कमबख्त निगाहों की इज़हार ए गुफ़्तगू थी या बस one line thoughts on life in hindi ,
कमबख्त निगाहों की इज़हार ए गुफ़्तगू थी या बस ,
बिना इंकार किये उँगलियों में दुपट्टा घुमाते निकल गए ।
जुज़बी ही निगाहों में इज़हार हुए ,
रात चाँद तारों में कटी न ख़्वाबों के तलबगार हुए ।
खनकते पैमानों ने छेड़ दी सरगम ,
जाम गर आज छलक जाए तो ग़ज़ल हो जाए ।
इश्क़ की बेतुकी बातों से ज़्यादा हम ,
मर के भी हमदम का ख़्याल रखते हैं ।
कुछ इन नज़रों की भी जलवा फरोशी हो जाये ,
अपनी आँखों के नूर तो हर रोज़ बने फिरते हो ।
शान ए महफ़िल तेरी दोस्ती के सदके ,
आज फिर शाम ढले तेरा ख़्याल आया है ।
शाकिया ए गुल मैं और मैखाना ,
फ़िज़ा की खुशबुओं से दोस्त बनते गए ।
जल उठी शमाएं महफिलें रोशन हुईं ,
लो फिर मोहब्बतों के दम से शाम ए बज़्म का आगाज़ है ।
मेरे पुराने पल ही मेरे अपने न थे ,
वक़्त का सरमाया क्या मेरा ख़ाक होता ।
मेरे सफ़ीने साहिल से पहले डूब गए ,
बर्बाद ए मोहब्बत की तबाही के लिए लोगों की बद्दुआओं की ज़रुरत नहीं होती ।
वो नज़रों की जुम्बिश वो रुखसार के बदलते तेवर ,
सरगोशियाँ कहती हैं मोहब्बत है तो बस है ।
वर्जिश ओ मसक्कत से पूरे कर लेंगे ,
ये खामियाज़ा ए मोहब्बत बस खाने पीने से नहीं भरने वाले ।
बुनियादी ज़रूरतों में पत्थर की ईमारतें भी शामिल हैं ,
बस इंसान में इंसानियत का कभी ज़िक्र नहीं होता ।
अज़ीब कश्मकश है शामियाने में ,
चाँदनी रात में फिर चाँद बुझा बुझा क्यों है ।
बनते हैं इमारतों से शहर , शहर में सुकून बसता है ,
फिर भी हर शक़्स चैन से कहाँ सोता है ।
मैं मेरे शहर में गर खामोश रहता ,
मैं मेरा घर फूकने का खुद बंदोबस्त करता ।
छलकते पैमानों से टपकती शबनम ,
तू भी दो घूँट पी शाकी तो ग़ज़ल हो जाये ।
मेरा नशेमन गवाही देने लगा ,
मोहब्बत के बिना कोई शहर शहर ही नहीं ।
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