आज़मा न ज़ोर मेरे बाजू का alfaaz shayari ,
आज़मा न ज़ोर मेरे बाजू का ,
क़लम का तोल है तराज़ू का ।
हलक़ से उतरे जो मोहब्बत पैमाने में ज़ाया करता ,
मैं तेरे दर पर अपना ख़ाक ए बदन धूल मिटटी में उड़ाया करता ।
दिल से कागज़ में उतर आते हैं ,
वो लम्हे जो भुलाए नहीं जाते ।
चंद टुकड़े ही वसीयत के बड़े अच्छे हैं ,
बाप दादाओं की मिल्कियत है खाकसारों में उड़ाई नहीं जाती ।
बेज़ुबानी में दिलों के हालात बयान होते हैं ,
ज़ख्म दिल में हों तो राग ओ रंग साथ खुद ही साज़ बज उठते हैं ।
खुले ज़ख्मों के तमासाई बहुत हैं,
मरहम लगाने वाला कोई सैदाई नहीं मिलता ।
है ख़ामोश तन्हा ज़िन्दगी ,
मैं सुनसान रास्तों में अकेला गुमसुम खानाबदोश ।
ज़ख्म पर ज़ख्म है फ़ितरत उसकी ,
ये मेरा दिल इश्क़ बड़ा बेहिसाब करता है ।
हर बात में तंज़ हो ज़रूरी तो नहीं,
फिर मोहब्बत में और बात हो ज़रूरी तो नहीं ।
कभी रुख़ पर पर्दा कभी चेहरा बेनक़ाब ,
ये हुश्न ए ज़माल है पर्दानशीनो का है कमाल ।
जिसे तेरी सूरत से इतनी नफ़रत है ,
कभी सोचा है मोहब्बत वो तुझसे कितनी करता है ।
हमने तो मोहब्बत क़ामिल की थी ,
कम्बख़्त वो ही जराफत के क़ाबिल निकला ।
पलट कर देखता है मेरे नाम पर तू अब भी बार बार ,
क्या मेरे जनाज़े का तुझे इत्ता सा भी ऐतबार नहीं ।
किसी ने साँझ पढ़ी किसी ने शाम ए बज़्म पढ़ा ,
मेरी क़लम ने हर क़लाम में मेरे हाल ए दिल का पयाम लिखा ।
तू तो बर्बाद नज़र आता है मेरी सारी मिल्कीयत लूट कर के भी,
हमने तो दौलतें खड़ी कर ली तेरे दिए ज़ख्म बेंचकर ।
ज़बान ग़र सूख भी जाये तो कोई बात नहीं ,
क़लम की स्याही दिल के गीले जज़्बात बयान करती है ।
पलट के रख सकती है सख्सियत सबकी ,
हम बदगुमानी में क़लम का वक़्त ज़ाया नहीं करते ।
बेंचने वाले बेंच देते होंगे चंद सिक्कों में मिल्कीयत अपनी ,
हम अपनी क़लम की ताक़त का सही सौदा करेंगे ।
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