urdu shayari in hindi गुलामी जा रही है तो बादशाहत भी जाएगी प्यारे ,
गुलामी जा रही है तो बादशाहत भी जाएगी प्यारे , ये मशीनी सल्तनत किसी तख़्त ओ ताज की मोहताज़ नहीं ।
पुर्ज़े पुर्ज़े यहां सभी के बिखरे पड़े होंगे , इंसानी जज़्बातों की कोई औक़ात नहीं ।।
किसी मुकाम में लाकर मोहब्बत में छोड़ जाना , रिवायत ये नयी है मगर किस्सा ये पुराना है ।
बस ज़ौक़ ए आशिकी ही निभा पाते हैं लोग , मसला ये पेचीदा है लगता ये फ़साना है ।।
ज़ख्म सीने में नासूर बनके चुभते रहे , राह चलते रहे चुप चाप लब से उफ़ न किया ।
देखा जो हश्र ए यार उल्फत के मोड़ पर , रास्ता बदल दिया कोई गिला न किया ।।
बड़ी शिद्दत से अलविदा कह गया ऐसे , बहुत अरसे से दिल पे बोझ ले रखा हो जैसे ।
ऊब जाता है इंसान भी मोहब्बत से , हमने एक बुतनुमा को खुदा बना लिया कैसे ।।
सख्त शाखों से लहू बह निकला , ज़र्द पत्तों का हवा से उन्स नहीं ।
नरम लहज़ा था रूह ए क़ातिल का , महज़ नज़रों से बहक जाए वो क़तील नहीं ।।
रफ़्ता रफ़्ता गुज़र रही है ज़िन्दगी अपनी , रफ़्ता रफ़्ता गुज़र गया कारवां अपना।
न राब्ता खुद का कभी हुआ खुद से , हमसफर होकर भी बारहां सफर का रहा फ़लसफ़ा अपना ।।
उठे जो चरागों से लौ आसमान तलक़ , ख़ाक हो जाए ये ज़र्रा ए ज़मीन बात क्या होगी ।
हम सनद सनाई के शौक़ीन नहीं , सरगोशियों में महफिलें आबाद होगी ।।
शहर के शहर जल गए नशेमन धुंआ हो गया , दिल के अरमान नहीं निकले।
एक आह के फुवां की जुस्तजू तमाम उम्र रही , ख्वाहिसों का कारवां फनाह हो गया।।
लब ए तिश्नगी खींच लाई थी मैखाने तक , हुश्न ए शाकी से बहक जाएगा ये इल्म न था ।
गुनाह उन शोख निगाहों नहीं न सही , दिल ही कम्बख्त ज़राफ़त के क़ाबिल निकला ।।
हम तो बस नाम ए मोहब्बत से ख़ौफ़ज़दा थे , कभी सोचा है वो किस दौर ए उल्फत से गुज़र रहे होंगे ।
जिनके मेहबूब गैर की पनाहों में , इस शब् की सहर कर रहे होंगे ।।
कुछ जवाब वो बातों ही बातों में मांग रहा था , हमने भी बोल दिया ये उर्दू फ़ारसी छोड़िये ।
नज़रों में नज़रें डाल कर , तार्रुफ़ ए मुलाक़ात कीजिये ।।
जूनून ए इश्क़ में जल गया चाँद रात भी , अब इल्तेज़ा ए हुश्न है न जनाब बेबाक बात कीजिये ।
शबनमी सरारों से दिल के जज़्बात झुलस जाते हैं , बस नज़रों के इशारों से बयान हालात कीजिये ।।
सफ़हा सफ़हा हर्फ़ दर हर्फ़ तहरीरें गुमराह किया करती हैं , तू नज़रों में नज़रें डाल कर बात किया कर ।
धड़कने इस कदर तेरे ख्यालों से बावस्ता है , आजकल ख़्वाबों में भी तेरा दीदार किया करती हैं ।।
नज़र आता नहीं कोई शख्स , जहां वीरान लगता है ।
बाद दीदा ए यार के दिल , उनकी दीड का तलबगार रहता है ।।
इन नरगिसी आँखों में दो सुरमई पैमाने हैं , कूचा ए यार में शामें गुलज़ार हुआ करती हैं ।
चमन में कह दो दिल किसी ख़ूबरू ए मंज़र का तलबगार नहीं , श्याम स्याह राते जमाल ए यार से गुलज़ार हुआ करती हैं ।।
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