आईन ए सूरत पर होती है ग़ज़ल ऐसी alfaaz shayari ,
आईन ए सूरत पर होती है ग़ज़ल ऐसी ,
रु ब रु ए इश्क़ में हूबहू सनम जैसी ।
तस्बीह फेरते ग़र ख़ुदा मिलता ,
मेहबूब ए इलाही हर इब्न ए इंसान के माथे पर गुदा मिलता ।
उफ़ भी नहीं कहते सोचने का मौका भी नहीं देते ,
सीधा तीर ए जिगर के पार रखते हैं ।
आज जो उंगलियां उठाते हैं तेरे जज़्बे पर ,
कल ज़माना तेरे बाब ए सुखन को सलाम ठोकेगा ।
तहरीर ए वक़्त की इबारतें लिखते ,
आदम ए खुल्द की सूरतें बदल जाती हैं ।
जहां के ज़र्रे ज़र्रे में मोहब्बत की ख्वाहिश है ,
दिल ए नाचीज़ को वादे वफ़ा की आज़माइश है ।
शब् ए फुरक़त में नींद आती नही ,
ख़्वाब आँखों में सजाकर सोता है कौन ।
नींद भर के आँख सोती नहीं ,
तेरे ख़्वाबों को तह ए दिल का मेहमान करके ।
आँखों के रास्ते वीरान पड़े हैं सारे ,
न ख़्वाबों का कारवां न नींदों का सिलसिला ।
खार ख़्वाबों के ग़र सुकून देते ,
फसल ए गुल बाद ए मौसम के भी खिला करते ।
होता जहां का हर मंज़र हसीन ,
ग़र ख़्वाब तेरे मेरी नींदें न लूट लिए होते ।
दिल के ज़ख्मों को न छेड़ो नासेह ,
गोया सोयी पड़ी रात दर्द के गीत गुनगुनायेंगे ।
जुगनुओं सी जलती आँखें ,
जाने किसकी राहों में नज़र रखती हैं ।
नयी सुबह आगाज़ ए बिश्मिल के वास्ते ,
क्या ज़िन्दगी सिमटी है महज़ ख़ाक ए सुपुर्दगी के रास्ते ।
मन चंचल विचलित है नभ पर ,
कोई अनंत बत्तखों की श्रृंखलाएं ,
विद्यमान हैं जल पर ।
रात्रि के चारों प्रहर निर्भीक निडर निश्छल जल में ,
चहुँ और प्रखर है जलकुम्भी ।
हँसते हुए चेहरों में खलिश होती है ,
कुछ तज़ुर्बा ए इश्क़ कुछ बोहतान की दबिश होती है ।
गरूर ए इश्क़ में फ़िरता था ज़माना सारा ,
अब कोई नाम न लेगा रूबरू ए बोहतान के बाद ।
pix taken by google