दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है romantic shayari,
दिलों से ख़ुमार ए इश्क़ कब उतरता है ,
महफ़िल ए रानाई में भी दिल को साद ओ ग़म की तलाश रहती है ।
सुर्खरू हैं तेरी यादें रंग ओ बू भी मद्धम है ,
जश्न ए रानाई का भरी महफ़िल में दिल कब तलबग़ार नज़र आता है ।
सँवर रही हैं हर्फ़ दर हर्फ़ ग़ज़लें कितनी ,
जाने किन महफ़िल ए रानाईओं को बढाएगी ।
फ़िज़ा में फैली जश्न ए रानाई के बाद ख़ामोशी ,
हँसते दिलों को ज़ार ज़ार किया करती है ।
दुनिया में अपना है कौन जिसके ख़ातिर जश्न ए रानाई तरास करते ,
ग़म न करते तो साद ए दिल को सरीक ए महफ़िल तलाश करते
दो वक़्त की रोटी और आँखों में शर्म बना के रख ,
ज़र ज़ोरू और ज़मीन के ख़ातिर क्या ज़मीर बेंच खायेगा ।
ये हसीं वाकिया होकर के गुज़र गया ,
हम ठगे खड़े रहे हुश्न ए क़ाफ़िला निकल गया ।
शहर भर में गर्द ए ख़ाक सही , घुप अंधेरों में ग़र सुराख़ नहीं ,
जज़्बा ए अमन लबरेज़ जहां रानाई दिल ए महफ़िल में नामुमकिन ही नहीं ।
हाल ए दिल लफ्ज़ दर लफ्ज़ सफहों में उतार लेता हूँ ,
शेर ओ शायरी की ख़ातिर साज़ ओ सामान बाँध लेता हूँ ।
साद ए दिल जश्न ए रानाई में न खो जाएँ कहीं ,
शाम ए बज़्म तेरी यादों के घर उधार लेता हूँ ।
क़ैद ए बामुशक़्क़त में हैं नज़रें इज़्ज़त लगा के दाँव ,
विसाल ए यार की ख़ातिर ही रतजगा कर ले ।
चंद सफ़हों की लिखाई और दिन रात पसीना ,
गोया मुफ्लिशी में है ग़ालिब माझी बिन है सफ़ीना ।
नाक़ाम ए इश्क़ और दर ओ दीवार पर सर पीटते रहना ,
नीक सूख लौट आने में ही भलाई है ।
दरियाओं के दरीचे पर कुछ सफ़ीने सूखे खड़े हैं ,
इश्क़ की लहरों पर समंदर के कितने कड़े पहरे हैं ।
नक़ाब के पीछे की सिलवटें ,
रुख़ पर गुज़रे वक़्त की तहरीरें कहती हैं ।
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