गुलों के अर्क़ की ख़ुश्बू से तो बाज़ार सजा है dard shayari ,

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गुलों के अर्क़ की ख़ुश्बू से तो बाज़ार सजा है dard shayari ,
गुलों के अर्क़ की ख़ुश्बू से तो बाज़ार सजा है dard shayari ,

गुलों के अर्क़ की ख़ुश्बू से तो बाज़ार सजा है dard shayari ,

गुलों के अर्क़ की ख़ुश्बू से तो बाज़ार सजा है ,

सब्ज़ बागों को जो उजाड़ा है वो गुनहगार कहाँ है

 

रक़म रक़म के खिलौने की भरमार यहाँ पर ,

जो दिल ए नादान को पुर सुकूत दे वो बाज़ार कहाँ है ।

 

यूँ ही गुलों की गुलों से तबीयत नहीं मिलती ,

कभी मिजाज़ ए फितरत नहीं मिलती तो कभी ख्याल ए शख्सियत नहीं मिलती ।

 

गुलों में भी ज़माने की आब ओ हवा का असर दिखता है ,

एक मुरझा गया तो दूजा खिलखिला के हँसता है ।

 

दिल में हूक जगा देती है ,

दूर बाग़ में जब कोयल कूक लगा देती है ।

 

शब् ए हिज़्र में जलता आसमान सुबह देर तलक रोता है ,

बाग़ का ओश से पुरनम होना सारी दास्तान कहता है ।

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वस्ल की रात और दिल में विसाल ए यार की चाहत ,

इक गुल जला इस क़दर की सब्ज़ बाग़ को ख़ाक कर गया।

 

फ़िज़ाओं में चर्चा ये सुर्खरू सी है ,

राज़ ए गुल को भी गुलों की जुस्तजू सी है ।

 

मौसम ए हिज़्र है अभी मौज ए बहार आएगी ,

दिल ए नादाँ को सब्र का सबक आता कब है ।

 

गुलों ने तो हाल ए दिल बयानी की थी ,

कलियों ने ज़राफ़त का नाम दे डाला कोई बात नहीं ।

 

तेरी सादाकशी में मर गया दिल तो ,

गोया हुश्न ए रानाईयों से सजा बाजार कहीं और भी है ।

 

मौज ए तल्ख़ में मर गया आदम ए ख़ुल्द के बीच ,

क़फ़स में चूनर ओढ़े पड़ा है गड़े मुर्दों के बीच ।

 

बाज़ार ए नुमाइश में सजा रखे थे सामान कई ,

गौर तलब हो की कहीं खुद का किरदार भी न बिकता नज़र आये

 

ग़म के क़तरे समां गए इसमें ,

दिल का बाज़ार भी समंदर है ।

 

लूटा खसोटी है हर कहीं काला बाज़ारी है ,

जिस्मों का गोरख धंधा है रूहों की न तारी है ।

love poetry 

pix taken by google