दो दिन की मोहब्बत थी दो पल में गवाँ दी Alfaaz shayari,
दो दिन की मोहब्बत थी दो पल में गवाँ दी,
कुछ मैक़दे में छूटी कुछ लोगों ने पिला दी ।
हरसू चाहत फैली पड़ी ज़माने में ,
सनम भी लाख मिले गोया रत्ती भर का भरोसा न मिला ।
ज़ालिमो ने ऐसे हुश्न ए नुमाइश नज़र करी,
टूटे हुए दिल के टुकड़े पेश किये इश्क़ ए फ़रमाइश अगर करी ।
दिल फटे तक हम तुझसे इश्क़ करते क़ाफ़िर ,
हाँथ जलने तक तो इश्क़ पकने देता ।
बढ़ा दे जिसके भी दर की रौनक ,
गुलों को चुनने का हक़ बस बाग़बाँ रखता है ।
काग़ज़ी फूलों की हो चमन में जैसे बाग़ ए बहार ,
खिज़ा के मौसम में गुल ए गुलज़ार नहीं हुआ करते ।
ख़ुदा ने दर बनाया ,
दरवाज़े की हिफाज़त के वास्ते वहाँ इंसान बिठाया ।
इंसान ने दर ओ दीवार पर मज़हब लिखा ,
पुरखों की मिल्कियत को मिल्कियत अपनी बताया ।
साल दर साल गुज़रते गए,
मिल्कियत के टुकड़े इधर उधर बिखरते गए ।
रोज़ नए दर ओ दीवार बनते गए ,
मिल्कियत के हिफाज़त नुमाइंदों के सर मढ़ते गए ।
ज़िम्मेदारियों पर ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती गयीं ,
लोग बढ़ते गए पहरे दारियां बढ़ती गयीं ।
पहले ईद दिवाली में ही लोग नज़र आते थे,
अब हर रोज़ बाजार भरे नज़र आते हैं ,
मगर लोगों के दिलों की नज़दीकियां घटने लगी I
दिलों की दूरियों का सियासी दरिंदों ने उठाया मौका ,
भाई को भाई लड़वाया मारा चौका ।
अब भी वक़्त है सम्हल जा ज़रा सी देर न कर ,
घर के चरागों को मुस्कान से जलने दे अंधेर न कर ।
है इल्तेज़ा ओ गुज़ारिश यही ख़ास ओ आम से ,
इंसान जान से जाये तो जाये न जाए इंसानियत के ईमान से ।
कहीं न कहीं मज़हबी सोच बदलनी होगी ,
हम पंछी हैं एक डाल के ये बात समझनी होगी ।
सियासियों ने रियासतें बाँट दी वरना,
ईद और दिवाली के दिए भी साथ जला करते थे ।
जागने वाले जागते होंगे अलॉर्म के साथ,
आज भी सेहर होती है शहर भर में मंदिरों के घंटे और अज़ान के साथ ।
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pix taken by google ,