न तर्क़ न ताल्लुक़ न इज़हार ए मोहब्बत ए जज़्बात romantic shayari,

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न तर्क़ न ताल्लुक़ न इज़हार ए मोहब्बत ए जज़्बात romantic shayari,
न तर्क़ न ताल्लुक़ न इज़हार ए मोहब्बत ए जज़्बात romantic shayari,

न तर्क़ न ताल्लुक़ न इज़हार ए मोहब्बत ए जज़्बात romantic shayari,

न तर्क़ न ताल्लुक़इज़हार ए मोहब्बत ए जज़्बात ,

गोया इश्क़ ए बेइंतेहाई के बड़े नाज़ुक दौर से गुज़रा है दिल ।

 

पत्थरों की मीनारें साँस नहीं लेती ,

बस जँगले से ही सूरज की किरणों का कहकशां होता है ।

 

लुट गए वो जो नादान जिगर वाले थे ,

गोया अब तो बाजार ए उल्फ़त में संगदिल ही कारोबार किया करते हैं ।

 

तेरी क़ातिल नज़र के सदके जंग हम भी छेड़ेगे ,

तू कलेजा छीन भी ले गोया अमन में आह तक न हम लेंगे।

 

साल दर साल असर करती है ,

नाम जिसका है मोहब्बत ,

दिल की शीशे सी मीनारों को भी तबाह करती है ।

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तार टूटे हैं सभी साद ए रंग ओ बू वाले ,

ज़ीस्त ज़ख़्मी है अभी रूह को आवाज़ न दो ।

 

ज़ख्म देती हैं सूरतें जिनकी ,

वो ख़ाक ए मुजस्सिम भी क्या पत्थर का जिगर रखते हैं ।

 

शहर भर के उजालों में जलते बुझते जुगनू ,

ज़मीन के ज़ख्म कई राज़दार रखते हैं ।

 

सर्द झोकों ने खोले राज़ ज़र्द पत्तों के ,

दबी थी लाश कोई ज़ख्म अभी ताज़ा था ।

 

ज़ख्म करते हैं बयान हाल ए दिल मरीजी का सबब ,

चाक जिगर के सिले हैं नासूर ए रेज़ा

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ज़ख्म देती हैं सर्द रातों की सुर्ख हवाएँ ,

ज़र्द पत्तों से अभी ओस की बूँदें फिसली तो नहीं हैं ।

 

इतनी ज़ख़्मी है रूह मुझको आवाज़ न दो ,

ग़म ए गर्दिश में जी लेंगे रौशनी ए साद न दो ।

 

रात की खामोशियों में सुरमयी तान छेड़ती सरगम ,

दूर पपीहे की पीहू तेरी पायल की छम छम

 

पलकों पर सँवार रखे हैं तेरे ,

नाज़ ओ नखरे सदके में उतारे वाले ।

 

रात ही गुज़ार लेते तेरे कूचे में ,

दिन में दिल का पता नहीं चलता ।

 

मेरी तो जन्नत निपट गयी तेरी आरज़ू में आहें भरते ,

तू बेग़ैरत बना देखता रहा ज़माने की जुस्तजू करते ।

pix taken by google