बज़्म में आ बैठे वो ज़ुल्फ़ें बिखेर कर 140 words shayari,
बज़्म में आ बैठे वो ज़ुल्फ़ें बिखेर कर ,
कुछ नज़्म टूटती सी कुछ गज़लें समेट कर ।
चरागों के उजाले सा सफ़र तन्हा ,
मैं अंधेरों में बहुत दूर चला जाता हूँ ।
कुछ सियासी दौर से गुज़री कुछ सिक्कों के वज़न से दब गयी ,
गोया इस तरह खस्ता से मोहब्बत हाल ए खस्ता होती गयी ।
भू धरा इंसान बिका ईमान भी मिल जायेगा ,
अब लहू तो आम है भगवान् न बच पायेगा ।
तुल गए गौरी गणेश संग महेश तुल गए ,
विशिष्ठ गण के माल में मैले कुचैले गणवेश धुल गए ।
बुझे बुझे से चरागों का सफक जल जाना ,
तेरी ज़ुल्फ़ों के हटने से बुझे चेहरों का यकबयक खिल जाना ।
दूर से आते राहगीरों की पदचाप सुनो ,
मुमकिन है सफ़र में कोई राहगीर मिले ।
जो बन सको तो बनो हमसफ़र मेरे ,
राह में मील के पत्थरों के बाद मंज़िलें और भी हैं ।
तेरी ज़ुल्फ़ में उलझे हैं लतीफे कैसे कैसे ,
कुछ पण्डित क़ाज़ी मौलवी कहकशाँ बन कर ।
हम तेरी ज़ुल्फ़ों तले शहर बसा लेंगे ,
बस तू पलकें झुकाकर के अँधेरा कर दे ।
ये जो नगीने जड़े हैं तेरी ज़ुल्फ़ों में ,
शब् ए महताब को भी आफ़ताब करते हैं ।
जी करता है तेरे हुश्न पर ग़ज़ल लिखूँ ,
तेरे काजल को क़यामत तेरी ज़ुल्फ़ों को क़हर लिखूँ ।
अल्लाह बचाये हुश्न ए जमाल से ,
नागिन सी डसती ज़ुल्फ़ से कभी लहरा के चलती बयार से ।
तेरी ज़ुल्फ़ों में उलझे कितने क़ाफ़िर इमान ओ दीन ,
जो बच गया वो बुत था जो फंस गया वो हो गया हबीब ।
नाख़ुदा भी एक ख़ुदा तलाश लेता है ,
हो जाती है दुआ बे असर जब वो बद्दुआ तराश लेता है ।
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शहर भर की रवायत में रूठना मनाना ही नहीं ,
देखो तुम हमसे दूर जाने की ज़िद को छोड़ दो ।
चल रहे हैं लोग शहर भर में सूरत ए फ़िराक़ बदल बदल ,
कभी आदम कभी सभी खादिम नक़ाब बदल बदल ।
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