रुख़ पर शोखी ए आतिश bewafa shayari ,
रुख़ पर शोखी ए आतिश,
बचा के दामन को क़फ़स की बात करते हैं ।
शाकिया मैक़शी पैमाने में ,
दिलों का आशियाँ लुट गया मैखाने में ।
रेज़ा रेज़ा है क़फ़स को चंद साँसों की तलब ,
जिस्म से रूह तलक कितनी बेहयाई हैं ।
दर्द ए दिल जब क़फ़स से रूह तलक जाता है ,
तब सुखन में किरदार उभर आता है ।
महफ़िल ए रानाईयों का कौन तलबग़ार यहाँ ,
ख़ानाबदोशी है बियाबानों में आशियाना तामीर किया करते हैं।
ग़म ए मुफ्लिशी ने मारा है इस क़दर ,
किसके काँधे पर सर रखकर के किसके दिल में आशियाना तलाश करते ।
दिल के माल ओ मिल्कियत की परवाह किसे ,
लुट गया सारा साज़ ओ सामान भरे बाजार बेफ़िक्री से ।
इल्म न था आशियाँ इस क़दर जलाएगा बूँदा बाँदी में ,
सोचा था अबके सावन में हम भी गीत गाएंगे ।
लुटा लुटा है शहर भर का कारोबार यहाँ ,
कोई हुश्न ए आदम ने डाला डाका या कोई हसीं वाकिया होके गुज़रा ।
हादसों के शहर में बड़े हसीन हादसे हुआ करते हैं ,
माल ओ मिल्कियत से लबरेज़ लोगों के दिल ए सामान लुटा करते हैं ।
कितना ग़मगीन कितना लुटा लुटा सा है ,
हाल सबका है ज़ाहिर हर शख्स क्यों जुदा जुदा सा है ।
लुटा के दौलत ए मसर्रत का हुनर आता है ,
ग़मो को रख सीने में जो मुस्कुराता है ।
मुस्कुराना ही अदा थी अपनी ,
देख कर लब पर तबस्सुम वो मेरे जाने कैसे खीझ गया ।
राह ए फ़क़ीरी में लुट गया मुंसिफ ,
गीता ओ क़ुरआन में एका करते ।
तंज़ और तल्खियों में सुर्खियां पिरोते हो ,
हुश्न ए महफ़िल से लुट लुटा के आये हो क्या ।
ज़ुज़बी ही जाम मेर लब तक पहुँच पाते हैं ,
हम तो तेरी आँखों के पैमानों से ही मचल जाते हैं ।
बड़ी फुर्सत में मेरे सरताज बैठे हैं ,
क़त्ल का तैयार रख के सामान सरतार बैठे हैं ।
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