गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती dosti shayari,
गरीबों के लिए कभी कोई सरकार नहीं बनती ,
जाने कैसी कैसी खुशफ़हमी लोग पाल रखे हैं ।
कुछ परिंदे जिनका पुराने दरख़्तों पर बसेरा था ,
वो शहर की गलियों में अब आब ओ दाना तलाश करते हैं ।
तुम क़तरा क़तरा मेरे लफ़्ज़ों में जान भरो ,
हम गीली स्याही से ज़माने को जला जायेंगे ।
सड़कें तो चौड़ी हो गयी हैं मेरे शहर की ,
साद ए दिल को अब कहीं महफ़िल नहीं मिलती तो कहीं मंज़िल नहीं मिलती ।
वो मुझसे मेरी हाज़िर जवाबी माँगता है ,
गोया जुदा होता तो क्या हर लम्स बनकर धड़कता सीने में ।
परिंदों को परिंदे जीने नहीं देते ,
शहर ए रौनक में क्या ख़ाक ए मुजस्सिमो को पाल रखा है ।
शायरों की महफिलें सजती हैं सेहर का इंतज़ार किये बगैर ,
बदस्तूर हर वार दिल पर लेते हैं क़हर की परवाह किये बग़ैर ।
लड़खड़ाते लफ़्ज़ों को सम्हाल लेते हैं ,
तेरे तसब्वुर के बाद मेरे लब तक आते आते पैमाने ।
बत्तियाँ बुझा दो अब तो जश्न ख़त्म ,
ये रोशनी चुभती ही नहीं शहर ए दामन को ज़ार ज़ार करती है ।
दिल ए फाख्ता पे नज़र रखते हैं ,
हम तो टुकड़ों में बसर करते हैं ।
सर पर खुर्सीद ए हिज़ाब यूँ सरे आम खुर्रम मिजाज़ी ,
ख़ानुम की ख़ुतबाबाजी ही समझी जाएगी ।
मैं मीलों चल भी दूँ पैदल तो क्या खुर्सीद का वारिश हूँ ,
शहर के हर गली कूचे में अँधेरा घर जमाया है ।
सर पर जो शेर ओ शायरी का शबाब चढ़ता है ,
क्या शब् ए माहताब तुझ पर भी ख़ुमार रहता है ।
वो कहते हैं सारी रात जाग के इश्क़ का माहौल बनाइये ,
अब है ख़ुमार ए इश्क़ तो कह रहे हैं गोया बत्तियाँ बुझाइए ।
मैं नदी का समतल धरातल मन गगन की डोर संग ,
ओर से उस छोर तक स्तब्ध साहिल चूमती कल कल लहर ।
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