ख़ैरात की ज़मीन को सल्तनत बनाये बैठे हैं dard shayari ,
ख़ैरात की ज़मीन को सल्तनत बनाये बैठे हैं ,
दो नैनो की डोली में चाँद तारों की बारात सजाये बैठे हैं ।
सियासी खरपतवारों में गर महक होती ,
तारीफ़ ए गुल से चमन भी महका होता ।
ज़मीन सुलग रही है आसमान जल रहा है ,
जाने किस फ़िराक़ ए यार में फिर दिल पिघल रहा है ।
जाने किस हक़ से ले लेता है वो मेरा नाम आज भी ,
दिल से गली कूचे तक कोई ताल्लुक़ात नहीं है ।
जागीरें तेरे ख़्वाबों की सोने नहीं देती हैं ,
खो जाने के ही ख़ौफ़ ने नैनो में उत्पात मचाया है ।
हर रात तफ़री में निकल जाती हैं आँखें मेरी ,
तू किसी राह ए ख़्यालों में आता तो होगा ।
एक सियासत की हरामज़दगी है साहेब ,
वरना अपना मुल्क़ भी दुनिया में अब्वल न हो ऐसी बात नहीं ।
मुद्दे तो पहले भी ख़त्म हो सकते थे दबी कब्रों के मुर्दों के ,
गोया चुनावी सियासत का ख़ूनी खेल खेलते कैसे ।
कलम ने रो दिया होगा खुली सड़कों पर फैले आदम के खूनो पर ,
बेज़ा ही फसल ए गुल पर यूँ आँसू बहाये नहीं जाते I
क़ातिलों की तारीफ़ी में बाँध बनते नहीं ,
अब तो मोहब्बतों के दरिया में नफरतों का तूफ़ान बनके उठा है ।
शान्त लहरों पर पड़ती सूरज की लालिमा ,
हिंदुस्तानी गंगा जमुनी तहज़ीब की परिचायक है ।
साँस थमती नहीं एक उम्र के बाद ,
भभकते चरागों में एक बग़ावत है ।
हमने रखे हैं अरमानो को बुझा कर दिल में ,
ग़म के अंधेरों में दिल जलाएंगे ।
दिलों की लौ बुझ के न सिमट जाए ,
शाम ए बज़्म में शमा ए इश्क़ जलाये रखना ।
सादगी ऐसी की जैसे उथली नदी ,
जिस्म ऐसा की लहरें शर्माएं ।
रात की आगोश में कुम्हला के सोये थे नन्हे बीज ,
सुबह की पहली किरण से चारागार हुए ।
कुछ चेहरे थे धुंधली आँखों में ,
एक उम्र के बाद दिन के उजालों में पर्दाफास हुआ ।
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