माँ मैं तेरी लिखी इबारत हूँ maa shayari ,,
माँ मैं तेरी लिखी इबारत हूँ ,
सोचता हूँ कभी मैं माँ पर ग़ज़ल लिखूं ,
जब मेरी सारी कायनात है माँ फिर मैं माँ पर क्या लिखूं ।
माँ मैं तेरी लिखी इबारत हूँ ,
तेरे सज़दे में झुकता है सर मेरा तुझे मैं खुदा लिखूं ।
माँ के कदमो में जन्नत का रास्ता है ,
गूंगा तो गूंगा बेज़बान जानवर भी माँ बोलना जानता है ।
कहने को हिंसक है जिसे सब शेर कहते हैं ,
उन्ही खूंखार जबड़ों में शावक हर हाल में महफूज़ रहते हैं ।
मज़ाल क्या है परिंदा भी पर मार दे नौनिहालों पर ,
नन्ही चिड़िया बाज़ से भिड़ जाती है अपने सेये पालों की खातिर खेल जाती है जान पर ।
माँ से है हर सै जहान की माँ सा कोई दूजा नहीं है ,
माँ से है कुदरत माँ से है दौलत माँ से जन्नत ज़मीन है ।
माँ की ममता बिकती नहीं है दुकानों पर ,
ये है अनमोल न कोई तौल सभी दीनार और असर्फी सब हैं बेकार इसके आगे ।
चार बेटों पर माँ बोझ बन जाती है अक्सर ,
मगर हर हाल ए मुफ्लिश में माँ अपने चारों बेटे पाल लेती है ।
एक हाँथ की पाँचों उंगलियां बराबर नहीं होती ,
एक माँ की ममता अपने पाँचों लालों में किसी को कम नहीं पड़ती ।
माँ से है कुदरत की हर सै ,
माँ से ही खुदा की भी रज़ा है ।
ये बस मैं नहीं हर जानवर इंसान क्या,
हिन्दू मुसलमान भी बोलता है ।
माँ से काशी माँ से काबा माँ से चारों धाम प्यारे ,
माँ की ममता जो न समझा फिर वो है बेकार का रे ।
माँ कभी कुछ नहीं कहती ,
माँ पर ग़मों की बर्षात भीतर ही भीतर ही भीतर बरसती रही ।
लाख ग़म दिल में रख के चुपचाप सह जाती है ,
माँ जब भी सामने आती है मुस्कुराती है ।
कद से बढ़ जाए चाहे कोई कितना ,
जब दर्द होता है ज़बान से केवल निकलता है मेरी माँ ।
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