बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा romantic shayari,

0
1362
बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा romantic shayari,
sad shayari in hindi for life,

बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा romantic shayari,

बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा,

कल तलक सारा घर चमक जाता था तेरी मौजूद ए हस्ती से ।

 

घर के आले में रखकर कुंजी गर निकलना हो तो ,

दिल ओ जान को भी अलविदा कह दो ।

 

खिज़ा के मौसम में दरख्तों से झड़ गए पत्ते ,

गनीमत ये समझ दर ओ दीवार तक ही ग़मों की सीलन है ।

 

दर ओ दीवार साँस लेती हैं ,

घर का मालिक जब तलक ज़िंदा है ।

 

ज़र्रा ज़र्रा उदास रहता है ,

घर अब भी तेरा साया तलाश करता है ।

sad poetry , 

घर की दीवारें अभी पुख़्ता हैं ,

न उम्मीदी में भी तेरी उम्मीद अभी ज़िंदा है

 

दिलों में जज़्बा ए लबरेज़ लबों पर मेहबूब ए इलाही ,

इश्क़ वो सै है जो जलते सेहरा में पुर सुकूत देता है ।

 

आदम ए राहत ओ सुकून की ख़ातिर ,

आदम बस्ती उजाड़ देता है ।

 

मौसम ए तपिस से घायल इब्न ए इंसान के अलावा और भी हैं ,

गोया सुकून ए दिल की ख़ातिर आदमखोर बना बस इंसान क्यों है ।

 

ख्वाब के परिंदों ने ले रखी है झील सी आँखों में पनाह ,

वही सोच के हैरान हूँ रात भर चाँद तकता क्या है ।

literature poetry, 

जल रहा था शब् भर चाँद हिज़्र के मारे ,

कूंद पड़ा झील में भोर से पहले लेके तारे सारे ।

 

आफ़ताब ए शहर और अँधेरा घर का ,

जला के रखता हूँ सुकून की ख़ातिर शब् भर चश्म ए चराग ।

 

बिछे पड़े हैं ज़मीन पर हज़ारों मरीज़ ए दानाई ,

एक हम ही नहीं हैं जिसके नशेमन में अँधेरा सा है ।

 

दौर ए मुफ़लिश में राहत ए दिल के लिए ,

वो साथ गुज़ारे लम्हे धरे सेंते हैं

 

शहर के चौबारों में सूखे दरख्तों का साया था ,

अब उसकी छांव की ख़ातिर परिंदे जंगल में भटकते हैं

sad poetry,

बूढ़े बरगद से पूछो दास्तान ए लैला मजनू ,

इसके पत्तों के साये में बुज़ुर्गियत बचपन बिताई है ।

pix taken by google