वादियों में दहशत सी रहती है sad shayari ,
वादियों में दहशत सी रहती है ,
कहते हैं अपना ही वहशी बन गया कोई ।
जज़्बात बयानी का हक़ है हर ख़ास ओ आम को ,
ये आज़ाद मुल्क़ की अवाम है हुक़ूमत ए बरतानिया की ग़ुलाम नहीं है ।
रोते बिलखते बच्चे न अब यतीम मरेगे ,
चैन ओ अमन के जहान में बस प्यार रहेगा ।
ज़िल्लत भी मिलेगी जलालत भी मिलेगी ,
नेकी के रास्ते नहीं आसान सांस लेने की भी मोहलत न मिलेगी ।
मुहर्रम के ताज़िये के साथ दशहरे के जुलूस फ़बते हैं ,
नफ़रतों पर इंसानियत की फ़तेह के प्रतीक लगते हैं ।
शायद किसी ने पूछ लिया लतीफों के मायने ,
ज़िन्दगी के फ़तेह का सेहरा गुमराह करेगा ।
घाई घाई न मचा खुली सड़कों पर ,
मौत से पहले मरेगा आगे खड्डे में गिरेगा ।
ख़ादिम की लाशों पर खड़ा ख़ादिम ,
आदम की शख़्सियत पर फ़तेह पाने को तैयार हो जैसे ।
माँ बाप बाँट लेते हैं ज़रूरतों के हिसाब से ,
बस में अगर हो इंसान के ज़मीन आसमान के साथ साथ धूप छाँव बाँट लें ।
जब भी निकला आदम ए क़ाफ़िला न अच्छा न बुरा निकला ,
जहान में हर शख़्स बस वक़्त का मारा निकला ।
हमने हिल मिल के जला दिए रावण सारे ,
अब कल से शहर भर में क्या रामराज्य रहेगा ।
यूँ तो नहीं की शहर भर का हर चेहरा हसीन बड़ा है ,
खुश होकर भी हर शख़्स यहाँ ग़मगीन खड़ा है ।
सियासत ने क्या चाल चली कैसा दाँव खेला है ,
कल तक था जो अजीज़ ऐ जिगर दुश्मन बन के वही आज जान का झमेला है ।
घर के मुहाने बदल के भी हवाओं का रुख नहीं बदला ,
कल भी पुरवाई चलती थी अब भी पुरवाई बहती है ।
दावतें लुट गयीं सारी ख़ज़ाने की ,
अब अवाम लूट के शिकारी टकशाल भरेंगे ।
पेश ए ख़िदमत हैं इश्क़ में नमूने नए नए ,
सर कटा लिया कोई इबादत ए सनम में कोई सर झुका दिया ।
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