने ज़माने की रवायतों का वास्ता देकर ,
जाते जाते हम उसको उसकी मोहब्बत भी गदा कर आये ।
एक उम्र बाद वो चैन से कब्र में सोया ,
बात मुद्दतों के मौत महबूब हुयी हो जैसे ।
वो हवाओं के रुख़ सा मिजाज़ रखता है ,
यही सोच कर हम सर्द रातों में ठण्डी आहें भरते रहे ।
जवानी कब की चली भी गयी ,
दौर ए कारवाँ में बस उम्र का पता न चला ।
इसी कश्मकश में हर रात गुज़र जाती है ,
कल का सवेरा आएगा नयी रोशनी लेकर ।
उतर के ज़ीने से जब मेरे दर पर शाम अटक जाती है ,
घेर लेती है मातमी बादल से घर मेरा फिर शहर भर की रोशनी पनाह नहीं पाती है ।
तेरे बेबाक़ ख़्यालों को रोकूं कैसे ,
बिन बुलाये सांझ ढले हर रोज़ मेरे दर पर चले आते हैं ।
तल्ख़ लगता है मगर तंज़ अब नहीं लगता ,
मैंने खुद इश्क़ ए खुदा कहा था बाद ए बेरुख़ी के उसको ।
बदाकशी पैमानों की मोहताज़ नहीं ,
हम तो बस नज़रों से हुश्न ओ इश्क़ के जाम पिया करते हैं ।
मतलब परस्तों की दुनिया में परस्तिश भी महज़ धोखा है ,
खुदा हो या हो इब्न ए इंसान वक़्त निकलते ही सीधा नज़रों से उतार देते हैं ।
यूँ ही नशेमन की तफ़री में वो निकल आये ,
देख कर हाल ए मुफ्लिश वो भी दो अश्क़ रोकर गए ।
सर से छत क्या गयी दर ओ दीवार ने मुँह मोड़ लिया ,
रसद का माल ख़त्म है देख कर मेहमान भी घर से जाने लगे ।
लाजवाब न था शब् ए हिज्र और तेरा आना ,
ग़ज़ब का गुज़रा चाँद से सरमा कर विसाल ए यार न हो पाना ।
पहले छटांक भर थी अब रत्ती भर नहीं आती ,
चाँद तारों में कटती रात हाँ अश्क़ों में उतारी नहीं जाती ।
तरस आता था हाल ए दिल पर अब रोना नहीं आता ,
जनाज़ा मोहब्बतों का या खुदाया उठाया नहीं जाता ।
उनकी यादों से कह दो कहीं और आशियाना बना लें ,
दिल में रहने वालों को दिल से निकाला नहीं जाता ।
दिल का सैलाब समंदर निगल गया है कई ,
ग़म ए उल्फत के अश्क़ों का ज़ायका फिर नमक निकला ।
तालीम ए मोहब्बत में दाख़िला लेलो ,
दर्द आँसू ग़म वज़ीफ़े नायाब मिला करते हैं ।
लफ्ज़ ग़ुम गए थे वीरानियों में ,
सुनकर सदायें तन्हाइयों की मैं खुद ठहरा रहा ।
बूँद बूँद कतरे कतरे का हिसाब जानता है ,
इश्क़ का दरिया है साहेब इश्क़ में डूबने की सज़ा देता है ।
न रखो बेख़ुदी में हिसाब पैमानों का ,
जाम छलकेंगे तो मैखाने बहक जायेगे ।
ग़म की तपिश से सूख जायेगा दिल का दरिया ,
जाम अश्क़ों के आँखों से छलक जायेगे ॥
दिल के मुर्दाघरों में इश्तेहार चस्पा है ,
मकान मालिक है लापता मेहमानो का बेजा कब्ज़ा है ।
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