दरबार ए पेशवा से उठी माझा महाराष्ट्र तुला मराठी की दलीलें alfaaz shayari,

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दरबार ए पेशवा से उठी माझा महाराष्ट्र तुला मराठी की दलीलें alfaaz shayari,
दरबार ए पेशवा से उठी माझा महाराष्ट्र तुला मराठी की दलीलें alfaaz shayari,

दरबार ए पेशवा से उठी माझा महाराष्ट्र तुला मराठी की दलीलें alfaaz shayari,

दरबार ए पेशवा से उठी माझा महाराष्ट्र तुला मराठी की दलीलें ,

क्या आगाज़ ए हिंदुस्तान का ऐसा इन्किलाब होना चाहिए ।

 

टूटी फूटी सियासतों से आगाज़ होगा क्या ,

जो बुनियाद हिला दे वो इन्किलाब चाहिए ।

 

सियासत की दीमक चट गयी सूखे दरख़्तों को ,

हर ख़ास ओ आम की ज़बान पर इन्किलाब चाहिए ।

 

हमने इन्किलाब ए हिंदुस्तान देखा ,

रोटी की ख़ातिर मरते पानी की ख़ातिर लड़ते इंसानों को देखा ।

 

उम्मीद पर टिका है चाँद तारों का कारवां ,

फासला ए ज़मीन लाख सही मिल जाएगा आसमान।

 

हर शक़्स के जज़्बा ए खून में दबी एक आँधी है ,

रगों के दौड़ते फिरते लहू में इन्किलाब ए हुनर की सौगात भरनी चाहिए ।

 

शमा की उम्मीद ए हस्ती है परवाने का दिल जलाये रखना ,

और परवाने की मंज़ूर ए बसती है शमा का दिल बहलाये रखना ।

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छुपी सी बदलियों में छुपा रखा था चाँद ने दाग कई ,

हवा के झोकों ने अब्र ए नक़ाब को ज़ार ज़ार किया

 

खार बोये तो खार काटोगे ,

सब्ज़ बागों में फसल ए गुल की उम्मीद न कर ।

 

ज़माने बदले लोगों के फ़साने बदले ,

झर झर नीर से झरते झरनों को आब ए अब्र की फिर भी उम्मीद रहती है ।

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उम्मीद क्या करें जमाल ए यार से ,

देखा फ़िराक ए यार तबीयत बदल गयी ।

 

ज़माना कसेगा फ़ब्तियाँ इतनी थी उम्मीद ज़रूर ,

तू भी राह ए गुज़र से निकल जाएगा इस बात का बिलकुल अंदेसा न था ।

 

कितनी उम्मीदों पर टिका रखा है ,

ज़मीन ए ज़र्द दरख्तों ने सूखे पत्तों में बीजों को छुपा रखा है

 

हर हाल ए सुख़न उम्दाह ज़रूरी तो नहीं ,

कुछ ज़ौक़ ए शायरी पर भी वाह वाह कीजिये

 

यूँ तो आसमान झुक रखा है आलम ए अक़्स पर ,

जो दिल को छू सके वो असरार चाहिए ।

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picture taken by google