इश्क़ की तासीर को क्या समझेंगे ज़माने वाले funny shayari,
इश्क़ की तासीर को क्या समझेंगे ज़माने वाले ,
ये वो आतिश है जो जो बिन जले दुनिया तबाह करती है ।
इशारे में समझते गर हर बात तो यूँ रुख़्सत ए महफ़िल न होते ,
न पालते दिल में ग़फ़लत कोई न आलम ए बेरुखी होता ।
फ़र्ज़ी मोहब्बत का फ़र्ज़ी पैगाम आया ,
मर्ज़ी चली न इस पर भी दिल की छिछोरे दिल का वो मुक़ाम आया ।
ख्वाबों ने खंगाला है अतीत का समंदर सारा ,
तेरी यादें भी लगती हैं गोताखोर बड़ी हैं ।
यादों का सूत कातते रात गयी ,
पोनी से कब धागा बन उतरा ,
थी चहल पहल चहुँ ओर भरी जब भोर भई तब पता चला ।
गंगा में बैठके भी झूठ बोले जटाधारी ,
जाम थाम के जो बोले झूठ मैं न समझू उसको नमाज़ी ।
पीताम्बर वरण पहने कोई इस ओर गिर रहा ,
मैकदे में जाम थामे है नमाज़ी शाकी के हाँथ से ।
मैखाना नहीं देखता कोई दीन ओ ईमान ,
मय वो सै है ग़ालिब जो सब पर बराबर का असर करती है ।
कारोबार ए इश्क़ ए खार सर ए बाजार नीलाम हुआ करते हैं ,
एक हम ही वो लूटेरे हैं जो बेदाम ग़मो के खार लूट लिया करते हैं ।
मैं मोहब्बत का सवाली मैख़ाना गवाही है ,
इबादत न हो जहाँ इश्क़ की वो जहान की खराबी है ।
आँखों में बंद है ख़ुदा सी तेरी मूरत ,
इबादत रब की करूँ तो भी ख़ुदाया रब नहीं दिखता ।
नागिन सी तेरी चाल उसपर रूप बेमिशाल ,
ग़ालिब की तू ग़ज़ल है या शायरी का है कमाल ।
कारे कारे दो नैनो में खारे खारे ख़्वाब तेरे ,
नीर बहे अँसुअन बन मोती बिन बदरा बरसात करे ।
दो जख और ख़ुदा राम हो तुझको ही मुबारक ,
ग़ालिब है मेरा नाम इश्क़ है मज़हब कोई धर्मान्ध नहीं मैं ।
कोई खुद ब खुद क़त्ल नहीं होता ,
कुछ इश्क़ की मज़बूरियाँ होती हैं कभी हुश्न अकेला गुनहगार नहीं होता i
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